शनिवार, 26 जनवरी 2013

भारतवर्ष





वो किस राह का भटका पथिक है ?
मेगस्थिनिस बन बैठा है
चन्द्रगुप्त के दरबार में
लिखता चुटकुले
दैनिक अखबार में |
सिन्कदर नहीं रहा
नहीं रहा विश्वविजयी बनने का ख़्वाब
चाणक्य का पैर
घांस में फंसता है
हंसता है महमूद गज़नी
घांस उखाड़कर घर उजाड़कर
घोड़ों को पछाड़कर
समुद्रगुप्त अश्वमेध में हिनहिनाता है
विक्रमादित्य फ़ा हाइन संग
बेताल पकड़ने जाता है |
वैदिक मंत्रो से गूँज उठा है आकाश
नींद नहीं आती है शूद्र को
नहीं जानता वो अग्नि को इंद्र को
उसे बारिश चाहिए
पेट की आग बुझाने को |
सच है-
कुछ भी तो नहीं बदला
पांच हज़ार वर्षों में !
वर्षा नहीं हुई इस साल
बिम्बिसार अस्सी हज़ार ग्रामिकों संग
सभा में बैठा है

पास बैठा है अजातशत्रु
पटना के गोलघर पर
कोसल की ओर नज़र गड़ाए |
कासी में मारे गए
कलिंग में मारे गए
एक लाख लोग
उतने ही तक्षशिला में
केवल अशोक लौटा है युद्ध से
केवल अशोक लड़ रहा था
सौ चूहे मार कर
बिल्ली लौटी है हज से
मेरा कुसूर क्या है ?-
चोर पूछता है जज से |
नालंदा में रोशनी है
ग़ौरी देख रहा है
मुह्हमद बिन बख्तियार खिलजी को
लूटते हुए नालंदा
क्लास बंक करके
ह्वेन सांग रो रहा है
सो रहा है महायान
जाग रहा है कुबलाई ख़ान |
पल्लव और चालुक्य लड़ रहें हैं
जीत रहा है चोल
मदुरै की संगम सभा में कवि
आंसू बहाता है
राजराज चोल लंका तट पर
वानर सेना संग नहाता है |

इब्न बतूता दौड़ा चला आ रहा है
पश्चिम से
मार्को पोलो दक्षिण से
उत्तर से नहीं आता कोई उत्तर
आता है जहाँगीर कश्मीर से
गुरु अर्जुन देव को
मौत के घात उतारकर |
नहीं रही
नहीं रही सभ्यता
सिन्धु – सताद्रू घाटी में
अमृतसर के स्वर्ण मंदिर से
चीखता है भिंडरावाले
गूँज रहा है इन्द्रप्रस्थ
सौराष्ट्र
इल्तुतमिश भाला लेकर आता है
मल्ल देश के आखिरी पड़ाव तक
चंगेज़ ख़ान की प्रतीक्षा में |
कोई नहीं रोकने आता
तैमूर लंग को |
बहुत लम्बी रात है
सोमनाथ के बरामदे में
कटा हुआ हाथ है |
लड़ रहें हैं राजपूत वीर
आपस में
रानियाँ सती होने को
चूल्हा जलाती हैं |
चमक रहा है ताजमहल
धुल रहा है मजदूरों का ख़ून

धुल रहा है
कन्नौज
मथुरा
कांगरा |
कृषि कर हटाकर
तुगलक रोता है-
“पानी की किल्लत है
झूठ है
झूठ है सब
केवल राम नाम सत् है”
वास्को डि गामा ढूंढ रहा है
कहाँ है ?
कहाँ है भारतवर्ष ?

सौरभ राय 'भगीरथ'
http://souravroy.com/

गुरुवार, 24 जनवरी 2013

कितना चलूँ ...




अपनी प्रतिभा,
अपनी योग्यता सिद्ध
करने के लिए
और कितने इम्तहान
देने होंगे मुझे !............. यही सोचते हुए सोती हूँ ! पर जब नींद नहीं आती तो अलादीन का चिराग जल लेती हम ख़्वाबों के अँधेरे में,सिन्ड्रेला बनकर लाल परी से मिलती हूँ, कर्ण बनकर सो जाती हूँ .... 

