प्रश्न हाहाकार कर रहा है, - कौन बोलेगा गुमनामी की सूनामी में !!!
परिचय लिखने का शौक तो बचपन से था, ब्लॉग ने मेरी भावनाओं को आप तक पहुचाने की राह आसान कर दी. काफी भावुक और संवेदनशील हूँ. कभी अपने भीतर तो कभी अपने आस-पास जो घटित होते देखती हूँ, तो मन कुछ कहता है, बस उसे ही एक रचना का रूप दे देती हूँ. आपके आशीर्वाद और सराहना की आस रखती हूँ...
मिथ्या दंभ में चूर
स्वयं को श्रेष्ठ घोषित कर
कोई श्रेष्ठ नहीं हो जाता
निर्लज्जता का प्रदर्शन
निशानी है बुद्धुत्व की
सूर्य को क्या जरुरत
दीपक के प्रकाश की
वह तो स्वयं प्रकाशित है
फ़िर, प्रतिस्पर्धा कैसी?
है हिम्मत ....?
तो बन जाओ उसकी तरह
छूकर दिखाओ ऊँचाइयों को
जगमगाओ उसकी तरह
जिस दिन ऐसा होगा
स्वयं झुक जाओगे
फलाच्छादित वृक्ष जैसे
चमकोगे आकाश में
तारों बीच चाँद की तरह
कीर्ति जगमगाएगी
"युगे युगे" दसों दिशाओं में
यही है मृत्यु लोक में
वैतरणी से तरने का मार्ग....
संजय कुमार चौरसिया
परिचय - बचपन से लेकर आज तक जीवन के हर पहलु को बहुत ही करीब से देखा है मैंने ! " जीवन की आपाधापी " में ही ये वक़्त गुजर जाता है ! मेरे एक अजीज हैं , जिन्होंने मुझे लिखने के लिए प्रेरित किया ! मैं शिवपुरी मध्य-प्रदेश का रहने वाला हूँ ! पिछले 16 वर्षों से शेयर मार्केट में कार्यरत हूँ ! 3 साल से लिखने की और सीखने की कोशिश कर रहा हूँ ! मार्ग-दर्शन होंसला बढ़ाता है ! मोबाईल no. 09993228299 मेरा इ-मेल पता है ! sanjaystock07@gmail.com
अभी पिछले दो हफ्ते पहले की बात है , हमारे शहर ग्वालियर में एक नौंवी कक्षा की होनहार स्कूल छात्रा ने अपने ही पिता की बन्दूक से अपने आप को गोली मारकर आत्महत्या कर ली , इस दिल दहला देने वाली घटना को जिसने सुना दंग रह गया , आखिर क्यों उसने ऐसा किया ? जब कारण मालूम चला तो लोगों के होश उड़ गए .. कारण था उस छात्रा का परीक्षा में गणित का पेपर बिगड़ना .. क्या इतनी छोटी सी बात पर आत्महत्या कर लेना सही था ...? मैं तो कहता हूँ कि , किसी भी बात पर आत्महत्या कर लेना सबसे बड़ी बुजदिली की निशानी है ! आत्महत्या किसी भी समस्या का समाधान नहीं है अपितु इससे अनेकों प्रश्न हमारे सामने उत्पन्न होते हैं ! फिर भी इस तरह के मामले हम हर साल सुनते और देखते हैं ! इस तरह के अनेकों मामले हमारे सामने कई बार आये हैं ! जब किसी छात्र -छात्रा ने परीक्षा में फ़ैल होने पर अपने गले में फाँसी का फंदा डालकर अपनी जीवनलीला समाप्त कर ली ? जरा जरा सी बात पर बच्चों का इतनी जल्दी आप खो देना अपनी जान लेने की कोशिश करना .? आखिर क्यों .? क्या गुजरती होगी ऐसे माता - पिता के दिल पर जब वो अपने ही बच्चों की लाश अपने कन्धों पर ढोते होंगे , जिन कन्धों पर बैठाकर उनको उज्जवल भविष्य के सपने दिखाए ? क्या इसी दिन के लिए माता-पिता अपना पेट काटकर अपने बच्चों के सुनहरे भविष्य का सपना देखते हैं ! अब इस तरह के मामलों में हम किसको दोष दें ? कौन है इसके लिए जिम्मेदार ? शायद हम सभी जिम्मेदार