सोमवार, 30 जुलाई 2012

भूल तो तुमसे भी हुई है





सती ने खुद को कमज़ोर जाना
अतिशय जिद्द में खुद को अग्नि में डाला
पार्वती ने भी यही समझा
पर तप की अग्नि में निखरती गयीं
बस परखना है खुद को
सुनना है ईश को
फिर देखो
तुम्हारी कोमलता में
लचीलेपन में ही परिवर्तन है ...

रश्मि प्रभा


भूल तो तुमसे भी हुई है


हे प्रभु
जब तुमने नारी को बनाया
तो क्यों उसे इतना कोमल
कमनीय बनाया कि
इस निर्मम संसार में
चहुँ ओर पसरे दरिंदों से
अपनी रक्षा करने में
वह कमज़ोर पड़ जाती है ,
और फिर जीवनपर्यंत एक
अकथनीय वेदना और
शर्मिंदगी के बोझ तले
अपने ही मन के गह्वर में
कहीं गहराई तक नीचे
गढ़ जाती है !
तुमने जब उसका
करुणा से ओत-प्रोत
अत्यंत कोमल ह्रदय
बनाया था तो साथ ही
उसमें हिमालय सा अटल
अडिग और वज्र सा कठोर
निर्णय लेने का हौसला भी
दिया होता ताकि वह
अविचलित हो
अपने अपराधियों का
सटीक न्याय कर पाती ,
और हर आताताई को
अपने समक्ष
घुटने टेकने के लिए
विवश कर पाती !
तुमने जब उसके नयनों में
बहाने के लिए
अगाध प्यार, ममता और
करुणा का गहरा सागर
भर दिया तो उसके
नैनों के तरकश में
अनवरत रूप से चलने वाले
अक्षय अग्नेयास्त्र भी
क्यों नहीं भर दिये
कि वह हर पापी को उसके
पाप का दण्ड वहीं दे
न्याय कर पाती ,
और ऐसे कई असुरों को
अपने अग्निबाणों से
भस्म कर इस धरा को
पापियों से मुक्त कर पाती !
तुमने जब संसार के
सबसे बड़े वरदान
मातृत्व का सुख उठाने के लिए
उसके शरीर में कोख बनाई
तो क्यों नहीं उसके शरीर में
ऐसी शक्तिशाली
विद्युत तरंगें भी डाल दीं
कि गंदे इरादों से उसे स्पर्श
करने वालों को छूते ही
कई हज़ार वाट का
झटका लग जाता
और वह वहीं का वहीं
ढेर हो जाता ,
और यह संसार एक
हिंसक एवं आक्रामक
आदमखोर पशु के बोझ से
उसी वक्त हल्का हो जाता !

बोलो प्रभु
मानते हो ना
भूल तो तुमसे भी हुई है !
है ना?

साधना वैद

शनिवार, 28 जुलाई 2012

देखती है दुनिया...



अडिग अटल .... कुछ हटकर - हमेशा नज़रों में आता है
फिर होती है परीक्षा , हर कोई डिगाना चाहता है
दुनिया मौन को भी नहीं बक्शती !

रश्मि प्रभा

देखती है दुनिया...



कभी एक सड़क के किनारे एक भिखारी बैठा करता था... वो हमेशा भीख में १ रु. का सिक्का ही लेता था, कोई ज्यादा देना भी चाहे, तो मना कर देता था... एक दिन एक व्यक्ति उसकी परीक्षा लेने के उद्देश्य से उसके पास गया और उसे १०००/- का नोट निकाल कर देने लगा...उस भिखारी ने इंकार की मुद्रा में सिर हिलाते हुए व्यक्ति की तरफ मुस्कुरा कर देखा...
व्यक्ति ने हैरत से पूँछा, "क्यों नहीं ?"...
भिखारी ने उसी तरह मुस्कराहट को होंठों पर सजाये रखा और धीरे से जवाब दिया,
"बाबूजी, आप भी मुझे १०००/- का नोट इसलिए दे रहे हैं, क्योंकि आपको पता है कि मैं लूँगा नहीं... आप जैसे कई आते हैं मेरी परीक्षा लेने के लिए... कई तो रोज इसी चाहत में आते हैं कि किसी दिन तो मेरा ईमान डिगेगा और १/- का सिक्का देकर चले जाते हैं... अगर मैं यहाँ सिर्फ भीख मांगने बैठा होता, तो कोई ५० पैसे का सिक्का भी नहीं देता, उलटे दुत्कार कर और चला जाता..."
" ये दुनिया एक भीड़ है, बाबूजी और जो भी इस भीड़ से अलग हटकर खड़े होने की हिम्मत दिखाता है, उसी को ये दुनिया देखती है और सिर माथे पर बैठाती है..."

शिक्षा:- दुनिया लीक पर चलने वालों को भाव नहीं देती, इसलिए लीक से हट कर चलने कि हिम्मत दिखाइए... एक कहावत भी है,

" लीक-२ गाड़ी चलै, लीकहि चलै कपूत..
ये तीनों उलटे चलें, शायर, सिंह, सपूत..."


डा. गायत्री गुप्ता 'गुंजन'
http://drgayatri10.blogspot.in/
http://jyotishaahvan.blogspot.in/
http://drgayatrigunjan.blogspot.in/

शुक्रवार, 20 जुलाई 2012

और मिल गयी मैं मुझको !



पता नहीं कब कहाँ मैं
मुझसे बिछड़ गयी हूँ
नहीं...किसी भीड़ में नहीं थी
फिर भी खो गयी हूँ !