                              रश्मि प्रभा 



अब तो राह की धूल भी
पैरों के लगातार चलने से
पुँछ सी गयी है ,
और कच्ची पगडंडी पर
ज़मीन में सख्ती से
दबे नुकीले पत्थर
तलवों को घायल कर
लहू से लाल हो चले हैं !
एक निष्प्राण होती जा रही
प्राणवान देह का
इस तरह बिना रुके
चलते ही जाने का मंज़र
हवायें भी दम साधे
देख रही हैं !
मैं चल रही हूँ
चलती ही जा रही हूँ
क्योंकि संसार की झंझा में
रुकने के लिए कहीं कोई
ठौर नहीं है !
अपनी प्रतिभा,
अपनी योग्यता सिद्ध
करने के लिए
और कितने इम्तहान
देने होंगे मुझे !
छोटी सी ज़िंदगी के
थोड़े से दिन
सुख से जी लेने की
चाहना के लिए 
और कितनी बार
इस तरह मरना होगा मुझे !
हाँ ! लेकिन मुझे तो
तिल-तिल कर
हर रोज़ इसी तरह  
मरना ही होगा   
मुझे मिसाल जो बनना है
आने वाली पीढ़ियों के लिए !
इसलिये खुद के जीवन में
चाहे अमावस का अँधियारा
चहुँ ओर पसरा हो 
दीपक की तरह
स्वयं को जला कर मुझे
तुम्हारे लिए तो
राह रौशन करनी ही होगी !
ताकि तुम्हारे लिए
यह सफ़र आसान हो जाये !
और जब तुम
पीछे मुड़ कर देखो
तुम्हें अपने सिर पर
मेरे हाथों का मृदुल
स्पर्श मिल सके
और तुम्हारे
आशंकाओं से व्यग्र
भयभीत ह्रदय को
अपना भार हल्का
करने के लिये
मेरी ममता भरी
बाहों का संबल
मिल सके !
तुम निश्चिन्त हो
अपनी राह चलती जाना
मैं हूँ तुम्हारे पीछे
तुम्हें सम्हालने के लिए,
तुम्हारे साथ
तुम्हारा हाथ थामे
हर कदम पर
तुम्हें आश्वस्त करने के लिए,
तुम्हारे आगे
तुम्हें रास्ता दिखाने के लिए
ये जो राह पर
रक्त रंजित
पैरों के निशान  
तुम देख रही हो  
वो मेरे ही पैरों के तो हैं
मुझे मिली हो या न मिली हो
तुम्हें अपनी मंजिल
ज़रूर मिलेगी !
क्योंकि मैं आदि काल से
ऐसे ही चलती जा रही हूँ और
अनंत काल तक यूँ ही
चलती रहूँगी !
जब तक तुम न रुकोगी
मेरे पैर चाहे कितने भी
लहूलुहान हो जायें
वे भी ऐसे ही चलते रहेंगे
आखिर मुझे तुम्हारी
हिफाज़त जो करनी है !

साधना वैद  
http://sudhinama.blogspot.in/
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बुधवार, 23 जनवरी 2013

वस्त्र???? जब युग के हिसाब से पुरूष के बदल गये तो स्त्री पर क्यो वही पाँच हजार साल पुरानी वेशवूषा का दबाब???