हैं इस तरह के हादसों के लिए ! एक कारण ... माता - पिता द्वारा बच्चों पर अधिक प्रेशर का डालना कि, हर हाल में , किसी भी कीमत पर अच्छे नंबरों से पास होना ही पड़ेगा, फिर चाहे इसके लिए तुम्हें २४ घंटे ही क्यों ना पढ़ना पड़े ? हमें तुमसे बहुत उम्मीदें हैं इत्यादि ! स्कूल का प्रेशर हमेशा होनहार बच्चों पर रहता है, क्योंकि स्कूल की रेपुटेशन का सवाल होता है जहाँ टीचर्स बच्चों पर कुछ ज्यादा ही दबाब बनाते हैं ! या फिर बच्चे स्वयं इसके लिए जिम्मेदार है जो जरा जरा सी बातों पर अपनी सुध-बुध खो देते हैं ! एक दुसरे से आगे निकलने की होड़ जिसके लिए कुछ भी कर गुजरें ! सच कहूँ तो जिम्मेदार हम सभी हैं और हम सभी को इसकी जिम्मेदारी लेनी भी होगी ! क्योंकि किसी की एक गलती हमसे हमारी खुशियाँ छीन सकती हैं ! फिर भी सच तो ये है कि बच्चे तो बच्चे होते हैं उनमें बचपना भी बहुत होता है और लम्बे समय तक ये उनके साथ भी रहता है ! बच्चों में ज्ञान की कमी होती है , उन्हें सही गलत का अनुमान नहीं होता , कौन सी बात उनके मन में कब घर कर जाये इसका अनुमान हम लोग नहीं लगा सकते ! फिर भी बच्चों की उम्र के इस पड़ाव में उन्हें माता-पिता के साथ की आवश्यकता हमेशा होती है ! इस उम्र में बच्चों की सोच उनके हाव-भाव , व्यवहार में तेजी से परिवर्तन होता है ! कुछ बच्चे वक़्त के साथ ढल जाते हैं और सही गलत का अनुमान लगा लेते हैं फिर भी सभी बच्चों को उचित मार्ग-दर्शन की आवश्यकता होती है ! जब से हमने अपने आप को जरूरत से ज्यादा व्यस्त कर लिया है तब से हम लोगों का ध्यान अपने बच्चों से और उनकी दिनचर्या , क्रिया-कलाप , व्यवहार से पूरी तरह हट गया है और आज अधिकांश परिवारों में यही स्थिति है ! बच्चों के लिए माता-पिता का प्यार , स्नेह , मार्ग-दर्शन , उनके लिए समय निकालना किसी संजीवनी बूटी से कम नहीं है ! अगर बच्चों के लिए माता-पिता के पास समय नहीं है तो इस तरह की स्थिति उनके साथ भी निर्मित हो सकती है ! खास तौर पर होनहार बच्चे इस तरह की वारदात को ज्यादा अंजाम देते हैं ! क्योंकि वो इस बात को बहुत गहराई से सोचते हैं और असफल होने पर उन्हें शर्मिंदगी महसूस होगी ! बस यहीं वो गलती कर जाते हैं ! माता-पिता जब बच्चों को ज्यादा होशियार समझने लगते हैं तो उनका भी ध्यान बच्चों से उनकी दिनचर्या से हट जाता है और वो बड़ी बेफिक्री महसूस करते हैं ! यदि आप ऐसा कर रहे हैं तो आप अलर्ट हो जाइये !
मैं सभी होनहार बच्चों से गुजारिश करूंगा कि , हमारा जीवन बहुत ही अनमोल है और ये जीवन हमें एक बार ही मिलता है ! हमें कभी भी छोटी - छोटी असफलताओं से निराश नहीं होना चाहिए और छोटी - छोटी सफलता पर किसी भी तरह का घमंड नहीं करना चाहिए ! क्योंकि ये दोनों स्थिति हमारे लिए हितकर नहीं हैं ! क्योंकि जान है तो जहान है और हम जिन्दा रह कर ही इतिहास बना सकते हैं ! सभी माता - पिता से गुजारिश है , कृपया अपने बच्चों को अपना समय दीजिये और जीवन उपयोगी बातों से उन्हें अवगत करायें !
