शब्दों को ओस में भिगोकर ईश्वर ने सबकी हथेलियों में रखे .... कुछ बर्फ हो गए,कुछ नदी बन जीवन के प्रश्नों की प्यास बुझाने लगे .................. शब्दों की कुछ नदियाँ, कुछ सागर मेरी नज़र से =
मन की चादर पर
वक़्त ने डाली हैं
न जाने कितनी सिलवटें
उनको सीधा करते - करते
अनुभवों का पानी भी
सूख गया है
प्रयास की
इस्तरी ( प्रेस ) करने से भी
नहीं निकलतीं ये
और कुछ अजीब से
दाग रह जाते हैं पानी के
कितना ही धोना चाहो
धब्बे हैं कि
बेरंग हो कर भी
छूटते नहीं
काश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
संगीता स्वरुप
सबलोगो ने अपने जीवन में कुछ चरित्र ऐसे जरूर देखे होंगे जिन्होंने हमेशा दुसरो का भला किया , परिवार वालों के लिए खून-पसीना एक किया पर जब उन्हें जरूरत पड़ी तो परिवारवालों ने मुहं मोड़ लिया। ऐसा होता तो अक्सर है पर क्यूँ होता है? आखिर लोग इतने कृतघ्न क्यूँ हो जाते हैं, उनकी आँखों का पानी क्यूँ मर जाता है? आखिर इसके पीछे कैसी मानसिकता काम करती है ?क्या वे समझते हैं, उनका हक़ सिर्फ लेना है, और दुसरे का कर्तव्य उन्हें देने का है ? जब उसे जरूरत पड़ी तो ये तो असमर्थ हैं क्यूंकि इन्हें देना तो आता ही नहीं इन्होने तो सिर्फ लेना ही सीखा है।
एक परिचिता हैं। उनके पति पिछले तीस साल से सऊदी अरब में काम कर रहे हैं। पिता की मृत्यु के बाद बहुत कम उम्र में ही वे 'सऊदी अरब' नौकरी पर चले गए। खुद को हर ख़ुशी से महरूम रखकर , दिन रात खून पसीने बहा कर रुपये कमा कर भेजे और अपने दोनों भाईयों को पढाया -लिखाया, तीन बहनों की शादी की। खुद भी शादी की पर अपनी पत्नी और दोनों बेटों से दूर रहे। उनकी पत्नी और बच्चों ने भी साल में बस एक महीने के लिए ही पति और पिता का प्यार जाना। दोनों भाइयों की शादी हो गयी, बहनें ससुराल चली गयीं। फिर भी जब भी जिसे जरूरत पड़ी, ये बड़े भाई हमेशा सहायता को तत्पर रहे।
एक भाई को फ़्लैट बुक करना है तो एक भाई के बेटे को इंटरनेशनल स्कूल में पढ़ाना है, सबसे बड़े भाई ने मदद की । इनके बेटे को बाइक का शौक था, बेटे के लिए बाइक बुक भी कर दी। पर उनकी माँ ने कहा छोटे भाई को गाडी लेनी है, उसे लोकल ट्रेन से ऑफिस आने-जाने में दिक्कत होती है। बेटे को बाइक नहीं दिलाकर छोटे भाई के लिए गाड़ी खरीद दी।
सिर्फ पैसो से ही नहीं, मन से भी पिता सा स्नेह दिया। छोटी बहन को जब बार बार मिसकैरेज हो जा रहे थे तो पैदल चल कर 'सिद्धि विनायक मंदिर' गए और मन्नत मांगी । बहन के बेटे के जनम पर धूम धाम से पार्टी दी।
और आज वे कैंसर से जूझ रहे हैं। हॉस्पिटल में हैं। तो भाई-बहन कभी ऑफिस से छुट्टी न मिलने का, कभी बुखार का तो कभी बच्चों के इम्तहान का बहाना बना कभी कभार घंटे भर के लिए हॉस्पिटल में झाँक लेते हैं। डॉक्टर ने उनके बीस वर्षीय बेटे को अपने केबिन में बुला कर बीमारी की गंभीरता से अवगत करवाया। दो महीने में ही वह बीस साल का लड़का उम्र की कई सीढियां पार कर गया है। जहाँ उसके चाचा को पिता की जगह खड़े हो जाना चाहिए था, यह लड़का, अपनी माँ और अपने छोटे भाई को संभाल रहा है। उनकी पत्नी कहती हैं, हमें इनके भाई-बहनों से रुपये-पैसे नहीं चाहिए, बस प्यार और सांत्वना के दो बोल चाहिए, वो भी वे लोग नहीं दे सकते। जो ननदें कल तक बहनों जैसी थीं, फरमाइश करते नहीं थकती थीं, 'भैया से ये मंगवा दो ,वो मंगवा दो' आज भाई को देखने की भी फुर्सत नहीं है उनके पास।
पत्नी के भाई गाँव में रहते हैं, खेती पर निर्भर हैं और अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ा रहे हैं, कभी अपनी बहन और जीजाजी से एक पैसे की मदद नहीं ली . वे बारी बारी से आकर बहन को सहारा दे रहे है, उसे आश्वासन दे रहे हैं, रुपये-पैसे की फ़िक्र न करें ,इलाज में कमी नहीं होनी चाहिए , जरूरत पड़ने पर वे जमीन बेच देंगे।
क्या पैसा धीरे -धीरे जमीर को खा जाता है, कोई संवेदना शेष नहीं रहती न ही याददाश्त में ही कुछ बचा रहता है?? पैसा सबकुछ इरेज़ कर देता है?