 ·
एक बयान आया है
""""स्वछन्दचारि­ णी बनोगी?? बनो"""""
मुझे आपकी मानसिकता से
कुछ भी नहीं लेना देना
ये मेरा अपना सवाल नहीं
एक ज्वलंत प्रश्न है
WHO IS THE REAL WOMEN OF
MEN????
भय?????
रेप का भय???
गंदी निगाहों का भय???
घरेलू हिंसा का भय???
दहेज हत्या का भय???
प्रेमी या पति द्वारा नापसंद
कर दिये जाने का भय
कन्या होकर अपमानित
रहने
या गर्भ में मार दिये जाने
का भय?????
What do mean by
स्वछन्दचारिणी
????????????????????
एक युग था वैदिक युग
विश्व
वारी घोषा लोपामुद्रा गार्गी सिकता
पुरुष सभा में जातीं और
शास्त्रार्थ करतीं थी
फिर
आक्रमणकारी आये
और भारत
जौहर की आग में जल उठा
लेकिन
स्वतंत्र भारत
में फिर
नारी की आजादी वापस
नही आयी
नारी पुरूष तब एक जैसे वस्त्र
पहनते थे
एक जैसे जेवर
एक समान सांपत्तिक हक थे
फिर पुरुष के वेश भूषा में
बदलाव आया
और
कामकाज में सुविधा के
लिये
सिलाई
कीउपलब्धि आसान होने
ये
पुरूष के वस्त्र सरल और केश
छोटे हो गये
वैसे ही जैसे
दूसरे धर्म में सलवार
कुर्ता जनानी मरदानी दोनो की पोशाक
थी
युग
और कार्य तो स्त्री के
भी बदले ????
वेश
क्यों नहीं बदलना चाहिये
अगर
जूड़ा चोटी कड़ा छड़ा कुंडल
धोती अंगोछा
आज भी """भारतीय
नर""""'"पहने तो कहे
"भारतीय नारी पहन
साड़ी बढा चोटी
मैं करूँगा तेरी रक्षा
तेरे नाज नखरे मैं उठाउँगा
तू चैन से सज धज मेले मैं झूल
बच्चे जन
मैं करूगाँ तेरे लिये हवामहल
तैयार
????
चरिर्त् वान् रहूँगा
कभी परायी नार
परायी दौलत पर नजरर
नहीं डालूँगा
तुम बस सज धज के बैठो
मैं हूँ ना
लेकिन ऐसा नहींहै
As hightcourt criminal lawyer
मुझे उन कहानियों के सच
मालूम हैं
जब औरत घर चलाती मार
खाती
और
दीन धरम के नाम पर
अन्याय सहती
आज किरण बेदी के वस्त्र
ही भारतीय नारी के
रोल मॉडल हहै
पसंद औऱ जरूरत दो अलग
शब्दहैं
खेत में धान रोपती औऱत
साड़ी का कछोटा बना लेती है
जो मिनी स्कर्ट से
ज्यादा  नही होता ....

सुधा राजे 

मंगलवार, 22 जनवरी 2013

यदि सच न बोलने की और सच न स्वीकारने की गीता /कुरआन /बाइबिल या संविधान की कसम खा रखी है तो दीगर बात है ...





