बुधवार, 20 नवंबर 2013

मेरी नज़र से कुछ मील के पत्थर - 11)





शब्दों को ओस में भिगोकर ईश्वर ने सबकी हथेलियों में रखे .... कुछ बर्फ हो गए,कुछ नदी बन जीवन के प्रश्नों की प्यास बुझाने लगे .................. शब्दों की कुछ नदियाँ, कुछ सागर मेरी नज़र से =

अशोक लवलहरों के कामना दीप / * अशोक लव

लहरों को सौंप दिया है कामना-दीप

जहाँ चाहे ले जाएँ

उन्ही पर आश्रित हैं अब तो

कामना दीप का अस्तित्व.


हथेलियों में रख कर सौंपा था

लहरों को कामना दीप

बहाकर ले जाने के लिए अपने संग

मंद मंद हिचकोले खाता

बढ़ता जाता है लहरों के संग.


कामना- दीप का भविष्य होता है

लहरों के हाथ

ज़रा सा प्रवाह तेज़ होते ही

डोलने लगता है

और अंततः समां जाता है लहरों में.


कामना-दीप सा समा जाना चाहता हूँ

सदा सदा के लिए

तुम्हारे ह्रदय की स्नेहिल लहरों में.



मां बहुत याद आती है
सबसे ज्यादा याद आता है
उनका मेरे बाल संवार देना
रोज-ब-रोज
बिना नागा
बहुत छोटी थी मैं तब
बाल छोटे रखने का शौक ठहरा
पर मां!
खुद चोटी गूंथती, रोज दो बार
घने, लंबे, भारी बाल
कभी उलझते कभी खिंचते
मैं खीझती, झींकती, रोती
पर सुलझने के बाद
चिकने बालों पर कंघी का सरकना
आह! बड़ा आनंद आता
मां की गोदी में बैठे-बैठे
जैसे नैया पार लग गई
फिर उन चिकने तेल सने बालों का चोटियों में गुंथना
लगता पहाड़ की चोटी पर बस पहुंचने को ही हैं
रिबन बंध जाने के बाद
मां का पूरे सिर को चोटियों के आखिरी सिरे तक
सहलाना थपकना
मानो आशीर्वाद है,
बाल अब कभी नहीं उलझेंगे
आशीर्वाद काम करता था-
अगली सुबह तक
किशोर होने पर ज्यादा ताकत आ गई
बालों में, शरीर में और बातों में
मां की गोद छोटी, बाल कटवाने की मेरी जिद बड़ी
और चोटियों की लंबाई मोटाई बड़ी
उलझन बड़ी
कटवाने दो इन्हें या खुद ही बना दो चोटियां
मुझसे न हो सकेगा ये भारी काम
आधी गोदी में आधी जमीन पर बैठी मैं
और बालों की उलझन-सुलझन से निबटती मां
हर दिन
साथ बैठी मौसी से कहती आश्वस्त, मुस्कुराती संतोषी मां
बड़ी हो गई फिर भी...
प्रेम जताने का तरीका है लड़की का, हँ हँ
फिर प्रेम जो सिर चढ़ा
बालों से होता हुआ मां के हाथों को झुरझुरा गया
बालों का सिरा मेरी आंख में चुभा, बह गया
मगर प्रेम वहीं अटका रह गया
बालों में, आंखों के कोरों में
बालों का खिंचना मेरा, रोना-खीझना मां का
शादी के बाद पहले सावन में
केवड़े के पत्तों की वेणी चोटी के बीचो-बीच
मोगरे का मोटा-सा गोल गजरा सिर पर
और उसके बीचो-बीच
नगों-जड़ा बड़ा सा स्वर्णफूल
मां की शादी वाली नौ-गजी
मोरपंखी धर्मावरम धूपछांव साड़ी
लांगदार पहनावे की कौंध
अपनी नजरों से नजर उतारती
मां की आंखों का बादल
फिर मैं और बड़ी हुई और
ऑस्टियोपोरोसिस से मां की हड्डियां बूढ़ी
अबकी जब मैं बैठी मां के पास
जानते हुए कि नहीं बैठ पाऊंगी गोदी में अब कभी
मां ने पसार दिया अपना आंचल
जमीन पर
बोली- बैठ मेरी गोदी में, चोटी बना दूं तेरी
और बलाएं लेते मां के हाथ
सहलाते रहे मेरे सिर और बालों को आखिरी सिरे तक
मैं जानती हूं मां की गोदी कभी
छोटी कमजोर नाकाफी नहीं हो सकती
हमेशा खाली है मेरे बालों की उलझनों के लिए
कुछ बरस और बीते
मेरे लंबे बाल न रहे
और कुछ समय बाद
मां न रही

* नोट- कैंसर के दवाओं से इलाज (कीमोथेरेपी) से बाल झड़ जाते हैं   


कमरे दो हों या हज़ार 
क़त्ल करने की जगह हमेशा मौजूद रहती है घर में
मैं एक फंदा बनाके बैठा रहा कल सारी रात
कि तुम जगोगी जब पानी पीने

