बुधवार, 17 अक्तूबर 2012

धनुर्धर




अनुभव प्रिय 

बोला अर्जुन,
"हे चक्रधर!
मेरा मात्र एक शर,
राधेय के रथ पर लग,
'पांच-सौ' सूत* पीछे धकेलता है |
 
धिक्कार है इस धनुर्धर पर
है निर्बल जिसका हरेक शर,
जिससे हमारे रथ पर,
'पांच-सूत' का मात्र प्रहार हो पाता है!
 
है यही शूर और यही वीर
जो मुझसे लड़ने चला है?
भाग जाए प्राण बचाकर,
इसके लिए यही भला है!
 
देखा है मैंने कि यह
स्वयं को समझता महारथी है,
भूल रहा है यह सूत-पुत्र
कि वस्तुतः वह सारथी है |
 
 
आया है रण में क्या सोच कर
कि नकेल** थामने वाले कर,
सकेंगे मुझसे लड़?
पूछता हूँ मैं उससे क्या
प्रत्यंचा खींच भी पाता है?”
 
रथ रोक,
बोले श्री कृष्ण,
"हे अर्जुन! सुन!
तू पूर्ण सत्य नहीं जानता,
है तुच्छ जिसे तू मानता,
वह है बड़ा पराक्रमी, बड़ा शूर,
मत हो अहंकार में चूर!
 
अंदर से तेरे कोई मूर्ख है झांकता,
जब भी तू शत्रु को कम है आकता|
तेरी दृष्टि भ्रमित-सी लग रही,
सोच क्या तुझे वह है ठग रही?
 
 
अहंकार को छोड़ 
मन की भीतियाँ तोड़ 
 सुन, उसकी शक्ति
यह सारथी तुझे बतलाता!
 
समस्त विश्व का लिए भार
जिस रथ हों स्वयं हरि विराजमान,
और शिव के अवतार,
विद्यमान हों पताका में हनुमान,
आक तनिक उस रथ का भार!
समझ यह तू, यह भी जान,
कि उस कर्ण का एक वार,
लगभग पांच सूत पीछे धकेल पाता है|
अब बता क्या तेरा वार
उसके वार से कहीं मेल खाता है?
 
निर्मल हुआ अर्जुन के मन का
म्लान-मलिन अभिमान-क्षार** 
और कृष्ण-मुख से समझा वह 
बात सही कुछ इसी प्रकार,
"धन्य कर्ण का बाण हरेक है
करता जो पांच सूत का प्रहार!"
 
...
 शब्दार्थ :
*सूत- छोटी लम्बाई को नापने का मान|
**नकेल-  घोड़े की नाक में बंधी हुई रासी जिससे लगाम का काम किया जाता है|
***अभिमान-क्षार: अभिमान रूपी क्षार( अल्कलाई)

10 टिप्‍पणियां:

  1. अभिमान किसी का कायम नहीं रहा है-----
    भगवान भी परास्त हो जातें हैं-----
    आपने जिस सार्थक अभिव्यक्ति के साथ समूचे प्रकरण को व्यक्त किया है
    वह केवल आप ही कर सकती हैं

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  2. मैंने नहीं ज्योति जी ... ये हैं अनुभव प्रिय

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  3. मुझे विश्वास है अनुभव प्रिय, अपने पिता के समान ही विद्वान घोषित होंगे ! सलिल वर्मा के पुत्र को, वे सब बुलंदियां नसीब हों जिनके संस्कार उन्हें बचपन से मिले हैं !
    मंगल कामनाएं इस बच्चे के लिए और आपका आभार कि आपने उसे मौक़ा दिया !

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  4. आभारी हूँ आपका जो आपने मुझ जैसे नौसिखिए को अपने ब्लॉग पर जगह दी...

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  5. अनुभव .. की इस उत्‍कृष्‍ट रचना को हम सबसे साझा करने के लिये आभार आपका

    अनुभव के लिये अनंत शुभकामनाएं

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  6. अनुभव को बहुत बहुत शुभकामनाएं...आभाए..

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  7. बहुत सुन्दर ,मन को छू गया .अनुभव प्रिय को बधाई और सुभकामनाएँ.

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  8. इस कथ्य को बहुत खूबसूरती से काव्य में बांधा है ... अनुभव को शुभकामनायें

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  9. एक शसक्त रचना .. अब बता क्या तेरा वार
    उसके वार से कहीं मेल खाता है?

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