tag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post6590495321052268004..comments2023-10-03T15:28:37.789+05:30Comments on मेरी नज़र से: पिता का ख़त पुत्री को ( चौथा भाग )रश्मि प्रभा...http://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comBlogger10125tag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-11010799340642293742012-10-15T11:51:42.892+05:302012-10-15T11:51:42.892+05:30नर नारी के शुभ विवाह पर
गांठ विधाता स्वयं बांधते,...नर नारी के शुभ विवाह पर <br />गांठ विधाता स्वयं बांधते,<br />शायद देना श्रेय तुम्ही को <br />जग के रचनाकार चाहते <br />यह सीख मन के हर भाव का संबल बनती ... <br />अनुपम भाव लिये उत्कृष्ट अभिव्यक्ति <br />सादरसदाhttps://www.blogger.com/profile/10937633163616873911noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-85076365237343003702012-10-14T11:03:11.014+05:302012-10-14T11:03:11.014+05:30ऐसी बातें ऐसी सुन्दर रचना जो दिल को छू गई एक पिता ...ऐसी बातें ऐसी सुन्दर रचना जो दिल को छू गई एक पिता ही रच सकता है. आदरणीया आपने हम सबको इससे रूबरू करवाया आपका तहे दिल से शुक्रिया अरुन अनन्तhttps://www.blogger.com/profile/02927778303930940566noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-59020674186427681602012-10-14T00:58:28.930+05:302012-10-14T00:58:28.930+05:30मूल्य बदल रहे हैं। आज ही सुमरित शाही का उपन्यास जस...मूल्य बदल रहे हैं। आज ही सुमरित शाही का उपन्यास जस्ट फ़्रेण्ड्स पढ़ा है। नयी और पुरानी पीढ़ी के बीच अंतर तो सदा ही रहे हैं किंतु आज यह अंतर विद्रोह पर उतारू है ...नयी पीढ़ी अपने लिये मूल्यों के बन्धन से कुछ और स्वतंत्रता चाहती है .....अपने मानक स्वयं गढ़ना चाहती है। विवाह को उसकी पवित्रता के साथ पुनः स्थापित किये जाने की आवश्यकता है। हम निराश हैं ...फिर भी यह कामना करते हैं कि नयी पीढ़ी के लोग इस कविता के सन्देश को समझें। बस्तर की अभिव्यक्ति जैसे कोई झरनाhttps://www.blogger.com/profile/11751508655295186269noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-60181378733868073722012-10-13T21:54:56.986+05:302012-10-13T21:54:56.986+05:30यह दर्द हर कोई नहीं समझ पायेगा...
उपरोक्त रचना के ...यह दर्द हर कोई नहीं समझ पायेगा...<br />उपरोक्त रचना के लिए आभार !Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-33941587877125076862012-10-13T17:48:18.892+05:302012-10-13T17:48:18.892+05:30बहुत सुंदर सीखों से भरा ख़त...