पहले ढूँढा खुद को मैंने
उस तारीफों से भरे संदूक में
जो प्यार से कभी मिली थीं मुझे ....
अपनों से , अन्जानों से
बोहत संभालकर रखी थी मैंने
सारी की सारी ....यादों के लॉकर में
कुछ झूठी थीं...कुछ सच्ची थीं
छोटी-छोटी ही सही पर अच्छी थीं
मीठी -मीठी उन सौगातों में
सोचा शायद थोड़ी सी मिल जाऊं खुद को
ठीक से ढूँढा मैंने...
पर नहीं मिली मैं मुझको..................

फिर सोचा खोजूं खुद को
कविताओं में...नज्मों में
जो टांक दी थी मैंने....कागज़ के सीने पर ....
लगा ,शायद किसी शब्दों की इमारत तले
जान बूझकर....... दब गयी हूँ ?
या फिर भूल आई हूँ खुद को
गलती से ......किसी अधूरी ग़ज़ल में ?
या शायद बाँध दिया हो रूह को अपनी
किसी रूपक में .....बेवजह ही ...बावली हूँ ना
बहुत ढूँढा मैंने खुद को
लफ्ज़ दर लफ्ज़ ...
खंगाल डाला
ज़ज्बातों के समुंदर को
पर नहीं मिली मैं मुझको............

मेरी परछाईं भी तो लापता थी
रपट दर्ज थी उसकी भी दिल-ओ-दिमाग में
वर्ना उसी से पूछ लेती .....
फिर ख्याल आया
किसी की आँखों में ढूँढूं
शायद वहीँ महफूज़ होंगी
पर उतनी पास कोई कहाँ था …..
परेशां होकर ......दौड़कर फिर गयी
आईने के पास....
सोचा वहां तो ज़रूर पाउंगी खुद को
पर ये क्या …आईना भी खाली था ……
मेरे भीतर की तरह ...इकदम खोखला ....
और फिर नहीं मिली मैं मुझको .........

कबसे ढूंढ रही हूँ खुद को
हाथ की हथेलियों में
ज़िन्दगी की पहेलियों में
बीते हुए कल के अंधेरों में
आने वाले कल के कोहरों में
सब से तो पूछ लिया
सब जगह तो देख लिया ….
नहीं मिल रही ……मैं मुझको …………
नहीं मिल रही ……मैं मुझको …………

किसी ने बताया था मुझे …
मेरा पुराना पता ……
किसी छोटे से सपने के
बड़े से घरौंदे में रहती थी मैं
ख़ुशी -ख़ुशी …….तितलियों जैसी ..
खैर....अब वहां कोई दूसरा किरायेदार रहता है ….

घर लौटी जब थक हारकर
रोई खूब मैं फूंट-फूंट कर …
बोहत देर बाद अचानक किसी ने आकर
(खुदा ही होगा )
आँखों पर जैसे इक चश्मा पहनाया
पलकों पर जमी धूल हटाया
और दिखाया ………….
की किसी कोने में जब
बिखरी-बिखरी सी पड़ी थी मैं
तो माँ-पापा ने कैसे
टुकड़े -टुकड़े तिनका -तिनका जोड़कर मुझे
अपनी दुआओं में .......सहेज कर......... रख लिया था
पाँच साल की गुड़िया जैसे ........
पापा के अक्स की छाँव तले
माँ के आँचल में लिपटी
कितने सुकून से तो थी मैं
दुनिया की सबसे सलामत जगह पर ...
ना आँखों में डर था,ना दिल में बेचैनी
लगा की कहीं खोयी ही नहीं थी मैं कभी
हमेशा से वहीँ तो थी.....
माँ-पापा की दुआओं में............महफूज़!


