बुधवार, 4 जुलाई 2012

आम का मौसम और तुम्हारी यादें



वो पहली बारिश का सोंधापन
वो बाग़ में आमों का झुरमुट
पेड़ पर चढ़ना और डालियाँ हिलाना
फिर पूछना तुमसे,
क्या कोई पका आम गिरा है
कोई जवाब न मिलना
और तुम्हारा कच्चे आमों पर लट्टू होना
कच्ची उम्र की तमाम यादें
इंटर या बीए के साल की
जब पहली बार बेहाल हुए थे
हाँ-हाँ उसी साल की

बदलते मौसम में तुम्हारा मेरे गाँव आना
बरसती बूंदों सा मुझ पर छा जाना
और तुम्हारे जाते ही गाँव का मौसम बदल जाना
फिर अगले साल तक पहली बारिश का इंतज़ार
और पहली जून से ही मेरा बेचैन हो जाना
बीत चुके हैं बरसों तुम्हे आये मेरे गाँव में
पर यादों का मौसम आबाद है तुम्हारी यादों से
लगता है जैसे सब कल ही की तो बात है

कभी फुरसत निकालो, फिर आओ
मेरे गाँव का मौसम बदल जाओ
हमने भी कई आम के पेड़ लगाये हैं
उनकी शाखों पर झूमती तुम्हारी अदाएं है


दीपक की बातें

जिंदगी के सफर पर निकला एक मुसाफिर। क्रिकेट और सिनेमा का लती हूं। अयोध्‍या सिहं उपाध्‍याय हरिऔध और कैफी आजमी जैसी अजीम शख्सियतों के शहर आजमगढ़ का बाशिंदा हूं। लोगों से मिलना और बातें करना खूब भाता है। पत्रकारिता जगत में कलम घिसकर रोजी-रोटी चला रहा हूं। फिलहाल इंदौर शहर पत्रिका ग्रुप का दोपहर का अखबार न्‍यूज टुडे ठिकाना है। इससे पहले दैनिक जागरण ग्रुप के बाईलिंग्‍वल आई नेक्‍स्‍ट में कानपुर और आज अखबार में भी नौकरी।

7 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर....
    सोंधी सी रचना..

    सादर
    अनु

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  2. पर यादों का मौसम आबाद है तुम्हारी यादों से
    लगता है जैसे सब कल ही की तो बात है
    पुरानी यादें .... लगे जैसे सब कल ही की तो बात है
    सब के जीवन में ऐसा होता है न .... !!

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  3. सोंधी खुश्बूयुक्त रचना

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