विशेष ......>> जिन घरों में नन्हें - मुन्हें बच्चें हैं उन घरों में कृपया अपनों की ही मौत का सामान ना रखें जिन्हें हम हथियार कहतें हैं क्योंकि जब गोली चलती है तो वो ये नहीं देखती की कौन अपना है कौन पराया वो सिर्फ खुशियाँ छीनती है ..... इसलिए कहता हूँ कि , ... ये सवाल आपकी अपनी खुशियों का है
अमित श्रीवास्तव
परिचय - "शब्द भीतर रहते हैं तो सालते रहते हैं, मुक्त होते हैं तो साहित्य बनते हैं"। मन की बाते लिखना पुराना स्वेटर उधेड़ना जैसा है,उधेड़ना तो अच्छा भी लगता है और आसान भी, पर उधेड़े हुए मन को दुबारा बुनना बहुत मुश्किल शायद...।
चाय कैसी बनी है ,सवेरे का पहला सवाल ? मेरा सच भरा जवाब , थोड़ी मीठी ज्यादा है । उधर से आवाज़ आई , चीनी तो रोज़ ही इतनी डालती हूँ ,आज ज्यादा मीठी क्यों लग रही है ! क्या कहूँ ,रोज़ झूठ बोल देता था , आज सच बोल दिया ।
अच्छी चाय पीनी है तो बनालो अपने आप और मुझे भी पिलाओ और सिखाओ अच्छी चाय कैसे बनती है , तमतमाया हुआ डायलाग था यह, उधर से । हो गई मेरे दिन की शुरुआत 'एक कप सच' के साथ ।
फूल लेकर उतर रहा था ,सीढियों से नीचे कि , आवाज़ सुनाई पड़ी ,हाथ तो धो लिए थे ,फूल तोड़ने से पहले ? मैंने सच कह दिया , नहीं ,हाथ तो नहीं धोये थे क्योंकि हाथ तो मेरे गंदे हुए ही नहीं अभी सवेरे से, सो हाथों को क्यों धोना । ठीक है फिर फूलों को भगवान् के पास मत रखियेगा ,मै दूसरे तोड़ लाऊँगी ,आप के बस का कुछ नहीं । वही अगर रोज़ की तरह झूठ बोलकर 'हाँ' बोल दिया होता तो सब ठीक होता । परन्तु मेरी तो आज मति मारी गई थी जो सच बोलने का संकल्प ले रखा था।
आफिस के लिए निकलते निकलते फरमान मिला ,शाम को जल्दी आइयेगा ,रजनी ( उनकी एक सहेली ) के यहाँ चलना हैं ,उनकी बेटी का सेलेक्शन हो गया है एम.बी.ए. के लिए ,सो बधाई देने के लिए । मैंने सच कह दिया ,मैं नहीं आ पाउँगा एक मीटिंग है ( वैसे रोज की तरह कह सकता था कोशिश करूंगा ,यह जानते हुए भी कि आ नहीं सकूँगा ) ,नतीजा बिना हाय बाय के विदाई और गेट का एक जोर की आवाज़ के साथ बंद होना ....भड़ाक ...।
आफिस झुंझलाते हुए पहुंचा ( जब भी मन से 'हाय बाय' नहीं मिलती तब आफिस जाने में रास्ते भर मन खिन्न रहता है ) । वहां तमाम लोग प्रतीक्षा कर रहे थे । किसी को अपने बिजली के बिल के गलत होने की शिकायत थी , कोई बिजली चोरी में पकड़ा गया था ,कोई नया कनेक्शन न मिलने की शिकायत कर रहा था । सभी को सुनने के बाद मैंने सच सच बता दिया कि उनका काम तत्काल हो सकने वाला नहीं है और गलत काम में जयादा मदद भी नहीं हो सकती ( अक्सर ऐसे मौकों पर मैं झूठी दिलासा देकर टाल जाता हूँ कि देखेंगे ,कोशिश करेंगे ) ।मेरा जवाब सुनते ही ज्यादातर लोग भड़क गए । कोई किसी माननीय विधायक से बात करने को कहता ,कोई किसी मंत्री जी के हवाले से जोर डालने लगता ,कोई कहता आप तो बिलकुल सुनते ही नहीं किसी की, और साफ़ साफ़ मना कैसे कर देते हैं आप । न करना हो, न करिए परन्तु ऐसे सच में कोई इनकार नहीं करता । अनेक लोगों ने अपने मोबाइल से तमाम सिफारिशी लोगों से बात भी कराई । जब मैंने सच सच बयान करते हुए उनके काम न हो पाने के सही वैधानिक कारण बताये ,तब उधर से उसी फोन पर मुझसे कहा गया ,अरे न हो पाए तो न करना पर इन्हें मना मत करिए । कुछ आश्वासन देकर टाल दीजिये ,यह सब नेता जी के क्षेत्र के आदमी हैं।
इतना सब होते होते २ घंटे व्यतीत हो गए । तभी मेरी एक स्टाफ आई और आते ही बोली ,सारी सर , आज मैं लेट हो गई , असल में बच्चों के स्कूल में पी टी एम थी । मैंने कहा , आप तो रोज लेट आती हैं ( अमूमन मैं चुप रहता हूँ और तुरंत तो कभी नहीं डांटता अपने स्टाफ को ), इतना सुनते ही वह अपना मुंह लटकाए हुए वहां से ऐसे चली गई ,जैसे कोई महिला मेक अप करा कर पार्लर से निकले और आप उससे कह दो ,कुछ दिनों से बीमार चल रही हो क्या !