सौम्या

गुरुवार, 19 जुलाई 2012

क्या आप को नहीं लगता की एक ब्लॉग अख़बार की जरुरत है




ब्लॉग जगत में यदि किसी चीज की बड़ी शिद्दत से कमी महसूस हो रही है तो वो है एक अदद ब्लॉग समाचारपत्र की, क्यों ? देखिये किसी समाचार पत्र की जरुरत क्यों होती है निश्चित रूप से ये जानने के लिए की कहा क्या हो रहा है अब हमारा हिंदी ब्लॉग जगत भी इतना बड़ा हो चूका है की हमें कभी कभी पता ही नहीं चलता है की हम जिन ब्लोगों पर जाते है उनके आलावा दूसरे ब्लोगों पर क्या हो रहा है कही दूर किसी ऐसे ब्लॉग पर जहा हम कभी गये ही नहीं या जहा ज्यादा लोग जाते ही नहीं वहा भी कुछ अच्छा बुरा हो सकता है वहा की हमें तो खबर ही नहीं लगती है | वहा की खबर लगे तो क्या पता कुछ और अच्छे पाठक हमें मिल जाये या कुछ ऐसे पाठक मिल जाये जो हमारे विचारो से मेल खाते हो और कुछ तारीफ वाली टिप्पणिया भी मिले इन विरिधियो के सवालो का जवाब दे देकर तो अब तंग आ चुके है या कुछ नया और अच्छा पढ़ने को मिले |
कई बार तो ये भी होता है की हम दो चार दिन के लिए ब्लोगिंग से दूर रहे और उसके बाद आये तो पता ही नहीं चलता है की हमारे पीछे क्या क्या हो गया और कोई जोरदार बहस चल रही होती है और हम अनाड़ियो की तरह तब पुछते है की क्या हुआ भाई हमें तो प्रसंग का पता ही नहीं चला जबकि बाकि धुरंधर दे दना दन एक से एक टिप्पणिया वहा दे कर महफ़िल लुट चुके होते है और हम अज्ञानियों की तरह बस सबको पढ़ने के सिवा कुछ नहीं कर पाते है , और कभी कभी किसी ब्लॉग पर कोई झन्नाटेदार विषय पर टिप्पणियों की बारिश हो रही होगी और हम उस पर तब पहुचते है जब मेले का डेरा तम्बू उखड रहा होता है तब लगता है की अब टिप्पणी देने से क्या फायदा काश की हमें पहले ही पता होता की यहाँ पर ये हो रहा है तो हम भी आग में थोडा घी डालते या नमक छिड़कते | अब क्या फायदा सारे बाजीगर तो अपनी बाजीगरी दिखा कर जा चुके है अब तो दर्शक भी नहीं मिलेंगे अब मेरी बाजीगरी कौन देखेगा या कभी लगता है की अरे इतने अच्छे विषय का भी लोगों ने विरोध किया है और सबके विरोध से डर कर अकेला बेचारा लिखने वाला ब्लोगर सबसे माफ़ी मांगे जा रहा है या कुछ घिसा पीटा सा सफाई दे रहा है , तो लगता है की हाय हम यहाँ होते तो लेखक का भरपूर साथ देते और सभी विरोध करने वालो की अकेले बैंड बजा देते और कभी कभी तो ये भी होता है की बेचारा कोई ब्लोगर किसी एक पोस्ट पर आहात हो कर एक अपनी पोस्ट डाल देता है " आज मन बड़ा उदास है " टाईप और पढ़ने वाले बेचारे अपना सर नोचते रहते है की भाई बताया नहीं की हुआ क्या और बस मन उदास है बताओगे की मन क्यों उदास है तब तो कुछ कहा जाये |
मतलब की ये की इस तरह की ढेरो ऐसे कारण है जिसके लिए लगता है की एक ऐसा समाचारपत्र ब्लॉग जगत में तो होना ही चाहिए जो हम सभी को पूरे ब्लॉग जगत की खबर दे जैसे घर बैठे ही अखबार हमें पूरी दुनिया की खबर देते है | बस उस ब्लॉग अखबार पर जाओ और हमें पता चल जाये की कहा कहा कुछ खास हो रहा है कहा जोरदार बहस हो रही है, कहा लड़ाई हो रही है, कहा पर सब मिल कर एक को धो रहे है, कहा पर कुछ गासिप चल रही है और कहा किस चीज के मजे लिए जा रहे है , ताकि हम भी समय रहते वहा जा कर अपनी टिप्पणियों की आहुति दे सके और पूरे प्रसंग का मजा उठा सके | जरूरत हुआ तो बहती गंगा में हाथ धो लेंगे या कोई पुराना हिसाब चुकता कर लेंगे या चुप चुप मजे ले कर चल देंगे, ब्लॉग जगत में हम से कुछ भी छूटे नहीं |
भाई आज कल संचार का खबरों का जमाना है वो दिन गये जब लोग कहा करते थे की जिस गांव जाना नहीं वहा का पता क्या पूछना | अब तो लोग ढूंढ़ ढूंढ़ कर पिपिली जैसे गांव के बारे में भी खबर रखते है | भाई ऐसा ना हो की विद्वानों की कोई सभा हो और हम कहे की जी हमें पता ही नहीं की मल्लिका शेरावत कौन है | कभी रेखा के दीवाने रहे लोगों को आज भले पता ना हो की रेखा कहा क्या कर रही है पर मल्लिका ,राखी कैटरीना कहा क्या कर रही है सभी को पता रहती है भाई खबरे रखने का जमाना है | खबरे काम आती है क्या कहा ई खबरे कहा काम आती है अब ई भी हम ही बताये|
अपना ब्लॉग जगत अब इतना बड़ा हो गया है की किसी साप्ताहिक पत्रिका से काम नहीं चलेगा इसके लिए तो रोज का एक बुलेटिन चाहिए | जहा तक मेरी समझ है एक बार रोज का बुलेटिन शुरू तो हो जाये कुछे दिन में उसको दिन में दो बार अप डेट करने की नौबत आ जायेगी | ई ना सोचे की मैटेरियल की कमी है भरपूर मैटेरियल यहाँ मिल जायेगा बल्कि लगता है की एक बार शुरू तो हो उसके बाद फिर देखिएगा कैसे धड़ा धड पेज बढाना पड़ेगा | दो चार दिन में ही सभी को इसके फायदे नजर आने लगेंगे | आज की ताजा खबर फलाने के ब्लॉग पर कल दोपहर से एक जोरदार बहस चालू है समाचार लिखे जाने तक टिप्पणियों की संख्या ६० के पार पंहुच चुकी थी | लो जी अख़बार निकने के दो घंटे बाद है टिप्पणियों की संख्या १०० के पार | बहस शुरू करने वाला ब्लोगर सीना फुलाए कहेगा वहा आज तो मेरा ब्लॉग फ्रंट पेज पर था |
