पढ़ती हूँ .... चलती जाती हूँ इस पन्ने से उस पन्ने तक
कुछ पन्ने थाम लेते हैं ऊँगली
अपनी बौद्धिक सोच के किनारे देते हैं
सोच की प्यास बुझाने का अद्भुत जल
..........
आइये इस जल को साझा कर लें ....
रश्मि प्रभा
मान लूँ ?
यह मेरा है कंकाल ?
कैसे मान लूँ ?
खिलाया मैंने इसे माल ,
चल भेड चाल ,
उतारी सबकी खाल ,
तब किया था ऊंचा ,
कहीं जाकर अपना भाल !
यह मेरा नहीं कंकाल !
यह मेरा नहीं कंकाल !
पिटो कितने गाल,
नहीं गलेगी दाल ,
यह तुम्हारी बेढम चाल ,
नहीं निकलेगा कोई सुर ,
लगा लो कितने गुरु -गुर ,
मिट जाएगा एक दिन
यह अकडा,सुकडा,लंगडा,
मानव का बिगड़ा असली रूप ,
तू बहुत लगे कुरूप ,
बोल सच -
तू है क्या बहरूपिया ?
तू ही मेरा सच ,
मेरा ही कंकाल !
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कही यह इंसान तो नहीं ?
इसकी खुरदुरी हथेलियाँ
बताती है कि
यह एक कामगार है !
कामगार सृजनहार होता है
इसकी हथेली में कैद हैं
चमकीली सीपियाँ
कही यह रचनाकार तो नहीं ?
रोज -रोज गढ़ता है नया
फिर उसे मिटाता है !
मिट्टी को मिटटी में मिलाता है
कही यह कुम्हार तो नहीं ?
इसकी हथेली की
मोटी -मोटी लकीरें
लोहे की छड जैसी
हो गयी हैं
लोहा लोहे को काटता है
यह भी काटेगा
सदियों से जकड़ी जंजीरें
कही यह लुहार तो नहीं ?
रुखी-सूखी हथेलियों से
उठायी बोझों की टोकरियाँ
भूख की आग से जल रही हैं
पेट की आंतडियां
सिकुड़ कर हो गयी
जैसे गली संकरी
चराते हुए बकरियां
दीमक ने खा ली है पसलियाँ
कही यह इंसान तो नहीं ?
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इरेजर
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रात
मौत से
मिलने गई रेखाएं !
लाल खून से
भरी थी सारी शिराएँ !
सहलाने को
इनकी सिसकती आहें
जल रही थी
करोड़ो मोमबतियां !
मौत ने थमा इरेजर
रेखाओं को ,
नो एंट्री का बोर्ड लगा दिया !
दुनिया में जितनी भी है पैंट्री,
भूख कभी नहीं मिटेगी
स्वार्थ लोलुपता
अगर बढती रहेगी इस जेन्ट्री में !
सोच की प्यास बुझाने का अद्भुत जल
जवाब देंहटाएं..........
सच में अद्भुत ही है इनका लेखन ... और आपका चयन
आभार इस प्रस्तुति के लिये
सादर
मानव का बिगड़ा असली रूप ,
जवाब देंहटाएंतू बहुत लगे कुरूप ,
रुखी-सूखी हथेलियों से
उठायी बोझों की टोकरियाँ
स्वार्थ लोलुपता
अगर बढती रहेगी इस जेन्ट्री में
उम्दा अभिव्यक्ति !!
बहुत बढ़िया रचनाएं...
जवाब देंहटाएंदीमक ने खा ली है पसलियाँ
कही यह इंसान तो नहीं ?,,...क्या कहूँ....
सभी बढ़िया.
सादर
अनु
रुखी-सूखी हथेलियों से
जवाब देंहटाएंउठायी बोझों की टोकरियाँ
भूख की आग से जल रही हैं
पेट की आंतडियां
सिकुड़ कर हो गयी
जैसे गली संकरी
चराते हुए बकरियां
दीमक ने खा ली है पसलियाँ
कही यह इंसान तो नहीं ?---उम्दा अभिव्यक्ति
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New post तुम ही हो दामिनी।
आपकी इस प्रविष्टी की चर्चा शनिवार (2-2-2013) के चर्चा मंच पर भी है ।
जवाब देंहटाएंसूचनार्थ!
सभी रचनाएं बहुत बढ़िया हैं ...
जवाब देंहटाएंati sunder lekhni hai aapki............
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