शाम को बॉस ने पूछा और अमित क्या चल रहा है ,फील्ड में लोग खुश तो हैं मेरी (बास की ) वर्किंग से । मैंने छूटते ही सच कह दिया , नहीं सर , आप थोड़ा हार्श कम हुआ करिए , नहीं तो किसी दिन कोई आफिसर रीटेलियेट कर सकता है ,तब आपकी पोजीशन आकवर्ड हो जाएगी । इतना सुनकर बॉस का चेहरा लाल हो गया और मुझसे बोले ,चलो ठीक है अब घर चला जाए । शायद उन्हें भी मेरा सच जंचा नहीं ।
अभी अभी आवाज़ आ रही है , ब्लागिंग कर रहे हैं क्या ,पहले खाना खा लीजिये ,मैं वेट कर रही हूँ । मैं जोर से झूठ बोल रहा हूँ ,नहीं आफिस की मेल देख रहा हूँ । सच का साथ छोड़ कर झूठ बोलकर अगले दिन की अच्छी शुरूआत करने की तैयारी आज की रात से कर रहा हूँ ।
यह सच है कि सच में सच बोलना सबसे बड़ा झूठ है ।
मानव 'मन': अनकहे लफ्ज़ - मानव मेहता 'मन'
परिचय - ज़िक्र करूँ क्या मैं अपने बारे में, मुझे खुद नहीं मालूम मेरी औकात क्या है.."
कुछ अनकहे लफ्ज़-
टांगे हैं तेरे नाम,
इक नज़्म की खूंटी पर...
और वो नज़्म-
तपती दोपहर में...
नंगे पाँव-
दौड़ जाती है तेरी तरफ ...!!
गर मिले वो तुझको,
तो उतार लेना वो लफ्ज़-
अपने जहन के किसी कोने में
महफूज कर लेना....!!
और मेरी उस नज़्म के पांव के छालों पर,
लगा देना तुम अपनी मोहब्बत का लेप.....!!
परिचय - वाराणसी में पला-बढ़ा, दिल्ली में अध्यापन कार्य में संलग्न हूँ। जब कभी मैं दिल के गहराई में कुछ महसूस करता हूँ तो उसे कविता के रूप में पिरो देता हूँ। अभिनय भी मेरा शौक है।
चलो मान लिया
कि तुम नहीं
दृष्टिहीन हो,
पर फायदा क्या
जब तुम्हारे अंदर
दृष्टि ही न हो
*************
बिछा रखा था
जिसके लिये
हर राह में आईना
आस टूटने लगी है
अब तक तो वो
आई ना
***************
ओ री सखी !
अब तो शुरू कर दे
सजना
आ ही रहे होंगे
तुम्हारे
सजना
लाल स्कार्फ वाली लड़की - my dreams 'n' expressions ... अनुलता
परिचय - मैं हूँ अनु..अनुलता राज नायर. दो बेटों की माँ हूँ. केमेस्ट्री में एम.एस.सी किया है.पढ़ना बहुत पसंद है.विद्यार्थी जीवन में पढाकू किस्म की थी सो तब कविता सूझती न थी.... फिर कुछ यूँ हुआ कि ज़िन्दगी ज़रा ठहरी और वक्त मिला भावनाओं को शब्दों में अभिव्यक्त करने का.. !! कभी सुकून मिला तो दिल गुनगुनाया..या कभी दर्द हुआ तो मन कसमसाया...और जो दिल में आया उसको ढाल दिया शब्दों में....अनजाने ही बन गयी कविता.. अब कुछ सालों से लेखन कर रही हूँ .......