कुछ और मुख्य समाचार ऐसे होंगे की फला ब्लॉगर ने हास्य के फुहारों से सभी को भिंगो दिया या ढेकाने ब्लॉग पर का और ख के बीच घमासान छिड़ा हुआ है ,या जनानियों के ब्लॉग पर दो जनानियों और एक जन आपस में भिड़े पड़े है या इस ब्लॉग पर इनकी टिप्पणी से ये आहात हुए या उनका उपहास उड़ाया गया या फिर उनकी टिप्पणी से आहत हो उन्होंने एक पूरी पोस्ट ही दे मारी ,या आज तीसरे दिन भी दोनों ब्लोगरो में पोस्ट प्रति पोस्ट जारी है और अब तो उसमे ई ई ब्लोगर भी शामिल हो कर एक ही विषय में चार और पोस्ट ठेल दी है पाठक झेल सके तो झेल ले , ये हास्य के राजा फला ब्लोगर ने सभी को हंसा हंसा कर लोट पोट कर दिया | अब देखिये कैसे बहस ,वाद विवाद, झगड़ो ,हास परिहास और व्यंग्य से दूर भागने वाले और सार्थक निरर्थक बहस पोस्ट पर बहस करने वाले ब्लोगर भी कैसे इस तरह की पोस्ट के इंतजाम में लग जायेंगे जिसमे अच्छी खासी बहस झगड़े की गुन्जाईस हो | तब लोग इस बात पर बुरा नहीं मानेगे की आप को बहस की आदत है तब लोग कहेंगे की आप की आदत बड़ी ख़राब है आप बहस नहीं करते है | यदि ये नहीं करेंगे तो साहित्य की सेवा कैसे करेंगे विषय को ऊपर कैसे उठाएंगे |
अब जब बात फ्रंट पेज की हुई है तो पेज थ्री की बात ना हो हो ही नहीं सकता है कोई भी अख़बार बिना पेज थ्री के पूरी हो सकती है क्या | पेज थ्री पर होगा ब्लोगर मिट की फोटो और उससे जुड़े मजेदार चटकारी खबरे | अब ये मत पूछियेगा की चटकारी खबरे क्यों ???? तो पता दू पेज थ्री लोग चटखारी खबरों और रंगीन फोटो के लिए ही देखे उप्स पढ़े जाते है | कई बार ये भी होता है कि कही कोई ब्लोगर मिट हो जाती है और कुछ लोग बेचारे जो काफी दोनों से इसकी बाट जोह रहे होते है उनको पता ही नहीं चलता है | उन बेचारो को तब पता चलता है जब मिट पर पोस्टे आने लगती है | समाचार पत्र निकालने से ये भी फायदा होगा की एक कालम इसके लिए बुक रहेगा जिसपे सिर्फ ये बताया जायेगा की देश के किस हिस्से में कहा कब कोई ब्लोगर मिट होने वाला है | जिसे भी ब्लोगर मिट में जाने की ज्यादा इच्छा है वो इस कालम को पढ़ पढ़ कर सभी मिटो में लोगों से मिट कर सकता है वैसे ब्लॉग जगत में ऐसे मिटनसार लोगों की कोई कमी नहीं है , उनके लिए ये बड़ा काम का होगा और बोनस में फोटो छपेगी वो अलग | बस आप को अपने मिट को कुछ मजेदार चटकारेदार बनाना होगा और कुछ खास बड़का, महान, विवादित ब्लोगरो को बुलाना होगा ताकि खबर भी बने और फोटो देखने को सभी ब्लोगर उत्सुक भी रहे | यदि ई सब माल मसाला आप के ब्लोगर मिट में नहीं होगा तो आप के मिट को डाल दिया जायेगा कही किसी पीछे के पेज पर | सोचिये ब्लॉग अखबार प्रकाशित होने के बाद होने वाले ब्लोगर मिट कितने धमाकेदार हुआ करेंगे | भाई पेज थ्री पर आने का मजा ही कुछ और होता है |
अब अख़बार है तो कुछ एक्सक्लूसिव खबरे भी होंगी ही जैसे कई बार ये भी होता है की टिप्पणी देने के बाद उस पर विवाद होता है और टिप्पणी और कभी कभी तो पूरी पोस्ट ही हटा दी जाती है | बेचारे बाद में आये पाठको को पता ही नहीं चलता की क्या कहा गया किसने क्या क्या कहा बेचारे मन मसोस कर रह जाते है की एक मजेदार धमाकेदार जानदार और जितने भी दार वाली पोस्ट और टिप्पणी को पढ़ने से वंचित रह गए | तो ये अखबार ऐसी पोस्टो को संभाल कर रखेगा एक एक टिप्पणी सहित | ब्रेकिंग न्यूज फलाने की हटाई गई विवादित टिप्पणी और पोस्ट पूरी की पूरी एक्सक्लूसिव पोस्ट हमारे पास है | बच्चे, महिलाओ और सभ्य, परिवार वाले शाकाहारियो के लिए रात ११ के पहले फ़िल्टर वर्जन बीप के साथ पढ़े और ज्यादा मनोरंजन चाहने वाले मासाहार पसंद करने वालो के लिए रात ११ के बाद पूरी पोस्ट और टिप्पणी लेकिन अपने रिस्क पर पढ़े |
फिर कुछ लोगों को ये चिंता रहेगी की यहाँ भी गुटबाजी होगी अपने लोगों को अखबार में ज्यादा जगह दी जाएगी | तो फिर उसके जवाब में कुछ और नए अखबार निकलेंगे प्रतियोगिता बढ़ेगी ज्यादा से ज्यादा ब्लोगों को अपने अखबार में जगह दे कर पाठक अपनी तरफ खीचा जायेगा और हम ब्लोगरो की बल्ले बल्ले हो जाएगी | फिर तो किसी के आगे हाथ पैर नहीं जोड़ने पड़ेंगे की भईया ब्लॉग अग्रीगेटर चालू करो चालू करो | अखबार होगा तो विज्ञापन भी मिलेगा और कमाई भी होगी फिर ना कोई बस ऐवे ही एक दिन सब बंद बूंद कर चल देगा |
अब रही बात की खबर लाने के लिए रिपोर्टर कहा से आयेंगे सारे ब्लोगों पर नजर रखेगा कौन तो मुझे नहीं लगता है की अखबार निकालने वालो को संवाददाता की कमी होगी अरे भाई हर ब्लोगर खुद रिपोर्टर होगा और अपनी खबरे खुद अख़बार मालिक तक पहुचायेगा जितनी मजेदार, धमाकेदार, झन्नाटेदार ब्लॉग होगा उसे ज्यादा जगह मिलेगी | कम से कम ब्लॉग जगत से थोड़ी नीरसता चली जाएगी जो कुछ कुछ समय बाद वापस आ जाती है ना कोई ढंग का विवाद ना कोई बहस ना कोई ढंग का झगडा और सबसे बुरी बात काफी समय से कोई ढंग का लफडा भी नहीं सुना | ब्लॉग अखबार इस बोझिलता नीरसता को दूर करेगी |
बोलिये आप का क्या ख्याल है |