"यदि सच न बोलने की और सच न स्वीकारने की गीता /कुरआन /बाइबिल या संविधान की कसम खा रखी है तो दीगर बात है ...अगर साम्प्रदायिकता को कानी आँख से देखने की कसम खा राखी है तो दीगर बात है ... वरना क्या यह गलत है कि बाबरी मस्जिद ढहाई जाने से पहले औरंगजेब ने 6000 से भी अधिक हिन्दू मंदिर नहीं तोड़े ?...क्या यह गलत है कि इस्लाम कबूल करने से मना करने पर कई सिख हिन्दुओं के सर कलम करवाए गए ? क्या यह गलत है कि अकेले जम्मू-कश्मीर में गुजरे सालों में 210 से भी अधिक मंदिर तोड़े गए ? ...क्या यह गलत है कि जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं को अपनी औरते छोड़ कर पलायन कर जाने के धमकी भरे पोस्टर हिन्दुओं के घर पर मुसलमान आतंकवादीयों ने नहीं लगाए ? ...क्या यह गलत है कि लाखों कश्मीरी हिन्दू मुसलमान आतंकियों की वजह से जम्मू -कश्मीर से बेघर होकर देश के अन्य प्रान्तों में शरणार्थी है ?...क्या यह गलत है कि जम्मू -कश्मीर में सामान्य दिन तो छोड़ दो स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर भी मुसलमान आतंकवादी तिरंगा नहीं फहराने देते ?... क्या यह गलत है कि हिन्दुओं को अपने ही देश में अपने आस्था के तीर्थ अमरनाथ दर्शन करने के लिए मुसलमान आतंकियों के हाथो बड़ी संख्या में सामूहिक क़त्ल-ए-आम का शिकार नहीं होना पड़ता ? ...क्या यह गलत है कि हिन्दुओं को अमरनाथ और वैष्णव देवी के दर्शन के लिए जज़िया नहीं देना पड़ता ? ...क्या यह गलत है कि मुसलमानों को हज यात्रा के लिए जो सब्सिडी दी जाती है उसके लिए भी धन जुटाने के लिए हिन्दुओं से भी टैक्स की उगाही होती है ? ...क्या यह गलत है कि गुजरात के चर्चित दंगों की शुरुआत गोधरा में रेल से यात्रा कर रहे 65 हिन्दू तीर्थ यात्रियों को मुसलमानों द्वारा ज़िंदा जला देने पर हुयी थी ? ...क्या यह गलत है कि मुहम्मद साहब के द्वारा स्थापित मस्जिद चरार-ए-शरीफ को एक मुसलमान आतंकी मस्तगुल ने जला कर राख कर दिया तो मुसलमान चुप रहे ? ...क्या यह गलत है कि राम जन्मभूमि (अयोध्या ) और कृष्ण जन्मभूमि (मथुरा ) पर मस्जिद नहीं बनाईं गईं ? ...क्या यह गलत है कि इस विराट भू-भाग और क्षेत्रफल वाले इस देश में मस्जिद बनाने के लिए जगह की कमी तो थी नहीं ? ...क्या यह गलत है कि कभी हिन्दुओं ने किसी मस्जिद को तोड़ कर कहीं मंदिरनहीं बनाया ? ...क्या यह गलत है कि ईसाईयों ने भी कभी कोई मंदिर या मस्जिद तोड़ कर चर्च नहीं बनाया ? ...क्या यह गलत है कि इस देश में जब और जहां-जहां मुसलमानों का राज्य था वहाँ हजारों मन्दिर तोड़े गए ...आज़ादी के बाद इस देश में जम्मू -कश्मीर में 200 से भी अधिक मंदिर तोड़े गए जबकि गुजरात में गोधरा काण्ड के बाद भड़की प्रति हिंसा में भी एक भी मस्जिद नहीं तोडी गयी ? ...क्या यह गलत है कि गुजरात में गोधरा में हिन्दू तीर्थ यात्रियों को ज़िंदा जलाने के बाद भड़की प्रति हिंसा में भी कोई मस्जिद नहीं तोड़ी गयी ?...क्या यह गलत है कि हिन्दुओं द्वारा बाबरी मस्जिद तोड़े जाने से पहले देश के विभिन्न हिस्सों में मुसलमान हजारों मंदिर तोड़ चुके थे ? ...क्या यह गलत है कि एक बाबरी मस्जिद का तोड़ा जाना हजारों मन्दिरों के तोड़े जाने से उत्पन्न प्रति हिंसा थी ? ...क्या यह गलत है कि गुजरात के दंगे गोधरा काण्ड से शुरू हुए थे और वह गोधरा में ज़िंदा गए 65 हिन्दुओं की घटना से उत्पन्न प्रति हिंसा थी ? ...अगर मुसलमानों का आतंकवाद यों ही जारी रहा और वोट बैंक की लालच में राजनीति ने साम्प्रदायिकता को कानी आँख से देखा तो प्रति हिंसा और प्रति आतंकवाद होना तय है ...जब सह अस्तित्व के सारे प्रयास असफल हो जाएँगे तो लोग सरकार से शिकायत करेंगे और जब सरकार भी असहिष्णु होगी तो प्रति हिंसा होगी ... मुसलमान आतंकवाद की हिंसा से घायल राष्ट्र चीख रहा है ...यह चीख ...यह न्याय की गुहार ...यह शान्ति की अपील ...यह सर्व धर्म समभाव की अपेक्षा अगर सरकार ने अब नहीं सुनी तो "प्रति हिंसा/ प्रति आतंकवाद" के अलावा और कोई उपाय नहीं है " ----- 

राजीव चतुर्वेदी
http://rajiv-chaturvedi.blogspot.in/