शुक्रवार, 12 अक्तूबर 2012

आराधना - मेरी नज़र में http://feministpoems.blogspot.in/




पहचान हुई थी इस लड़की से
एक पन्ने की शक्ल में 
जी हाँ- ब्लॉग हमारी पहचान की डायरी 
जिसके हर पन्नों पर हमारी तस्वीर 
हमारे हाथों बनी है ...
तो आराधना के सामने जब मैं खडी हुई 
तो .... उसने कहा 'अहमस्मि'
यानि मैं हूँ !
आह्लादित मैं उसके मन के हर कमरे में दौड़ने लगी 
छोटे छोटे पुर्जों में भी उसे ढूँढा 
जाना 
और अपने कैनवस पर रखकर  टटोला 
जहाँ उसने कहा -
"मेरी अम्मा
बुनती थी सपने
काश और बल्ले से,
कुरुई, सिकहुली
और पिटारी के रूप में,
रंग-बिरंगे सपने…
अपनी बेटियों की शादी के,

कभी चादरों और मेजपोशों पर
काढ़ती थी, गुड़हल के फूल,
और क्रोशिया से
बनाती थी झालरें
हमारे दहेज के लिये,
खुद काट देती थी
लंबी सर्दियाँ
एक शाल के सहारे,

आज…उसके जाने के
अठारह साल बाद,
कुछ नहीं बचा
सिवाय उस शाल के,
मेरे पास उसकी आखिरी निशानी,
उस जर्जर शाल में
महसूस करती हूँ
उसके प्यार की गर्मी…"
........
कहा तो उसने बहुत कुछ 
कभी झांसी की रानी लगी 
कभी ध्रुवस्वामिनी 
कभी दुर्गा 
कभी गंगा 
प्रकृति के कण कण से वह उभरी 
उसके शब्द तलवार की धार बने 
तो स्वाति की बूंद भी बने 
....
महानगर के शोर में मन भी घबराया 
कहाँ जाएँ' का प्रश्न उभरा 
कभी उसकी सुबह बांस की पत्ती के कोनों पर अटकी 
कभी कोई शाम पक्षियों के कलरव में मुस्कुराई 
पर जब जब गुनगुनी धूप आँगन में उतरी 
अम्मा की हथेलियाँ बन गयीं ...
और मेरे मन के कैनवस पर आराधना 
अम्मा के जर्जर शॉल में सिमटी 
आज भी अम्मा के बुने सपनों सी लगती है !!!

28 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत पारखी है आपकी नज़र ... रश्मि जी ,

    आराधना की रचनाएँ झकझोर देती हैं .... आपकी नज़र से मिलना अच्छा लगा ।

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  2. उस जर्जर शाल में
    महसूस करती हूँ
    उसके प्यार की गर्मी…"

    mamatav to aise hi mahsus kiya jata hai...
    bahut behtareen..!!

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  3. अम्मा के जर्जर शॉल में सिमटी
    आज भी अम्मा के बुने सपनों सी लगती है
    लगता है मानो माँ की गोद ही मिल गई हो .......... !!

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  4. आपकी पारखी नज़र से कौन बचा रह सकता है………अराधना जी से मिलकर खुशी हुई।

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  5. आपकी नज़र से अराधना जी को पढ़ना अच्‍छा लगा ... आभार इस प्रस्‍तुति के लिये

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  6. आराधना को पढ़ती रही हूँ ...ये नहीं पढ़ा था ...शुक्रिया रश्मि जी ...बधाई आराधना

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  7. अरे वाह: आप कि कलम से अराधना को पढ़ना और जानना बहुत खुबसूरत सफर सा रहा...आभार

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  8. रश्मि जी आप कहाँ-२ से ढूंढ़ कर लाती हैं बेहद सुन्दर रचना है

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  9. बस एक ही बात जानना चाहती हूँ ...एक सवाल जो हरदम किया है आपसे ...कहाँ से ढूंढकर लाती हैं यह मोती ..यह बेशकीमती पत्थर ..यह अद्भित रचनाकार ! .
    .....अब एक और मोती...... आराधना ...आप दोनों का जवाब नहीं ...आपका अपना चित्रण और आराधना की रचना ..दोनों ही बेमिसाल .....

