शनिवार, 17 नवंबर 2012

तुम सुधर नहीं सकतीं सिंड्रेला...


हमको जहां से क्‍या... 

शायदा


सर्दी बढ़ रही है...सुधर जाओ सिंड्रेला।
ज़रा ख़याल करो। 
अपने पांव देखो...कितने खुरदरे और रूखे हैं,जैसे कभी कोमल थे ही नहीं। 
कब तक राजकुमार पर बोझ बनी रहोगी...?
खिड़की पर सिर टिकाए, राह देखोगी कि वह आकर तुम्‍हारा हाल पूछे...?
बहुत समय बीता  उस बात को , जब उसने कांच के नाजु़क सैंडल लेकर लोगों को तुम्‍हारी तलाश में दौड़ा दिया था।  
मत सोचो कि वो सिर्फ तुम्‍हारे लिए बने थे, इत्‍तेफा़क़ भी तो हो सकता है, उनके नाप का सही होना। 
चलो मान लिया, राजकुमार ने तुम्‍हें पांव ज़मीन पर न रखने की ताक़ीद की थी...
पर ये तो नहीं कहा था कि ज़मीन और पांव के बीच की सारी तकलीफों की किताब उसे ही पढ़नी होगी हमेशा...। 
क्‍या ये याद रखना बहुत मुश्किल है कि पांव तुम्‍हारे हैं, इसलिए उनकी फटी बिवाइयों का दुख भी तुम्‍हें ही जानना चाहिए....। 
जाओ सिंड्रेला अपने लिए एक जोड़ी जूते खरीद लो, राजकुमार के पास कुछ और नहीं है तुम्‍हारे लिए, और यूं भी नंगे पांव रहना, तुम्‍हें शोभता है क्‍या...?  
सिंड्रेला, इस बात का भी अब कोई भरोसा है क्‍या... कि राजकुमार के पास तुम्‍हारे साथ नाच लेने का वक्‍़त होगा ही। 

सुनो, हो सके तो सीख लो, सर्दी को सहना, यही दरअसल सर्द नज़र को सीख लेने का पहला सबक़ है। 
लेकिन मुझे पता है, तुमसे कुछ भी नहीं होगा....तुम सुधर नहीं सकतीं सिंड्रेला... क्‍या अब भी नहीं! 

9 टिप्‍पणियां:

  1. दिल है की मानता नहीं ----पर सच में आज की सिंड्रेला को दिल से नहीं दिमाग से काम लेने की जरूरत है बहुत बढ़िया प्रस्तुति बधाई आपको

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  2. ऐसा लग रहा है जैसे शायदा जी ने ये जबलपुर वाली सिंड्रेला के लिए लिक्खा है !
    शायदा जी बहुत अच्छी लगती हैं ! :-)

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  3. Babusha jee sahi kaha aapne...jabalpur wali k liye hi likha tha. thanks

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  4. शायदा जी ने आज की वास्तविक जीवन की सिंड्रेला का दर्द पाँव की बीवाइयों और कांच की चप्पल और राजकुमार के रूप में क्या खूब आहिर किया है...उम्दा ... आभार रश्मि जी इस सुन्दर पॉट के लिए ...

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  5. बहुत जबरदस्‍त लिखा है ... आभार इस प्रस्‍तुति के लिये

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  6. वाह बहुत भावुक अभिव्यक्ति

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  7. pyaar karna achha lagta hai na ! puraani aadat jo thehri..kaise sudhregi bhala ittti jaldi ! :)))

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