शनिवार, 5 अप्रैल 2014

समाधान




कुछ शब्द तुम्हारे हैं
कुछ मेरे 
भावनाओं की धूप दिखाकर 
इसे कागज की संदूक में रख देते हैं 
एक दिन हमारे बच्चों के काम आएगी  … 

                             रश्मि प्रभा
 - अपर्णा भागवत का सफ़र, और समाधान मेरी नज़र में -



कुछ ढीले से शब्दों का अनमना लिबास
भटकती सांसें
पथराई आँखें
मुंह में बेवजह रेंग रही मीठे कडवे की सीमा रेखा पर सीली सी कडवाहट।

जाने क्या लेकिन कुछ छूटा सा लगता है।

एक अधूरा सपना
कानों में फुसफुसाए गाने के बोल सा कोई अधूरा अरमान
कहीं राह चलते उठाये रंगीन पत्थर से लिखे कुछ भूले से नाम
सूर्योदय से सूर्यास्त तक चलता सफ़र।

इन्हीं दो किनारों के बीच कहीं अपने ही खोये हिस्से की तलाश में -

एक बार किताबें छोड़
खुदके अन्दर ही तलाशती हूँ मैं वो अथाह गहराई
टटोलती हूँ मकसदों और संभावनाओं का कसैला पानी
शायद मिल जाऊं मैं पूरी की पूरी मेरे ही अक्स के मकसद को।

और पाती हूँ भीतर ही कहीं दबे पड़े हैं जवाब सारे।


दिन से रात, रात से दिन
धरती से नीलाम्बर, और आसमां से वापस
रोज़ अपने ही किनारे से क्षितिज तक का चलना एक तरफ़ा
सफ़र सुहाना है, और  संतुष्ट हूँ मैं।

अपर्णा आर भागवत
http://aparna-insearchofself.blogspot.in/

2 टिप्‍पणियां:

  1. खुद ही काट दी वो नाल लकीरों वाली
    और खुद ही देखा अपनी ही हथेलियों में
    दम तोड़ते, उस गीली अंखुआती मिटटी को
    आख़िर ख़त्म हुआ वो दौर रोज़ बढ़ने और दम तोड़ने का।
    गंभीर अर्थ वाले संवेदना से लवरेज शब्द ......... "अंखुआती" ये शब्द मैंने सहेज लिया मन मे !!

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