अंशुमाला
http://mangopeople-anshu.blogspot.in/
मैंगो पीपल यानी हम और आप वो आम आदमी जिसे अपनी हर परेशानी के लिए दूसरो को दोष देने की बुरी आदत है . वो देश में व्याप्त हर समस्या के लिए भ्रष्ट नेताओं लापरवाह प्रसाशन और असंवेदनशील नौकरशाही को जिम्मेदार मानता है जबकि वो खुद गले तक भ्रष्टाचार और बेईमानी की दलदल में डूबा हुआ है. मेरा ब्लाग ऐसे ही आम आदमी को समर्पित है और एक कोशिश है उसे उसकी गिरेबान दिखाने की.

रविवार, 15 जुलाई 2012

संभाल लो, संभल जाओ आज !




कुछ दिनों पहले हमारे देश के एक हिस्से में एक लड़की के साथ कुछ लोगों ने जो बदसलूकी की वो बड़े ही शर्म की बात है | आजादी के इतने साल बाद भी ऐसी स्थिति देखकर बहुत दुःख होता है | देश के कई अन्य हिस्सों से लड़कियों और महिलाओं के खिलाफ ऐसे अमानवीय व्यवहार की खबर आए दिन अखबारों, समाचार पत्रों में पढ़ने को मिल ही जाता है | हमें बचपन में एक श्लोक पढ़ाया जाता था "यत्र नारी पूज्यते ,तत्र देवता रमन्ते" जिसका मतलब आपलोगों को तो पता ही होगा फिर भी मैं यहाँ लिख देता हूँ कि "जहाँ नारी की पूजा होती है वहीं ईश्वर का वास होता है " | अब पूजा का मतलब अगरबती और धुप दीप से पूजा करने से तो है नहीं इतना तो सबको पता ही होगा | ज्यादा लिखने का कोई मतलब नहीं बनता | लिखने वालों ने कितना लिखा और हमारी इलेक्ट्रोनिक मीडिया ने गुवाहाटी वाली खबर को बड़े सक्रिय होकर दिखाया भी | धन्यवाद और साधुवाद ! इस मीडिया को | कई 'पशु' वहाँ मौजूद थे ('पशु' का मतलब तो समझते ही होंगे आप) जो उस लड़की के साथ अपनी 'जाति' के हिसाब से बर्ताव कर रहे थे | अब पशुओं से इंसानियत की आशा रखना ये तो मूर्खता ही है, बोलिए है की नहीं .... | कुछ 'पशुओं' को तो गिरफ्तार कर लिया गया है लेकिन अभी भी कुछ स्वतंत्र घूम रहे हैं | ऐसे पशु हमारे समाज और देश दोनों के लिए खतरा हैं | इनकी स्वतंत्रता और प्रशासन की निष्क्रियता दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं | हाँ, हमारी पुलिस, प्रशासन और सरकार भी तभी सक्रिय होती है जब ये मीडिया सक्रिय होता है क्यूँकी सरकार के अन्य मीडियम (तात्पर्य 'माध्यम' से है ) तो काम करते नहीं, जंग लग चुकी है उनमें | सरकार की कोई गलती नहीं, गलती तो मीडिया की है जो इतनी देर बाद खबर दिखाती है | 'लाईव' दिखाते तो शायद सारे पशु अभी जेल में होते | मैंने कुछ गलत कहा क्या .... गलती के लिए माफ़ी चाहूँगा ! प्रशासन को कुछ कहना बेकार है क्यूँकी उनके कानों पर तो जूं रेंगने से रही | और एक बात, ये तो देश के एक हिस्से में होने वाली घटना है जो मीडिया में आई और हमें पता चला, पर आए दिन ऐसी कई घटनाएँ हमारे देश के विभिन्न हिस्सों में घटती रहती हैं | लड़कियों, महिलाओं के साथ ऐसे कई दुर्व्यवहार सुनने को मिल ही जाते हैं | हमारे देश में जहाँ नारी नर से पहले आती है , जहाँ 'राम-सीता', 'कृष्ण-राधा' न कहकर 'सीता-राम' और 'राधे-कृष्ण' बुलाते हैं, जहाँ अपनी धरती को हम 'माँ' का दर्जा देते हैं वहाँ किसी भी नारी के साथ अमानवीय व्यवहार और उसे अपमानित करना एक तरह से भारत माता का अपमान है और हम सब के लिए शर्म की बात | कहीं ना कहीं हम आप भी इसके जिम्मेवार हैं (कहने का तात्पर्य 'आम इंसान' से है, अन्यथा ना ले), क्यों जरा सोचिये .... सोचने के लिए मैंने आप पर छोड़ दिया ! बस अपनी कुछ पँक्तियों के साथ अपनी बातों को विराम देना चाहूँगा, शायद किसी की इंसानियत जाग उठे ......