मैंने अपनी इस आस्था से चिपककर बिताई वह पूरी रात
कि गले में कुछ मोम जमा हुआ है मेरे और तुम्हारे
और वही ईश्वर है
जो हमें बोलने, उछलने और खिड़की खोलकर कूद जाने से रोकता है
जम्हाई लेने से भी कभी-कभी
पर कसाई होने से नहीं

कैसे बिताई मैंने कितनी रातें, इस पर मैं एक निबंध लिखना चाहता हूं
इस पर भी कि कैसे देखा मैंने उसे सोते हुए,
सफेद आयतों वाले लाल तकिये पर उसके गाल,
वह मेरे रेगिस्तान में नहर की तरह आती थी
वह जब साँस लेती थी तो मैं उसके नथुनों में शरण लेकर मर जाना चाहता था
उसकी आँखें उस फ़ौजी की आँखें थीं, जिसने अभी लाश नहीं देखी एक भी
और वह हरे फ़ौजी ट्रक में ख़ुद को लोहे से बचाते हुए चढ़ रहा है
जैसे बचा लेगा

यूं वो इश्क़ में खंजरों पर चली

अजायबघरों की तरह देखे उसने शहर
सुबह से रात तक पसीना पोंछते,
कभी ख़ुद की, कभी दूसरों की देह नोचते लोग
और आत्मा महज़ एक उपकरण थी
जिसे जब बच्चों को डराने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा रहा होता था
तो कोई भी कवि किसी भी शब्द की जगह रख देता था उसे

हम जब इतने क़रीब लेटे थे एक रात
और द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान की किसी कहानी की तरह
ब्रैड का एक सूखा टुकड़ा हमारे बीच पड़ा था,
मैंने उससे कहा कि काश मैं तुम्हारे लिए एक अंगीठी ला सकता
और आपको विश्वास न हो भले ही, विश्वास पाना मेरा काम भी नहीं,
लेकिन उससे लम्बे समय तक कभी किसी और बात ने नहीं किया मुझे उदास

मैं जब हँसता था
तो वह परियों की तरह सोती थी

फिर मैं बार-बार उसका अपहरण कर लाता रहा
हम माफ़ियों को कुछ ज़्यादा ही गंभीरता से लेने लगे
मृत्यु के सिरहाने भी की हमने कई दफ़े अपराध की बातें, बेशर्मी से
वह मुझ पर बरसने के लिए समंदर में डूबती रही महीनों
और इससे ज़्यादा मुझे याद नहीं

एक औरत एक थैला लेकर अतीत में जा सकती है
मुझे अकेले भी नहीं आता यह

मुझे टाई ठीक से बाँधना सिखाया मेरी मां ने,
एक हाथ से तोड़ना रोटी का कौर
लेकिन नसीब उसका कि
प्रेम के बारे में वह कुछ ख़ास नहीं जानती थी

वैसे भी प्यार के गीतों के ख़िलाफ़ एक साज़िश में
गैर-इरादतन ही सही, पर मुब्तिला हूं मैं लगातार
और जब आप इस सावधानी के साथ सो रहे हों
कि सुबह उठते ही किसी बिच्छू पर ना पड़े पैर
तो मुझे नहीं लगता कि ख़ुशबुएं पहचानने की कोई कला आपके साथ सोएगी 

उसने मुझे घर चुना, मैंने उसमें खोदे गड्ढ़े
उसका शरीर जीतने की ज़िद में उसकी आत्मा लौटाई मैंने कई मर्तबा
पर पसीने से इस कदर भीगा था मेरा गला
मुझे ऐसे डराया था ऊँचे कद के कुछ लड़कों ने स्कूल में 
कि मैं उसे चूमता था तो इम्तिहान देता था जैसे

नल से पानी पीते हुए
मैं अब भी पीछे मुड़कर देखता हूं बार-बार पेड़ों की तरफ़,
अँधेरे में पायल बजती हैं मेरी छाती पर,  
कोई औरत ज़रा नरमी से मेरा हाथ पकड़े
तो मुझे लूट सकती है किसी भी सरकार की तरह,
यहाँ मैं अपने अपाहिज होने का कहूं
तो आपको इश्तिहार लगेगा कोई

ख़ैर, ज़हर मिलाया मैंने उसकी चाय में
और गला मन से बड़ा नहीं होता, आप जानते ही हैं, 
फिर मैं ब्रश करने गया
और लौटकर आया तो वह एक घोड़े पर लेटी थी,
अपनी नज़र पर मुझे यक़ीन नहीं हालांकि।

चादर जब धुलने गई तो धोबी ने कहा कि 
पचास बार क्यों लिखते हैं आप इस पर अपना नाम?

इन पत्थरों की अपनी पहचान है - और मेरी नज़रें इनके आगे नत हैं - सम्भव है न देव आकृति की !!!

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