tag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post1951086392785868007..comments2023-10-03T15:28:37.789+05:30Comments on मेरी नज़र से: अपने देश के नौजवान क्रुद्ध हैंरश्मि प्रभा...http://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comBlogger14125tag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-4367525612382224772014-05-08T13:25:36.284+05:302014-05-08T13:25:36.284+05:30सुन्दर और समसामयिक लेख....प्रस्तुत लेख ने दिनकर जी...सुन्दर और समसामयिक लेख....प्रस्तुत लेख ने दिनकर जी की कविता आग की भीख की याद दिला दी....धुंधली हुई दिशाएँ छाने लगा कुहासा...कुचली हुई शिखा से आने लगा धुंआ सा...कोई मुझे बता डे क्या आज हो रहा है..मुंह को छिपा तिमिर में क्यों तेज रो रहा है....पठान पाठन हमें सदैव सन्मार्ग दिखाता है और प्रेरित करता है सही दिशा के चुनाव की और...आपका अच्छे साहित्य के अध्ययन का सुझाव सराहनीय है...<br />shuklabhavnahttps://www.blogger.com/profile/10076436269788117150noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-6953405031678035522014-05-07T15:30:54.366+05:302014-05-07T15:30:54.366+05:30सार्थक आलेख ........ !!सार्थक आलेख ........ !!मुकेश कुमार सिन्हाhttps://www.blogger.com/profile/14131032296544030044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-51878200141584541082014-05-07T12:45:54.272+05:302014-05-07T12:45:54.272+05:30सादुवाद ... सार्थक प्रस्तुति ... साहित्य और समाज क...सादुवाद ... सार्थक प्रस्तुति ... साहित्य और समाज कभी एक दुसरे से विलुप्त/अनजान नहीं रहे ... दिगम्बर नासवाhttps://www.blogger.com/profile/11793607017463281505noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-44751059034169830462014-05-06T20:41:26.541+05:302014-05-06T20:41:26.541+05:30सार्थक लेख ।सार्थक लेख ।सुशील कुमार जोशीhttps://www.blogger.com/profile/09743123028689531714noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-59731489364468734262014-05-06T19:11:00.084+05:302014-05-06T19:11:00.084+05:30ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन सीट ब्लेट पहनो और ...ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन <a href="http://bulletinofblog.blogspot.in/2014/05/blog-post_6.html" rel="nofollow"> सीट ब्लेट पहनो और दुआ ले लो - ब्लॉग बुलेटिन </a> मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !ब्लॉग बुलेटिनhttps://www.blogger.com/profile/03051559793800406796noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-48981293459733775852014-05-05T23:23:32.679+05:302014-05-05T23:23:32.679+05:30आज सारा समाज, माता -पिता अपने बच्चों को पैसे कमाने...आज सारा समाज, माता -पिता अपने बच्चों को पैसे कमाने की मशीन बनाने को आमादा हैं। साहित्य -संगीत , नाटक से लगाव-जुड़ाव को पहले भी बच्चों के बिगड़ने का लक्षण माना जाता रहा है, जबकि याही वे माध्यम हैँ जींस समाज एक सार्थक दिशा पाता रहा है,किन्तु फिर भी लोगों की सोच कभी सकारात्मक नहीँ हुई। यही वे माध्यम हैं जो मनुष्य को सही मायने मेन मनुष्य बनाते हैं। आज तो स्थितियां और भी भयावह होती जा रहीं हैं। आज पड़ोस क्या, देश क्या परिवार मेँ हीं भावनात्मक लगाव का स्थान अर्थ लेता जा रहा है। साहित्य ही वह एक मात्र चीज़ है जो हमें सबसे जोड़ने का काम कर सकता है। लेकिन आज रास्ता दिनों दिन ओझल हीं होता जा रहा है। यह तब तक संभव नहीं जब तक माता-पिता बच्चों को मनुष्य बनाने की न सोंचें। आपकी चिंता बहुत महत्वपूर्ण है। RAJA AWASTHIhttps://www.blogger.com/profile/07172842845350029321noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-72318014545107400672014-05-05T23:11:34.324+05:302014-05-05T23:11:34.324+05:30
