
कई टुकड़े मैं ...
(लीना मल्होत्रा की यह कविता दैनिक जागरण(जम्मू) २२ अगस्त २०११ में प्रकाशित हुई थी ).
एक टुकड़ा
मेरे मन की उदासियों के द्वीप पर रहता है
सैलाब में डूबता उतरता भीगता रहता है
उसे नौका नहीं चाहिए
एक टुकड़ा
थका मांदा
चिंता में घुलता है पार उतर जाने की
चालाकियों की तैराकी सीखता है
युक्तियों में गोते लगाता है
फिर भी
भीगना नही चाहता
सैलाब से डरता है डरता है
एक टुकड़ा
जिद्दी
अहंकारी
सपनो की मिटटी लगातार खोदता है
सोचता है
डोलता है
डांवा डोल
भटकता है
एक टुकड़ा विद्रोही है
वह तोड़ता है वर्जनाये
ठहरे हुए पानी को खड्डों में से उडाता है
छपाक छपाक
एक टुकड़ा स्वार्थी है
सुवर्ण लोम को फंसाता है
उसकी पीठ पर सवार करता है समंदर पार
फिर उसी सुवर्णलोम की हत्या कर नीलाम करता है उसकी खाल
एक टुकड़ा वीतरागी
किनारे पर खड़ा देखता है
उसकी आसक्ति दृश्य से है
वह धीरे धीरे टेंटालस के नरक की सीढियां उतरता है
एक टुकड़ा
भेज देती हूँ तुम्हारे पास
तुम्हारे सीने पर मेरा हाथ है
और तुम सो रहे हो
वह भी सोता है तुम्हारे स्पर्शों में बहता है
साँसों में जीता है
उसे बाढ़ से बहुत प्रेम है
इन्ही टुकड़ों के संघर्ष, विरोध और घर्षण में
बची रहती हूँ मैं
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
एक रेत का समंदर मेरे भीतर पलता है
जिस पर कोई निशान शेष नही रहते.
-लीना मल्होत्रा
नए ब्लॉग के लिए बधाई!
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना से शुभारम्भ किया...
लीना जी को बधाई!!!
सर्वप्रथम नए ब्लॉग पर बधायी और शुभकामनायें
जवाब देंहटाएंहर ज़िन्दगी में
एक टुकडा
सदा याद दिलाता है
ज़िन्दगी की
विषमताओं का
सुन्दर अहसासों का
बदलता रहता है
फितरत अपनी
रखता नहीं
संतुष्ट किसी को
देता है
कभी गम
कभी खुशी
आपके नए ब्लॉग के लिए हार्दिक बधाई....
जवाब देंहटाएंलगता हैं कि आप कहीं से भी अच्छी रचनाओं को ढूंढकर पाठकों के लिए रखेंगी....
लीना मल्होत्रा की बेहतरीन रचना पढने का अवसर देने के लिए आप दोनों का आभारी हूँ... शुभकामनाएँ
लीना जी को पढना एक अनुभव से गुजरने जैसा है.. बहुत सुन्दर कविता.. नए ब्लॉग के लिए शुभकामना...
जवाब देंहटाएंयूँ कहें , यह ब्लॉग नहीं एक घर है - जो तोड़े से न टूटे'
जवाब देंहटाएंऐसे नए घर के लिए बधाई
और फिर लीना मल्होत्रा की रचना .. बहुत सुन्दर 'टुकड़े टुकड़े' अस्तित्व की अंतर्कथा
इन्ही टुकड़ों के संघर्ष, विरोध और घर्षण में
जवाब देंहटाएंबची रहती हूँ मैं
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
एक रेत का समंदर मेरे भीतर पलता है
जिस पर कोई निशान शेष नही रहते.
...जिंदगी यूँ ही जाने कितने संघर्षों में उलझी-सुलझती चलती रहती हैं..
