घर में वेद हो,पुराण हो, नवरस की खान हो,
तो शब्द कई मील के पत्थर बनाते हैं .......
आशीष राय जी की
युग दृष्टि कलम से मिलते हैं -
किसी रोज मैं भी,
दवात में, अम्मा के
पैरों की धूल,
भर लाऊंगा।
उस दिन लिखेगी,
कलम महाग्रंथ कोई।
मैं भी वाल्मीकि,
बन जाऊँगा। … हैं न कमाल के एहसास ? :)
दवात में, अम्मा के
पैरों की धूल,
भर लाऊंगा।
उस दिन लिखेगी,
कलम महाग्रंथ कोई।
मैं भी वाल्मीकि,
बन जाऊँगा। … हैं न कमाल के एहसास ? :)
विश्व वैचित्र्य
कही अतुल जलभृत वरुणालय
गर्जन करे महान
कही एक जल कण भी दुर्लभ
भूमि बालू की खान
उन्नत उपल समूह समावृत
शैल श्रेणी एकत्र
शिला सकल से शून्य धान्यमय
विस्तृत भू अन्यत्र
एक भाग को दिनकर किरणे
रखती उज्जवल उग्र
अपर भाग को मधुर सुधाकर
रखता शांत समग्र
निराधार नभ में अनगिनती
लटके लोक विशाल
निश्चित गति फिर भी है उनकी
क्रम से सीमित काल
कारण सबके पंचभूत ही
भिन्न कार्य का रूप
एक जाति में ही भिन्नाकृति
मिलता नहीं स्वरुप
लेकर एक तुच्छ कीट से
मदोन्मत्त मातंग
नियमित एक नियम से सारे
दिखता कही न भंग
कैसी चतुर कलम से निकला
यह क्रीडामय चित्र
विश्वनियन्ता ! अहो बुद्धि से
परे विश्व वैचित्र्य.
विश्व छला क्यों जाता ?
तारो से बाते करने
हँस तुहिन- बिंदु है आते
पर क्यों प्रभात बेला में
तारे नभ में छिप जाते ?
शशि अपनी उज्जवलता से
जग उज्ज्वल करने आता
पर काले बादल का दल
क्यों उसको ढकने जाता ?
हँस इन्द्रधनुष अम्बर में
छवि राशि लुटाने आता
पर अपनी सुन्दरता खो
क्यों रो -रोकर मिट जाता
खिल उठते सुमन -सुमन जब
शोभा मय होता उपवन
पर तोड़ लिए जाते क्यों
खिल कर खोते क्यों जीवन ?
दीपक को प्यार जताने
प्रेमी पतंग है जाता
पर हँसते हँसते उसको
क्यों अपने प्राण चढ़ाता ?
सहृदय जीव ही आखिर क्यों
तन मन की बलि चढ़ाता
विश्वास शिराओं में गर बहता
फिर विश्व छला क्यों जाता ?