खूबसूरत सन्देश देती हुई सार्थक पोस्ट ..... सा...<br /> खूबसूरत सन्देश देती हुई सार्थक पोस्ट ..... साधुवाद आपको .... सचमुच युवाओं की ऊर्जा का दोहन सकारात्मक दिशा में कर लिया जाये ... उसके भीतर रचनात्मक और सांस्कृतिक अलख जगाई जाये ... तो पूरे समाज को एक नई दिशा मिलेगी ....Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/03100821479573892044noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-62330319624704686902014-05-05T22:53:54.345+05:302014-05-05T22:53:54.345+05:30sarthak aalekh ...sarthak aalekh ...kavita vermahttps://www.blogger.com/profile/18281947916771992527noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-82691029136285614732014-05-05T22:52:22.341+05:302014-05-05T22:52:22.341+05:30सामाजिक पूर्वाग्रह, शारीरिक, श्रम को निकृष्ट समझना...सामाजिक पूर्वाग्रह, शारीरिक, श्रम को निकृष्ट समझना और साहित्य की अवहेलना मेरी दृष्टि इस पतन के में मुख्य कारण हैंl सार्थक प्रस्तुति के लिये आपका आभार lNidhi Rastogihttps://www.blogger.com/profile/11687348130493778357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-28638247707031667912014-05-05T22:49:34.555+05:302014-05-05T22:49:34.555+05:30नयी पीढ़ी को अब नये सिरे से,नये सृजनशील वातावरण में...नयी पीढ़ी को अब नये सिरे से,नये सृजनशील वातावरण में लाना ही पुराणी पीढ़ी का <br />दायित्व होना चाहिए.....<br />............................सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति........Rajeev bhutanihttps://www.blogger.com/profile/04516420572559474101noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-45591242899814117422014-05-05T22:34:51.862+05:302014-05-05T22:34:51.862+05:30आदरणीया दीदी सादर प्रणाम,आपने मेरे आलेख को एक नयी ...आदरणीया दीदी सादर प्रणाम,आपने मेरे आलेख को एक नयी दिशा दे दी है---<br />बहुत बहुत आभार आपका Jyoti kharehttps://www.blogger.com/profile/02842512464516567466noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-35820105124951134162014-05-05T18:24:58.143+05:302014-05-05T18:24:58.143+05:30बिल्कुल सच कहा..सार्थक प्रस्तुतिबिल्कुल सच कहा..सार्थक प्रस्तुतिMaheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-19920571296448037602014-05-05T15:37:20.850+05:302014-05-05T15:37:20.850+05:30साहित्य एक ऐसी परंपरा है जो अपने आप में एक विशेष स...साहित्य एक ऐसी परंपरा है जो अपने आप में एक विशेष स्थान रखती है,युवाओं का<br />साहित्य से जुड़ना नितांत आवश्यक है.इससे स्वस्थ मानसिकता का जन्म होता है.<br />नये नये पहलुओं का अध्ययन होता है,बेवाक अपनी बात उजागर करने की क्षमता पैदा <br />होती है. युवाओं को इस पारदर्शी विचारधारा से जोड़ने का काम पुरानी पीढ़ी ही कर सकती<br />है............... बिल्कुल सच, सार्थकता लिये सशक्त प्रस्तुति सदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-13643590275442607582014-05-05T14:37:33.492+05:302014-05-05T14:37:33.492+05:30कुशिक्षा और अपनी संस्कृति से दूरी ने युवा को दिग्भ...कुशिक्षा और अपनी संस्कृति से दूरी ने युवा को दिग्भ्रमित कर दिया है। इस गिरावट को रोकने की पहल तो परिवार से ही हो सकती है। शिक्षा-संस्थानों और समाज को भी इसमें योगदान देना जरूरी है। मेरे ख्याल में राजनैतिक परिवेश को भी सुधारना जरूरी है क्यूंकि समाज इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता। <br />बहुत सुंदर गहन और विचारोत्तेजक आलेख Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/15421768457680984416noreply@blogger.com