ये कैसा दृश्य है
'मानवता' अदृश्य है
अभिशापित, कलंकित
हुई सी रात
मर गया था शहर
मर गए थे जज्बात
बेच आए थे 'वो' शर्म
एक अकेली पर
मिलकर सारे
दिखा रहे थे दम
शर्म करो बुजदिलों
शर्म करो शर्म
सुनता आ रहा हूँ कि
होता जहाँ नारी का सम्मान
बसते हैं वहीं भगवान
तेरे इस कृत्य ने
किया है भारत माता का अपमान
सुन लो
ओ राष्ट्र के कर्ता धर्ता !
हो सके तो
अपना 'पुरुषार्थ' जगाओ
और नारी का 'सम्मान' बचाओ
और हे इंसान!
अगर तुम 'जिंदा' हो
और जाग रहे हो
तो 'सबूत' दो
आवाज लगाओ
हाथ मिलाओ
और ऐसे 'कुकृत्यों'
को जड़ से मिटाओ
तुम्हारे हाथों में है
भारत की 'लाज'
देर ना हो जाए कहीं
संभाल लो,
संभल जाओ आज !


शिवनाथ कुमार

गुरुवार, 12 जुलाई 2012

मेरी चार ग़ज़लें (व्यंग्य-यात्रा-नवंबर २०११ अंक से साभार )



१.
साठ-सत्तर फीसदी दर पर खरीदी जाएंगी
और फिर ताबूतों में सब बंद कर दी जाएंगी.

वाह री किस्मत, किताबें हिंदी में साहित्य की
अब दहाई में बड़ी मुश्किल से बेचीं जाएंगी.

ज़िन्दगी अपनी खपा कर चल दिए लिख-लिख के जो,
खावाहिशें उनकी सुना है बस अधूरी जाएंगी.

चार, छह तमगे, समोसे, चाय और कुछ तालियाँ
लेखकों के साथ अब ये चंद चीजें जाएंगी.

सोचता हूं, क्या करेगा आदमी बाज़ार में
जब सभी संवेदनाएं जब्त कर ली जाएंगी.

२.

वह कहता था, वह शब्दों की खेती करता है.
और ज़िन्दगी जीते-जीते, पल-पल मरता है.

खुद्दारी पहचान बनी जब से उसकी, तब से
हर आईना उससे नज़र मिलाते डरता है.

अस्पताल में एक दिन शैया पर वह पड़ा हुआ
लगा पूछने -'खोटा सिक्का कब तक चलता है?

उसको अक्सर ही दौरे आते ठे अजब-अजब,
जिन्हें ज़माना बहुत बड़ा पागलपन कहता है.

बुरे वक्त में एक कलम की पूँजी थी उसकी,
पास अदीबों के इससे ज्यादा क्या रहता है?

३.

सच कहा साहित्य से रोटी नहीं चलती.
क्या करूँ, मन पर ज़बरदस्ती नहीं चलती.

ज़िन्दगी में दुःख लिखे हैं तो चलो ये ही सही,
ज़िन्दगी में हर समय मस्ती नहीं चलती.

वो नदी हो या समंदर पर सुना हमने यही
हौसलें टूटे हों तो कश्ती नहीं चलती.

शौक से पाला है जिसने भी जुनूँ फनकारी का
उसके पेशे में कभी ज़ल्दी नहीं चलती.

जिसको जो देना था उसने वो खुशी से दे दिया
उसके आगे आपकी मर्ज़ी नहीं चलती.

४.

वो जहां होगा मचायेगा वहां पर शोर ही.
रोशनी को खींच कर लाएगा कोई और ही.

देख लो इतिहास का पन्ना कोई भी खोल कर
इंकलाबी पहला होगा बस कोई कमज़ोर ही.

रहनुमाई में रखा है मुझको जब से आपने
जानलेवा लग रहा है अपने मुंह का कौर ही.

वो तरक्की क्या संवारेगी हमारी ज़िन्दगी
जो हमें लगती रही ताउम्र आदमखोर ही.

-रमेश तैलंग

मंगलवार, 10 जुलाई 2012

सपने



कल रात मुझे पता चला
सपनों में भी कविताएं बनती है
सपनों की धुंधली आकृतियाँ
स्मृतियों के कोहरे से बनती है
कल रात उसने मुझे सपनों में घुसकर जगाया
मैं बुदबुदाई और ज़ोर से चिल्लाई
" माँ, मैं झूठ नहीं बोल रही
...... मेरा घर मत तोड़ो"
पास में सोये मोनू ने कहा मम्मी
तभी मेरी जीभ उलट गई
और आवाज धीमी होते होते मैं फिर सो गई

कल ही मुझे पता चला सपनों की
एक दुनिया होती है
जिसमे नायक
खलनायक और साधारण पात्र होते है
लड़ते है ,झगड़ते है
रोते है ,हँसते है
मगर किसी का कुछ नहीं बिगड़ता
सभी अक्षुण्ण

पर असली दुनिया में हाहाकार
शोरगुल आपाधापी
सारी अवस्थाएँ बदलती है
मनोरोग से प्रेमरोग
प्रेमरोग से मृत्युयोग
नेपथ्य बदल जाता है
सारे पात्र झूठे
सारे संवाद खोखले

काश ! सपनों की दुनिया लंबी होती !