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  10. पर जब जब गुनगुनी धूप आँगन में उतरी
    अम्मा की हथेलियाँ बन गयीं ...
    और मेरे मन के कैनवस पर आराधना
    अम्मा के जर्जर शॉल में सिमटी
    आज भी अम्मा के बुने सपनों सी लगती है !!!

    बहुत बहुत बेहतरीन रश्मिप्रभा जी ! आभार आपका आराधना जी से मिलवाने का ! आपके माध्यम से उनकी इतनी सुन्दर रचना पढ़ सकी ! आपका धन्यवाद तथा आराधना जी को ढेर सारी शुभकामनायें !

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  11. अनमोल रचना...आराधना जी को ढेर सारी शुभकामनाएँ...आपका आभार!!

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  12. बहुत सुन्दर लिखती हैं-आराधना चतुर्वेदी
    सुन्दर रचनाएँ और सुन्दर व्यक्तित्व...
    आभार आपका दी इस सुन्दर परिचय के लिए..आराधना को बधाई.
    सादर
    अनु

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  13. आह हा ...आराधना की रचनाएँ तो ऐसी होती हैं कि बस कमाल... सीधा दिल की तह तक जाती हैं और झकझोर के रख देती हैं.और आपकी नजर भी कमाल है जो ऐसे हीरे ढूंढ लाती है.

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  14. सशक्त लेखन ....सीधे हृदय तक ....
    बहुत अच्छा लगा आराधना को पढ़ कर .....!!
    आभार रश्मि दी ...

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  15. आराधना जी को पढ़ना बहुत ही अच्छा लगता है !!!

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  16. एक ज़माना था जब अम्मा बुनती थीं सपने
    क्रोशिया से
    सलाई से
    अपनी कंपकंपाती बूढ़ी अंगुलियों से।
    अम्मायें आज भी हैं
    पूछती हैं
    कमाऊ बेटों से
    कितनी है ऊपरी कमाई?
    सपने वे आज भी देखती हैं
    पर अपने बेटों की कमाऊ आँखों से।
    दुर्लभ होती जा रही हैं
    अब वैसी अम्मायें भी।
    नमन ..और नमन
    आराधना की अम्मा।

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  17. आभार सभी का ! रश्मि जी के स्नेह से अभिभूत हूँ...

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  18. अम्मा के स्नेह की गरमाहट उनकी शाल में महसूस करना किसी कोमल ह्रदय का ही परिचय देता है सुंदर कविता के साथ आराधना जी के परिचय का शुक्रिया ।

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  19. आराधना जी को ढेर सारी शुभकामनायें.........बहुत अच्छा लगा आराधना जी पढ़ कर|

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  20. आराधना को ढेर सारी शुभकामनायें !

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  21. आराधना जी ने जिस प्रकार अपनी अम्मा की आराधना की है, मेरे विचार में यह दुनिया के एकमात्र ऐसे धर्म की आधारशिला है जिसे लेकर कोई विवाद और कोई साम्प्रदायिकता नहीं.. आराधना जी की यह अभिव्यक्ति आस्तिकता की परिभाषा को नया अर्थ प्रदान करती हैं.. माँ की यादों से लिपटी यह रचना बस दिल को छूती ही नहीं सहलाती है, थपकियाँ देती है...
    अम्मा के श्री चरणों में मेरा सादर नमन!!

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  22. माँ के शॉल में लिपटी आराधना और आपकी कविता में उस ऊष्मा को महसूस करते हुए आराधना से यहाँ मिलना अच्छा लगा !

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  23. अराधना को पढना हमेशा ही एक नए अनुभव से गुजरना होता है।
    उसकी कवितायें कभी तो दिल दिमाग को झकझोर देती हैं और कभी बड़ा सुकून भी पहुंचाती हैं।

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  24. मन में बहुत गहरे उतर गई रचना। अराधना जी को शुभकामनाएँ।

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  25. मैं जब यह पोस्ट पढ़ती हूँ तो आपके प्रति अत्यधिक आभार से भर जाती हूँ. धन्यवाद मुझे इस तरह से समझने के लिए. आपके प्रति एक अनन्य स्नेह है, जो हमेशा मेरे दिल में बना रहेगा. भले ही बहुत दिनों तक व्यक्तिगत संवाद न हो, लेकिन फेसबुक पर आपके अपडेट्स पढ़ती रहती हूँ...आभार !

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