ये दुनिया सचमुच जीने लायक नहीं है। कहते हैं,नेकी कर दरिया में डाल . पर जो नेकी कर के दरिया में डाल आता है, उसके साथ दुसरे भी नेकी कर दरिया में क्यूँ नहीं डाल आते ?
क्या नेकी करने का ठेका सिर्फ एक के पास ही होता है??
जाने क्यूँ प्यासा का ये गीत बहुत याद आ रहा है
रश्मि रविजा
अपनी, उनकी, सबकी बातें
ज़ख़्मी दिल का दर्द,तुम्हारे
शोधग्रंथ , कैसे समझेंगे ?
हानि लाभ का लेखा लिखते ,
कवि का मन कैसे जानेंगे ?
ह्रदय वेदना की गहराई, तुमको हो अहसास, लिखूंगा !
तुम कितने भी अंक घटाओ,अनुत्तीर्ण का दर्द लिखूंगा !
आज जोश में, भरे शिकारी
जहर बुझे कुछ तीर चलेंगे !
विषकन्या संग रात बिताते
कल की सुबह, नहीं देखेंगे !
वेद ऋचाएं समझ न पाया,मैं ईश्वर का ध्यान लिखूंगा !
विषम परिस्थितियों में रहकर,मैं केवल श्रंगार लिखूंगा !
शिल्प,व्याकरण,छंद, गीत ,
सिखलायें जाकर गुरुकुल में
हम कबीर के शिष्य,सीखते
बोली , माँ के आँचल से !
जो न कभी जीवन में पाया, मैं वह प्यार दुलार लिखूंगा !
बिना पढ़े दुनिया समझेगी,मैं ऐसी अभिव्यक्ति लिखूंगा !
हमने हाथ में, नहीं उठायी ,
तख्ती कभी क्लास जाने को !
कभी न बस्ता, बाँधा हमने,
घर से, गुरुकुल को जाने को !
काव्यशिल्प, को फेंक किनारे,मैं आँचल के गीत लिखूंगा !
प्रथम परीक्षा के, पहले दिन, निष्काषित का दर्द लिखूंगा !
प्राण प्रतिष्ठा गुरु की कब
से, दिल में, करके बैठे हैं !
काश एक दिन रुके यहाँ
हम ध्यान लगाये बैठे हैं !
जब तक तन में जान रहेगी, एकाकी की व्यथा लिखूंगा !
कितने आरुणि,मरे ठण्ड से,मैं उनकी तकलीफ लिखूंगा !
कल्प वृक्ष के टुकड़े करते ,
जलधारा को दूषित करते !
तपती धरती आग उगलती
सूर्य तेज का, दोष बताते !
जड़बुद्धिता समझ कुछ पाए,ऐसे मंत्र विशेष लिखूंगा !
तान सेन, खुद आकर गाएँ, मैं वह राग मेघ लिखूंगा !
शब्द अर्थ ही जान न पाए ,
वाचक्नवी का वेश बनाए !
क्या भावना समझ पाओगे
धन संचय के लक्ष्य बनाए !
माँ की दवा, को चोरी करते , बच्चे की वेदना लिखूंगा !
श्रद्धा तुम पहचान न पाए,एकलव्य की व्यथा लिखूंगा !
सतीश सक्सेना
कई प्रश्न उलझाते हैं हमें, मेरी नज़र में ये जिनके पदचिन्ह हैं - उनका असर उलझनों को एक नया आयाम देंगे ....
कई प्रश्न उलझाते हैं हमें,sundar links ...........
जवाब देंहटाएंइनकी रचना पढ़ना बहुत अच्छा लगता है ........
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जवाब देंहटाएंकाश --
मन की चादर के लिए भी
कोई ब्लीच होता ।
-कुछ धब्बे जो कभी नहीं जाते, शायद हर संवेदनशील मन, संगीता जी की इस रचना की तरह ही है ..
-रश्मि रविजा की इस रचना की तरह, शायद मेरी भी परिणिति हो , मानव मन में प्यार के लिए समय ही नहीं बचा है ..
इस बार बिना आभार व्यक्त किये चले जाते हैं , मित्रों को आजमाना भी चाहिए न :)
मील के पत्थर ....
जवाब देंहटाएंबधाई संगीता दी ,रश्मि रविजा जी,सतीश सक्सेना जी ।
आभार रश्मि जी .... आपकी नज़र से मैं मील के पत्थरों में शामिल हूँ .... निहार रही हूँ वो पथ जो मंज़िल तक जाता है ।
जवाब देंहटाएंमन के दाग भी छूट पाते तो क्या बात होती
जवाब देंहटाएंआदरणीया आपकी नज़र वाकई बहुत ही पारखी तीनो के तीनो रचनाकार बेहद सुन्दर लिखते हैं इनकी लेखनी अत्यंत सुन्दर है साझा करने हेतु हार्दिक आभार आपका.
जवाब देंहटाएंआपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार २५ /६ /१३ को चर्चा मंच में राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी आपका वहां हार्दिक स्वागत है ।
जवाब देंहटाएंबिल्कुल मील के पत्थर संजो रही हैं आप …………आभार
जवाब देंहटाएंउत्क्रुस्त सार्थक अभिव्यक्ति .
जवाब देंहटाएंतीनो ही रचनाये प्रभावशाली हैं
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार :)
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया प्रेरक प्रस्तुति .....
जवाब देंहटाएंteeno rachnaayen lajwaab
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