अलका सैनी

रविवार, 8 जुलाई 2012

संधियों में जीवन



संधियों में जीवन



लगातार कलह
मानसिक ऊर्जा का
शोषण करती है
परस्पर संवाद रोक कर
आगे बढ़ने के
मार्ग अवरुद्ध करती है
बस इसी लिए
हताशा में
संधिया करनी पड़ती हैं।

संधियों की वैशाखियोँ पर
जीवन आगे तो बढ़ता है
अविश्वासों का मगर
सुप्त ज्वाला मुखी
भीतर ही भीतर
आकार ले कर
भरता रहता है
यह कब फट जाए
आदमी इस संदेह से
डरता रहता है ।

इसी बीच
अहम और वहम
आपस में टकराते है
इस टकराहट में
संधिया चटख जाती हैं
संधियों पर खड़े
आपसी सम्बन्ध
संधियों के टूटते ही
बिखर जाते हैं ।

बहुत पहले
कह गए थे रहीम
"धागा प्रेम का
मत तोड़ो
टूटे से ना जुड़े
जुड़े गांठ पड़ जाए "
आज मगर धागे
गांठ गंठिले हो गए
आदमी अहम के हठ में
कितने हठिले हो गए !


ओम पुरोहित'कागद'

शब्द यात्रा करते हैं और वे इस यात्रा में संवेदना अंवेरते अपना अर्थ पाते हैं । मैं तो बस उन शब्दों का पीछा करता हूँ .... अक्षरों के बीज जाने किसने बो दिए पानी देते-देते हमने जिंदगी गुजार दी । कोरा कागद है मन मेरा और जिंदगी तलाश है कुछ शब्दों की...

शुक्रवार, 6 जुलाई 2012

ब्लॉग महिमा



इन्द्र परेशान बैठे थे. माथे पर 'तिरशूल' के जैसे तीन-तीन बल पड़े हुए थे. बहुत कोशिश करने के बाद भी विश्वामित्र की तपस्या इस बार भंग नहीं हो रही थी. मेनका लगातार बहत्तर घंटे डांस करके अब तक गिनीज बुक में नाम भी दर्ज करवा चुकी थी लेकिन विश्वामित्र टस से मस नहीं हुए. मेनका के हार जाने के बाद उर्वशी ने भी ट्राई मारा लेकिन विश्वामित्र तपस्या में ठीक वैसे ही जमे रहे जैसे राहुल द्रविड़ बिना रन बनाए पिच पर जमे रहते हैं. उधर मेनका और उर्वशी से खार खाई रम्भा खुश थी.

इन्द्र को समझ नहीं आ रहा था कि अब क्या किया जाय. दरबारियों और चापलूसों की मीटिंग बुलाई गई. मीटिंग बहुत देर तक चली. बीच में लंच ब्रेक भी हुआ. आधे से ज्यादा दरबारी केवल सोचने की एक्टिंग करते रहे जिससे लगे कि वे सचमुच इन्द्र के लिए बहुत चिंतित हैं. काफी बात-चीत के बाद एक बात पर सहमति हुई कि इन्द्र को उनके मजबूत पहलू को ध्यान में रखकर ही काम करना चाहिए. दरबारियों ने सुझाव दिया कि चूंकि इन्द्र का मजबूत पहलू डांस है सो एक बार फिर से डांस का सहारा लेना ही उचित होगा. डांस परफार्मेंस के लिए इस बार रम्भा को चुना गया. मेनका और उर्वशी इस चुनाव से जल-भुन गई. लेकिन कुछ किया नहीं जा सकता था. रम्भा ने तरह तरह के शास्त्रीय और पश्चिमी डांस किए लेकिन विश्वामित्र जमे रहे. उन्होंने रम्भा की तरफ़ देखा भी नहीं. हीन भावना में डूबी रम्भा ने एक लास्ट ट्राई मारा. मशहूर डांसर पाखी सावंत का रूप धारण किया और तीन दिनों तक फिल्मी गानों पर डांस करती रही लेकिन नतीजा वही, धाक के तीन पात. रम्भा को वापस लौटना पडा. रो-रो कर उसका बुरा हाल था. उसे अपनी असफलता का उतना दुख नहीं था जितना इस बात का था कि उर्वशी और मेनका अब उठते-बैठते उसे ताने देंगी.

प्लान फेल होने से इन्द्र दुखी रहने लग गए. सप्ताह में तीन चार दिन तो दारू चलती ही थी, अब सुबह-शाम धुत रहने लगे. लेकिन उनके प्रमुख सलाहकार को अभी तक नशे की लत नहीं लगी थी. काफी सोच-विचार के बाद वो एक दिन चंद्र देवता के पास गया. वहाँ पहुँच कर उसने पूरी कहानी सुनाई और साथ में चंद्र देवता से सहायता की मांग की. चंद्र देवता की गिनती वैसे ही इन्द्र के पुराने साथियों में होती थी. सभी जानते थे कि चन्द्र देवता इन्द्र के कहने पर एक बार मुर्गा तक बन चुके थे. वे इन्द्र के लिए एक बार फिर से पाप करने पर राजी हो गए.

चंद्र देवता रात की ड्यूटी करते-करते परेशान रहते थे, सो वे बाकी का समय सोने में बिताते थे. लेकिन इन्द्र की सहायता की जिम्मेदारी जो कन्धों पर पड़ी तो नीद और चैन जाते रहे. दिन में भी बैठ कर सोचते रहते थे कि 'इस विश्वामित्र का क्या किया जाय. इन्द्र के सलाहकार को वचन दे चुका हूँ. इन्द्र को भी दारू से छुटकारा दिलाना है नहीं तो आने वाले दिनों में पार्टियों का आयोजन ही बंद हो जायेगा.' एक दिन बेहद गंभीर मुद्रा में चिंतन करते चंद्र देवता को 'नारद' ने देख लिया. देखते ही नारद ने अपना विश्व प्रसिद्ध डायलाग दे मारा; "नारायण नारायण, किस सोच में डूबे हैं देव?"