बहुत ही बढ़िया सार्थक रचना के साथ नये ब्लॉग की प्रस्तुति के लिए हार्दिक शुभकामनायें
लीना जी को इस अनुपम रचना के लिए बधाई
आपके नए ब्लॉग के लिए हार्दिक बधाई.... बहुत सुन्दर रचना पढवाई लीना जी की हार्दिक आभार
जवाब देंहटाएंआपके नए ब्लॉग के लिए हार्दिक बधाई....
जवाब देंहटाएंek ret ka samandar mere andar bhi palta hai:)
जवाब देंहटाएंbadhai leena ko aur di ko kya badhai dena......ab ek aur blog pe aana padega:)
दीदी... आप जिस प्रकार छिपी हुई प्रतिभा को सामने लाने का काम करती हैं उसकी सराहना करने के लिए लफ्ज़ नहीं हैं.. बहुत ही अच्छी कवयित्री की एक भावप्रधान कविता.. एक सुलझी हुई और सीधी सादी कविता... बहुत-बहुत बधाई आपको इस नए ब्लॉग के लिए!!
जवाब देंहटाएं"ब्लॉग ब्लॉगर ब्लॉग की दुनिया - यह एक खान है हीरे की , समय दो , बेशकीमती , नायाब हीरे मिलेंगे " सोलह आने सच कहा...लीना को कविता और आपके नए ब्लॉग़ (घर) के लिए बधाई...
जवाब देंहटाएंइस नये घर के लिये बहुत सारी बधाइयाँ और शुभकामनायें रश्मि जी ! गृह प्रवेश के अवसर के लिये बहुत ही खूबसूरत रचना का चयन किया है आपने ! लीनाजी की यह रचना मन में बस गयी ! बहुत सुन्दर और उन्हें भी ढेर सारी शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंनए ब्लॉग के लिए बधाई ..... आपकी पारखी नज़र अच्छी रचनाओं को पढ़ने का मौका देगी .... आभार
जवाब देंहटाएंइन्ही टुकड़ों के संघर्ष, विरोध और घर्षण में
जवाब देंहटाएंबची रहती हूँ मैं
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
एक रेत का समंदर मेरे भीतर पलता है
जिस पर कोई निशान शेष नही रहते.
...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति
गोविन्द से पहले गुरु को नमन! .....हीरे से पहले जौहरी को नमन!!
जवाब देंहटाएंसरल नहीं है ब्लॉग सागर को खंगालना और उसमें से चन्द हीरों को चुनना! काव्य प्रेमियों के लिये कितना सहज हो गया है हीरों की द्युति में आनन्दित होना। श्रमसाध्य...समयसाध्य साधना के लिये रश्मि जी को पुनः वन्दन ..सादर आभार!!
"कई टुकड़े मैं " ..हमारे व्यक्तित्व की ईमानदार अभिव्यक्ति है। मनुष्य का मन बड़ा ही जटिल होता है। हम सदा एक से नहीं रहते ....कभी कुछ होते हैं तो कभी कुछ ....कई बार विरोधी व्यक्तित्व हमारे भीतर होते हैं...और हम उनके वशीभूत हो अपना अभिनय करते जाते हैं। ऐसी ...अपनी ही जटिलताओंके बीच जीना और संघर्ष करना पड़ता है हमें। लीना जी की इस उत्कृष्ट रचना के साथ इस चिट्ठे का प्रारम्भ सुखद है। आशान्वित हैं ....आश्वस्त हैं कि हमें नायब हीरे मिलते रहेंगे ......नये चिट्ठे के लिये मंगलकामनायें! ! !
शुभ-प्रभात .... !!
जवाब देंहटाएंआपके नए ब्लॉग के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .... !!
आगाज इतना सुन्दर है तो अंजाम अति सुन्दर होगा ही .... !!
एक रेत का समंदर मेरे भीतर पलता है
जवाब देंहटाएंजिस पर कोई निशान शेष नही रहते.
इस नये ब्लॉग की बधाई सहित अनंत शुभकामनाएं ... साथ ही लीना जी इस उत्कृष्ट रचना के प्रस्तुतिकरण के लिए आपका आभार ...
