मंगलवार, 10 जुलाई 2012

सपने



कल रात मुझे पता चला
सपनों में भी कविताएं बनती है
सपनों की धुंधली आकृतियाँ
स्मृतियों के कोहरे से बनती है
कल रात उसने मुझे सपनों में घुसकर जगाया
मैं बुदबुदाई और ज़ोर से चिल्लाई
" माँ, मैं झूठ नहीं बोल रही
...... मेरा घर मत तोड़ो"
पास में सोये मोनू ने कहा मम्मी
तभी मेरी जीभ उलट गई
और आवाज धीमी होते होते मैं फिर सो गई

कल ही मुझे पता चला सपनों की
एक दुनिया होती है
जिसमे नायक
खलनायक और साधारण पात्र होते है
लड़ते है ,झगड़ते है
रोते है ,हँसते है
मगर किसी का कुछ नहीं बिगड़ता
सभी अक्षुण्ण

पर असली दुनिया में हाहाकार
शोरगुल आपाधापी
सारी अवस्थाएँ बदलती है
मनोरोग से प्रेमरोग
प्रेमरोग से मृत्युयोग
नेपथ्य बदल जाता है
सारे पात्र झूठे
सारे संवाद खोखले

काश ! सपनों की दुनिया लंबी होती !



अलका सैनी

5 टिप्‍पणियां:

  1. सच में...
    काश ! सपनों की दुनिया लंबी होती !

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  2. काश ! सपनों की दुनिया लंबी होती !

    बिल्‍कुल सही .. इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए आभार आपका

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  3. ्जीवन भी तो एक स्वप्न ही है।

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  4. सपने वास्तविकता से दूर करते हैं इसीलिए लुभाते ही हैं ....!

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