बुधवार, 2 अप्रैल 2014

कुछ देर तो ठहरो …




कुछ रचनाएँ रोककर
सोचने पर मजबूर करती हैं 
कि शब्द यूँ हीं नहीं रचे गए 
मन की कोठरी में कभी अँधेरा हुआ होगा 
कभी उजाला 
कभी प्यास लगी होगी 
कभी मरीचिका से मुलाकात हुई होगी 
....... 
थोडा ठहरो 
आराम करो 
वृक्ष की पत्तियों पर एक नज़र ही डालो 
और क्षणभर के लिए सोचो 
जलती धूप का सामना करके 
ये तुम्हें छाँव दे रही हैं 
बहुत कुछ ये पत्तियाँ कह जाएँगी 
कुछ देर तो ठहरो  …

                         आज मेरी नज़र में तासीर है कनुप्रिया गुप्ता के ब्लॉग 'परवाज़' का - 

फ़ोन की लम्बी लम्बी  बातें कभी वो सुकून नहीं दे  सकती जो चिट्ठी के चंद शब्द देते हैं .तुम्हे कभी लिखने का शौक नहीं था और पढने का भी नहीं तो मेरी न जाने कितनी चिट्ठियां मन की मन में रह गई न उन्हें कागज़ मिले न स्याही .तुम्हारे छोटे छोटे मेसेज भी मैं कितनी बार पढ़ती थी तुमने सोचा भी न होगा ,ये लिखते  टाइम तुमने ये सोचा होगा ,ये गाना अपने मन में गुनगुनाया होगा शायद  परिचित सी मुस्कराहट तुम्हारे होठों पर होगी जब वो सब यादें आती है तो बड़ा सुकून सा मिलता है ..और एक ही कसक रह जाती है काश तुमने कुछ चिट्ठियां भी लिखी होती मुझे तो ये सूरज जो कभी कभी अकेले डूब जाता है,ये चाँद जो रात में हमें मुस्कुराते न देखकर उदास हो जाता है तुम्हारे पास होने पर भी जब तुम्हारी यादें आ कर मेरे सरहाने बेठ जाती हैं इन सबको आसरा मिल जाता ..ये अकेलापन भी इतना अकेला न महसूस करता ....अब तो सोचती हु तुमने न लिखी तो में कुछ चिट्ठियां लिख लू  पर जिस तरह  तुम खो रहे हो दुनिया की भीड़ में तुम्हारे दिल का सही सही पता भी खोने लगा है  तुम तक पहुँच भी  गई गई तो जानती हु  तुम पढोगे नहीं .....पर फिर भी मेरी विरासत रहेगी किसी प्यार करने वाले के लिए ..

तुम्हे चिट्ठियां लिखने की तमन्ना होती है कई बार
पर तुम्हारे दिल की तरह तुम्हारे घर  का पता भी
पिछली  राहों पर छोड़ दिया कहीं भटकता सा 
अब बस कुछ छोटी छोटी यादों की चिड़िया हैं 
जो अकेले  में कंधे पर आ बैठती  है 
उनके साथ तुम्हारा नाम आ जाता है होठों पर
और कुछ देर उन चिड़ियों के साथ खेलकर 
तुम्हारा नाम भी फुर्र हो जाता है 
अगली बार फिर मिलने का वादा करके......
पर सब जानते है कुछ चिट्ठियां कभी लिखी नहीं जाती
कुछ नाम कभी ढाले नहीं जाते शब्दों में  
कुछ लोग बस याद बनने के लिए ही आते है जिंदगी में 
और कुछ वादें अधूरे ही रहे तो अच्छा है.....


 हमें नहीं चाहिए इतिहास की उन किताबों में नाम
जिनमें त्याग की देवी बनाकर स्त्री-गुण गाए जाए
त्याग हमारा स्त्रिय गुण है जो उभरकर आ ही जाता है 
पर इसे बंधन बनाकर हम पर थोपने का प्रपंच बंद करो......

नहीं चाहिए तुम्हारी झूठी अहमतुष्टि के लिए अपनी आत्मा से प्रतिपल धिक्कार....
तुम अपने आहत अहम के साथ जी सकते हो पर हम बिखरी आत्मा के साथ नही....
तुम अगर नर हो तो हमारे जीवन में नारायण का किरदार निभाना बंद करो....

ये सारे घटनाक्रम जो कल इतिहास में लिखे जाने हैं
लिखे जाएंगे तुन्हारे अनुयायियों द्वारा, तुम्हारे गुणगान के लिए
हमेशा की तरह किसी द्रोपदी को महाभारत का कारण सिद्ध करते हुए...
या किसी सीता पर किए गए अविश्वास को धर्म का चोगा पहनाते हुए...

तुमहारे इतिहास के पदानुक्रम में हमें ऊपर या नीचे
कहीं कोई स्थान नहीं चाहिए
हम अपने हिस्से के पन्ने स्वयं लिख लेंगे .....
हो सकता है उन्हें धर्मग्रंथ का मान न मिले
पर तुम्हारे इतिहास में मानखंड़न से बेहतर है
अपनी क्षणिकाओं में सम्मान के साथ लिखा जाना.....

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