नए ब्लॉग के लिये आपको व लीना जी को इस सुंदर लेखन के लिये बधाई !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना से शुभारम्भ किया है आप ने अपने नए ब्लांग का..बहुत-बहुत बधाई...रश्मि जी..
जवाब देंहटाएंलीना जी को भी बधाई!!!
चाहे टुकड़ों टुकड़ों में बंटी ... फिर भी समुन्दर सी पूर्ण ...
जवाब देंहटाएंजीवन संघर्ष और टुकड़ों में रहते हुवे भी पूर्ण रूप से जीने की कला है .. अस्तित्व कों बचाए रखने का संघर्ष है ...
लीना जी कि रचना सुंदर है ...!!
जवाब देंहटाएंbahut achchhi rachna
जवाब देंहटाएंbahut achchhi rachna
जवाब देंहटाएंvery nice poem dee....
जवाब देंहटाएंi've read leena ji and loved her writing...
thanks a lot
regards.
anu
बहुत सुन्दर रचना....नए ब्लॉग के लिये हार्दिक बधाई और शुभकामनायें !
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार सभी मित्रों का और रश्मि प्रभा जी का विशेष रूप से.. रश्मि जी नए ब्लॉग की बधाई स्वीकार करें.. और अनंत शुभकामनाएं..
जवाब देंहटाएंBahut hi khubsurat kavita hai...
जवाब देंहटाएंvery powerful...full of insights
जवाब देंहटाएंनए ब्लॉग के लिए बधाई. लीना जी की बहुत सुन्दर रचना है...
जवाब देंहटाएंइन्ही टुकड़ों के संघर्ष, विरोध और घर्षण में
बची रहती हूँ मैं
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
एक रेत का समंदर मेरे भीतर पलता है
जिस पर कोई निशान शेष नही रहते.
लीना जी को बधाई और आपको धन्यवाद.
shaandar
जवाब देंहटाएंएक एक टुकड़ा
जवाब देंहटाएंसुंदर व्याख्यान से सुसज्जित
और उतनी ही खूबसूरती से
समेटा है आपने अपने इस
अति सुंदर ....नायाब
आपकी....आने वाली रचनाओं का
बेसब्री से इंतज़ार रहेगा
नए ब्लॉग के जन्म की शुभकामनायें ....आपका ब्लॉग है तो निसंदेह ही आपके द्वारा किये जा रहे साहित्यक उपक्रमों से लबरेज होगा !
जवाब देंहटाएंनए ब्लॉग के लिए ढेर सारी शुभकामनाएं और एक बेहतरीन रचना से शुरूआत करने के लिए आभार। आपका हर नया उपक्रम कुछ अलग ही अंदाज लेकर सामने आता है... मैं भौचक रह जाती हूं। आप कमाल करती हैं।
जवाब देंहटाएंएक रेत का समंदर मेरे भीतर पलता है,
जिस पर कोई निशान शेष नही रहते।
इन दो पंक्तियों में पूरी कायनात समाई है। लीना जी को बधाई।
- डॉ. रत्ना वर्मा
वाह्ह्हह्ह अद्भुद .......इन्ही टुकड़ों के संघर्ष, विरोध और घर्षण में
जवाब देंहटाएंबची रहती हूँ मैं
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
एक रेत का समंदर मेरे भीतर पलता है
जिस पर कोई निशान शेष नही रहते.........सचमुच कमाल
वाह्ह्हह्ह अद्भुद .......इन्ही टुकड़ों के संघर्ष, विरोध और घर्षण में
जवाब देंहटाएंबची रहती हूँ मैं
अपने पूरे अस्तित्व के साथ
एक रेत का समंदर मेरे भीतर पलता है
जिस पर कोई निशान शेष नही रहते.........सचमुच कमाल
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जवाब देंहटाएंThanks for sharing this valuable information.I have a blog about computer and internet
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