बाबुल का अंतर्द्वन...बहुत सुंदर सीखों से भरा ख़त...<br /><br />बाबुल का अंतर्द्वन्द<br /><br />बिटिया खड़ी दुल्हन बनी<br />मन का जाने न कोई राज<br />बाबुल खड़ा सोचे बड़ा<br />अजीब रस्म है आज<br />सौंपना है जिगर के टुकड़े को<br />बजा बजा के साज<br />मन है व्याकुल, ले जाने वाला<br />बन पाएगा क्या उसका रखवाला<br />नयन नीर बने, होठों पर मुस्कान<br />मन विह्वल होता जाता है<br />दिल भी बैठा जाता है<br />पर साथ ही सुकून है<br />बाबुल खुद पर है हैरान|<br />बिटिया इस घर की रानी थी<br />क्या वहाँ करेगी राज!<br />बाबुल की बाहें बनी थीं झूला<br />मिल पाएगा क्या वहाँ हिंडोला!<br />माँ की गुड़िया प्यारी-प्यारी<br />बन पाएगी क्या वहाँ दुलारी!<br />भाई की आँखों का तारा<br />जीवनसाथी की क्या बनेगी बहारा!<br />बहनों की वह प्यारी बहना<br />बन पाएगी क्या वहाँ की गहना!<br />दादी-नानी की नन्हीं मुनिया<br />उड़ पाएगी क्या बन चिड़िया!<br />बूआ-मासी की है वह लाडली<br />पाएगी क्या फूलों की डाली!<br />सवाल रह गए सारे मन में<br />बिटिया चली, बैठ पालकी में<br />आँगन बजती रही शहनाई<br />बिटिया की हो गई विदाई|<br /><br />अब जो बिटिया हुई पराई<br />याद में आँखें भर आईं|<br />बाबुल, तुम रोना नहीं<br />दिल में है सिर्फ वही समाई|<br />अब जब भी वह घर आए<br />प्यार से झोली भर देना<br />एक अनुरोध इतना सा है<br />अपने घर को <br />उसका भी रहने देना||<br /><br />ऋता शेखर ‘मधु’ऋता शेखर 'मधु'https://www.blogger.com/profile/00472342261746574536noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-89254321800779438322012-10-13T17:37:18.702+05:302012-10-13T17:37:18.702+05:30बहुत अच्छी कविता....बहुत ज़रूरत है आज इस तरह के सं...बहुत अच्छी कविता....बहुत ज़रूरत है आज इस तरह के संस्कार देने की बेटियों को....पर विडम्बना यह है कि पिता की उस लाड़ली को पहल करने से रोक भी तो दिया जाता है....<br />-सुनीता सनाढ्य पाण्डेयPummyhttps://www.blogger.com/profile/04022873208734208825noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-28417726197958432632012-10-13T16:44:16.273+05:302012-10-13T16:44:16.273+05:30एक पिता की सुन्दर मंगल कामनाएं भरी प्यारा सा खत,,,...एक पिता की सुन्दर मंगल कामनाएं भरी प्यारा सा खत,,,Maheshwari kanerihttps://www.blogger.com/profile/07497968987033633340noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-36620027616768434852012-10-13T15:38:40.413+05:302012-10-13T15:38:40.413+05:30बदलती व्यवस्था,बदलते मूल्यों के मध्य अवश्य कई बातो...बदलती व्यवस्था,बदलते मूल्यों के मध्य अवश्य कई बातों से विरोध होगा,पर हर आदमी समयानुसार अपनी धरातल से ही देखता है ...<br />और पिता की यह कामना परम्पराओं से जुडी है रश्मि प्रभा...https://www.blogger.com/profile/14755956306255938813noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-16145356988626066972012-10-13T15:33:44.261+05:302012-10-13T15:33:44.261+05:30यहाँ, पुत्री विदाई बेला पर, दुखी पिता अपनी लाडली क...<b><br />यहाँ, पुत्री विदाई बेला पर, दुखी पिता अपनी लाडली को विवाह की आवश्यकता बताने, समझाने का प्रयत्न कर रहा है ! <br />भारतीय समाज की सबसे मजबूत गांठ, आज पाश्चात्य सभ्यता समर्थन के कारण खतरे में है ! नारी अपने बिभिन्न रूपों को भूल कर अपने एक ही रूप को याद करने का प्रयत्न कर, तथाकथित जद्दोजहद कर रही है,एवं आधुनिकीकरण की तरफ़ भागता समाज, हमारी शानदार व्यवस्था भूल कर चमक दमक में खो रहा है ! <br /><br />ऐसे समय में यह कविता बहुतों के माथे पर बल डालेगी, मगर यह एक भारतीय पिता की भेंट है, अपनी बेटी को !<br /><br />आभार आपका, रश्मि प्रभा जी </b>Satish Saxena https://www.blogger.com/profile/03993727586056700899noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-4027017705632771090.post-21419081491992573422012-10-13T15:12:14.493+05:302012-10-13T15:12:14.493+05:30बड़ा प्यारा खत है।बड़ा प्यारा खत है।देवेन्द्र पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/07466843806711544757noreply@blogger.com