कुछ चेहरे - जिनके लिए 'पुराना' शब्द मौन है और 'नया' मुखर :) … कुछ बातें, कुछ चेहरे, कुछ गीत,कुछ दृश्य कभी पुराने नहीं होते …
नूतन (24 जून 1936 - फ़रवरी 1991) सामर्थ हिन्दी सिनेमा की सबसे प्रसिद्ध अदाकाराओं में से एक रही हैं। नूतन का जन्म २४ जून १९३६ को एक पढे लिखे और सभ्रांत परिवार में हुआ था। इनकी माता का नाम श्रीमती शोभना सामर्थ और पिता का नाम श्री कुमारसेन सामर्थ था। नूतन ने अपने फ़िल्मी जीवन की शुरुआत १९५० में की थी जब वह स्कूल में ही पढ़ती थीं।
नूतन के सौन्दर्य को मिस इंडिया पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह इस पुरस्कार को पाने वाली पहली महिला थीं।
उनके सन्दर्भ में उनके बेटे मोहनीश बहल का कहना है कि मैं उनकी फिल्में ज़्यादा नहीं देखता. क्योंकि जितना मैं देखूंगा उतना ही उन्हें मिस करूंगा. और उन्होंने काफी गंभीर फिल्में भी की हैं.
वैजयंती माला का जन्म 13 अगस्त, 1936 को मद्रास, तमिलना डु के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। ये दक्षिण से आकर बंबई फ़िल्म इंडस्ट्री में भाग्य चमकाने वाली पहली अभिनेत्रियों में ये एक हैं। उनकी माँ वसुंधरा देवी भी तमिल फ़िल्मों की एक प्रमुख नायिका रही हैं। वैजयंती माला का बचपन धार्मिक वातावरण में बीता। उनके पिता का नाम ए. डी. रमन था।
1956 में फ़िल्म 'देवदास' के लिए पहली बार वैजयंती माला को सर्वश्रेष्ठ सहअभिनेत्री का फ़िल्मफेयर पुरस्कार।
1958 में फ़िल्म 'मधुमती' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर अवार्ड।
1961 में फ़िल्म 'गंगा-जमुना' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर अवार्ड।
1964 में फ़िल्म 'संगम' के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फ़िल्मफेयर अवार्ड।
1996 में फ़िल्मफेयर लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड।
गीता बाली हिन्दी फिल्मों की एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं । गीता बाली का जन्म विभाजन के पूर्व के पंजाब में हरकिर्तन कौर के रूप में हुआ था । वह सिख थीं और उनके फ़िल्मों में आने से पहले उनका परिवार काफी गरीबी में रहता था। १९५० के दशक में वह काफी विख्यात अदाकारा थीं।
का जन्म 23 अगस्त 1941 को मसूरी में हुआ। सायरा की नानी शमशाद बेगम दिल्ली की मशहूर गायिका थी। सायरा की शिक्षा-दीक्षा लंदन में हुई है। छुट्टियाँ मनाने सायरा जब भारत आती, तो दिलीप कुमार की फिल्मों की शूटिंग देखने घंटों स्टुडियो में बैठी रहती थी। सायरा बानो ने एक साक्षात्कार में यह माना है कि जब वह बारह साल की थी, तब से अल्लाह से इबादत में माँगती थी कि उसे अम्मी जैसी हीरोइन बनाना और श्रीमती दिलीप कुमार बनकर उसे बेहद खुशी होगी।
मुगल-ए-आज़म में उनका अभिनय विशेष उल्लेखनीय है। इस फ़िल्म मे सिर्फ़ उनका अभिनय ही नही बल्की 'कला के प्रति समर्पण' भी देखने को मिलता है। इसमें 'अनारकली' की भूमिका उनके जीवन की सबसे महत्वपूर्ण भूमिका है। उनका लगातार गिरता हुआ स्वास्थय उन्हे अभिनय करने से रोक रहा था लेकिन वो नहीं रूकीं। उन्होने इस फ़िल्म को पूरा करने का दृढ निश्चय कर लिया था। फ़िल्म के निर्देशक के. आशिफ़ फ़िल्म मे वास्तविकता लाना चाहते थे। वे मधुबाला की बीमारी से भी अन्जान थे। उन्होने शूटिंग के लिये असली जंज़ीरों का प्रयोग किया। मधुबाला से स्वास्थय खराब होने के बावजूद भारी जंज़ीरो के साथ अभिनय किया।
क्रमशः