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सुमति
ये दिन
दरख्तों की तरह ,
हिलते नहीं मुझ से
ये घड़ियाँ भी
तुम्हारे बिन
ठहर जाने की जिद मे हैं
फलक पर रात भर तारे
तुम्हारी बात करते हैं
उनकी फुसफुसाहट ही
मुझे सोने नहीं देते
मैं हर पल में परेशां हूँ
परेशां है हर एक लम्हां
वहीँ पर है जहाँ पर थी
तुम्हारे बिन कज़ा मेरी
बुलालूं पास उसको या कि
उस तक दौड़ कर पहुंचूं
मगर बेहिस दरख्तों कि तरह
ये जिंदगी मेरी ...
कि मुझ से तू नहीं मिलता
....कि मुझ से दिन नहीं हिलता
ये दिन
जवाब देंहटाएंदरख्तों की तरह ,
हिलते नहीं मुझ से
ये घड़ियाँ भी
तुम्हारे बिन
ठहर जाने की जिद मे हैं
वाह ... बेहतरीन अभिव्यक्ति
आभार
बहुत सुंदर ...की मुझसे तू नही मिलता ...की मुझ से दिन नही मिलता
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर ...की मुझसे तू नही मिलता ...की मुझ से दिन नही मिलता
जवाब देंहटाएंवाह...!
जवाब देंहटाएंकि मुझ से तू नहीं मिलता
....कि मुझ से दिन नहीं हिलता............बहुत सुंदर
behad sundar, nice, nice, nice jitani bar kahen kam hai
जवाब देंहटाएंमैं हर पल में परेशां हूँ
जवाब देंहटाएंपरेशां है हर एक लम्हां :(
वाह वाह.....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन कविता.......दिल ने चाहा कि काश खत्म ही न होती...
अनु