"अरे ऋषिवर, बड़ी गंभीर समस्या है. वही इन्द्र और विश्वामित्र वाला मामला है. इसी सोच में डूबा हूँ कि इन्द्र की मदद कैसे की जाए. वैसे, ऋषिवर आप से तो देवलोक, पृथ्वीलोक, ये लोक, वो लोक सब जगह घूमते रहते हैं. आप ही कोई रास्ता सुझायें. इस विश्वामित्र की क्या कोई कमजोरी नहीं है?"; चंद्र देवता ने लगभग गिडगिडाते हुए पूछा.

"नारायण नारायण. ऐसा कौन है जिसकी कोई कमजोरी नहीं है. वैसे आप तो रात भर जागते हैं, लेकिन आप भी नहीं देख सके, जो मैंने देखा"; नारद ने चंद्र देवता से पूछा.

"हो सकता है, आपने जो देखा वो मुझे इतनी दूर से न दिखाई दिया हो. वैसे भी आजकल जागते-जागते आँख लग जाती है. लेकिन ऋषिवर आपने क्या देखा जो मुझे दिखाई नहीं दिया?"; चंद्र देवता ने पूछा.
"मैंने जो देखा वो बताकर इन्द्र की समस्या का समाधान कर मैं ख़ुद क्रेडिट ले सकता हूँ. लेकिन फिर भी आपको एक चांस देता हूँ. आज रात को ध्यान से देखियेगा, ये विश्वामित्र एक से तीन के बीच में क्या करते हैं"; नारद ने चंद्र देवता को बताया.

रात को ड्यूटी देते-देते चंद्र देवता विश्वामित्र की कुटिया के पास आकर ध्यान से देखने लगे. उन्हें जो दिखाई दिया उसे देखकर दंग रह गए. उन्होंने देखा कि विश्वामित्र अपने ब्लॉग पर पोस्ट लिख रहे हैं. पोस्ट पब्लिश करके वे और ब्लॉग पर कमेंट देने में मशगूल हो गए. चंद्र देवता को समझ में आ गया कि नारद का इशारा क्या था.

दूसरे ही दिन इन्द्र के सलाहकार ने इन्द्र का एक ब्लॉग बनाया. ब्लॉग पर पहले ही दिन विश्वामित्र की निंदा करते हुए इन्द्र ने एक पोस्ट लिखी. साथ में विश्वामित्र के ब्लॉग पोस्ट पर उन्हें गाली देते हुए कमेंट भी लिखा. कमेंट और पोस्ट का ये सिलसिला शुरू हुआ तो विश्वामित्र का सारा समय अब पोस्ट लिखने, इन्द्र के गाली भरे कमेंट का जवाब देने और इन्द्र के ब्लॉग पर गाली देते हुए कमेंट लिखने में जाता रहा. उनके पास तपस्या के लिए समय ही नहीं बचा.

विश्वामित्र की तपस्या भंग हो चुकी थी. इन्द्र खुश रहने लगे.


शिव कुमार मिश्र
पेशे से अर्थ सलाहकार. विचारों में स्वतंत्रता और विविधता के पक्षधर. कविता - हिन्दी और उर्दू - में रुचि. दिनकर और परसाई जी के भीषण प्रशंसक.
अंग्रेजी और हिन्दी में अश्लीलता के अतिरिक्त सब पढ़ लेते हैं - चाहे सरल हो या बोझिल.

बुधवार, 4 जुलाई 2012

आम का मौसम और तुम्हारी यादें



वो पहली बारिश का सोंधापन
वो बाग़ में आमों का झुरमुट
पेड़ पर चढ़ना और डालियाँ हिलाना
फिर पूछना तुमसे,
क्या कोई पका आम गिरा है
कोई जवाब न मिलना
और तुम्हारा कच्चे आमों पर लट्टू होना
कच्ची उम्र की तमाम यादें
इंटर या बीए के साल की
जब पहली बार बेहाल हुए थे
हाँ-हाँ उसी साल की

बदलते मौसम में तुम्हारा मेरे गाँव आना
बरसती बूंदों सा मुझ पर छा जाना
और तुम्हारे जाते ही गाँव का मौसम बदल जाना
फिर अगले साल तक पहली बारिश का इंतज़ार
और पहली जून से ही मेरा बेचैन हो जाना
बीत चुके हैं बरसों तुम्हे आये मेरे गाँव में
पर यादों का मौसम आबाद है तुम्हारी यादों से
लगता है जैसे सब कल ही की तो बात है

कभी फुरसत निकालो, फिर आओ
मेरे गाँव का मौसम बदल जाओ
हमने भी कई आम के पेड़ लगाये हैं
उनकी शाखों पर झूमती तुम्हारी अदाएं है


दीपक की बातें

जिंदगी के सफर पर निकला एक मुसाफिर। क्रिकेट और सिनेमा का लती हूं। अयोध्‍या सिहं उपाध्‍याय हरिऔध और कैफी आजमी जैसी अजीम शख्सियतों के शहर आजमगढ़ का बाशिंदा हूं। लोगों से मिलना और बातें करना खूब भाता है। पत्रकारिता जगत में कलम घिसकर रोजी-रोटी चला रहा हूं। फिलहाल इंदौर शहर पत्रिका ग्रुप का दोपहर का अखबार न्‍यूज टुडे ठिकाना है। इससे पहले दैनिक जागरण ग्रुप के बाईलिंग्‍वल आई नेक्‍स्‍ट में कानपुर और आज अखबार में भी नौकरी।