सोमवार, 15 अक्तूबर 2012

एक पिता का ख़त पुत्री के नाम ! (पांचवां भाग)



परिणाम परिवार और समाज का यह नहीं कहता कि मर्यादित चाह गलत है - हम कभी अपने बच्चों को गलत करने की सलाह नहीं देते, सत्य के दुखद आघातों से त्रस्त हम उन्हें झूठ बोलना नहीं सिखाते . कुछ परम्पराओं की अपनी ख़ूबसूरती होती है,अपना मूल्य होता है . 

दहेज़ हत्या, जबरदस्ती,तलाक से हम बाज़ार से सिंदूर और चूड़ियों को नहीं मिटा देते . मन हमेशा सत्य शिव और सुन्दर ही चाहता है 


सतीश सक्सेना



कर्कश भाषा ह्रदय को चुभने वाली, कई वार बेहद गहरे घाव देने वाली होती है ! और अगर यही तीर जैसे शब्द अगर नारी के मुख से निकलें तो उसके स्वभावगत गुणों, स्नेहशीलता, ममता, कोमलता का स्वाभाविक अपमान होगा ! और यह बात ख़ास तौर पर, भारतीय परिवेश में, घर के बड़ों के सामने चाहे मायका हो.या ससुराल, जरूर याद रखना चाहिए ! अपने से बड़ों को दुःख देकर सुख की इच्छा करना व्यर्थ है !

नारी की पहचान कराये
भाषा उसके मुखमंडल की
अशुभ सदा ही कहलाई है
सुन्दरता कर्कश नारी की !
ऋषि मुनियों की भाषा लेकर तपस्विनी सी तुम निखरोगी
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्ही रहोगी !

कटुता , मृदुता नामक बेटी
दो देवी हैं, इस जिव्हा पर
कटुता जिस जिव्हा पर रहती
घर विनाश की हो तैयारी !
कष्टों को आमंत्रित करती, गृह पिशाचिनी सदा हँसेगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्ही रहोगी !

उस घर घोर अमंगल रहता
दुष्ट शक्तियां ! घेरे रहतीं !
जिस घर बोले जायें कटु वचन
कष्ट व्याधियां कम न होतीं ,
मधुरभाषिणी बनो लाडिली, चहुँ दिशी विजय तुम्हारी होगी
पहल करोगी अगर नंदिनी, घर की रानी तुम्ही रहोगी !

घर में मंगल गान गूंजता,
यदि जिव्हा पर मृदुता रहती
दो मीठे बोलों से बेटी !,
घर भर में दीवाली होती
उस घर खुशियाँ रास रचाएं ! कष्ट निवारक तुम्ही लगोगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी ! घर की रानी तुम्ही रहोगी !

अधिक बोलने वाली नारी
कहीं नही सम्मानित होती
अन्यों को अपमानित करके
वह गर्वीली खुश होती है,
सारी नारी जाति कलंकित, इनकी उपमा नहीं मिलेगी !
पहल करोगी अगर नंदिनी ! घर की रानी तुम्ही रहोगी !

15 टिप्‍पणियां:

  1. घर में मंगल गान गूंजता,
    यदि जिव्हा पर मृदुता रहती
    दो मीठे बोलों से बेटी !,
    घर भर में दीवाली होती
    आदरणीय सतीश जी के इस उत्‍कृष्‍ट लेखन को हम सबके साथ साझा करने का आप यह प्रयास सराहनीय है
    आभार इस प्रस्‍तुति के लिये

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  2. दूर दृष्टि से सही ....और स्त्री के स्वाभावनुसार ....पर फिर भी ...अगर कुछ हद से परे हो जाये तो ये घुटन बन जाता है .....जहां तक हो सके ...स्व गरिमा बनी रहे वहाँ तक ....

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  3. अपने से बड़ों को दुःख देकर सुख की इच्छा करना व्यर्थ है !
    अच्छी सीख...मृदु व्यवहार सबका दिल जीतता है|
    उत्कृष्ट लेखन और प्रस्तुति के लिए आप दोनों का आभार!!

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  4. आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार १६ /१०/१२ को राजेश कुमारी द्वारा चर्चामंच पर की जायेगी ,आपका स्वागत है |

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  5. रश्मिप्रभा जी,
    आपके द्वारा इस पत्र के दुबारा प्रकाशित करने पर, निस्संदेह मैं एवं यह रचना गौरवान्वित हुई है ! आपके द्वारा प्यारी बेटियों के चित्रों ने, इस रचना को जीवंत बना दिया !
    आपका आभार...

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  6. पहल करोगी अगर नंदिनी ! घर की रानी तुम्ही रहोगी !

    बहुत सुन्दर संस्कारित करती कविता

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  7. बहुत उत्कृष्ट प्रस्तुति....अपने से बड़ों को दुःख देकर सुख की इच्छा करना व्यर्थ है, सही बात.

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  8. मैं इस रचना को पहले भी पढ़ चुका हूं। लेकिन कुछ रचनाएं ऐसी होती ही हैं कि आप उसे जब पढ़े तब भी नई लगती है।
    सतीज जी बहुत बहुत शुभकामनाएं...

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  9. 'मधुर वचन'... ये ऐसा गहना है, जो हर इंसान की शोभा, उसका मान, उसकी पहचान...सबकुछ निखारता है ! हम सभी को इसको ज़रूर धारण करना चाहिए...
    ~सादर !

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