वो देखता रहता उस पनीली आँखों वाली लडकी को,रेत के घरौंदे बनाते और बिगाड़ते.....उसे मोहब्बत हो चली थी थी इस अनजान,अजीब सी लडकी से...जो अक्सर लाल स्कार्फ बांधे रहती.....कभी कभी काला भी...
बरसों से समंदर किनारे रहते रहते इस मछुआरे को पहले कभी न इश्क हुआ था न कभी ऐसी कोई लडकी दिखी थी.जाने कहाँ से आयी थी वो लडकी इस वीरान से टापू में....देखने में भली लगती थी मगर कुछ विक्षिप्त सी,खुद से बेपरवाह सी...(जाने लहरें उसे बहा कर लाई हैं या किसी मछली के पेट से निकली राजकुमारी है वो...मछुआरा अपनी सोच के साथ बहा चला जाता था..)
लडकी को देखते रहना हर शाम का नियम था उसका.वो बिना कुछ कहे लड़की को समझने की नाकाम कोशिश करता था.
एक रोज़ वो लडकी के करीब पहुंचा....लडकी भी उसकी उपस्थिति से अभ्यस्त हो चुकी थी सो उसने कोई प्रतिक्रिया नहीं की....बस अपना घरौंदा बनाती रही.....तोड़ देने के लिए...
तुम इतने सुन्दर घरौंदे क्यूँ बनाती हो ???और फिर उन्हें यूँ रेत में मिला देती हो??
कोई मिटाने के लिए भी बनाता है भला?? और ये लाल काला स्कार्फ क्यूँ बदलती हो??? एक साथ सारे सवाल दाग दिए उसने,मानों कहीं एक सवाल के बाद लडकी कोई रोक न लगा दे उसके बोलने पर.
बिना अपना चेहरा उठाये वो लड़की बोली ,जब मैं घरौंदे बनाती हूँ तब प्रेम में होती हूँ और तब ये लाल स्कार्फ पहन लेती हूँ,घर के बनते ही मैं नफरत हो जाती हूँ और काला स्कार्फ पहन लेती हूँ और फिर मुझे घरौंदा तोडना अच्छा लगता है.
उसकी आवाज़ जैसे किसी शंख के भीतर से निकली ध्वनि हो....
खुद को सम्मोहित होने से रोकते हुए लड़के ने कहा-
तो तुम्हारे भीतर दो व्यक्तित्व हैं...एक भला एक बुरा !! आखिर कैसे जी लेती हो ये दोहरा जीवन?
लड़की ने पहली दफा पलकें ऊपर उठायी......सागर की गहराई मानों कम पड़ गयी उसकी आखों के आगे...और चेहरे की लुनाई मानों कोई तराशा हुआ सीप....
सच कहा तुमने मछुआरे....थक गयी हूँ ये दोहरा जीवन जीते जीते....कहो क्या तुम जियोगे मेरा एक जीवन???
लड़के की हाँ और न को सुने बिना ही उसने काला स्कार्फ लड़के की गर्दन में लपेट दिया और कहा अब इस घरोंदे को तुम तोड़ो.....मेरे भीतर की बुरे को तुम जियो.....
भीगी आँखों से लड़के ने घरौंदा तोड़ दिया और लड़की के गालों पर भी लुढ़क आये आँसू......
इसके पहले कभी एक सीप में दो मोती उसने न सुने न देखे थे .
अब तो ये नियम बन गया...लडकी साहिल से दूर सुन्दर घरौंदा बनाती,लहरों से बचाती और फिर खुद लड़के से तोड़ डालने को कहती फिर जाने क्यूँ उन दोनों की आँखों से आँसू निकल आते...
लडकी के साथ एक सुन्दर सपनों का घर बनाने का ख्वाब देखने वाले लड़के के लिए ये एक यातना से कम न था,मगर बावली लडकी से इश्क की कीमत तो उसको चुकानी ही थी.
लड़का कहता तुम्हें घर तोडना ही है तो साहिल के नज़दीक क्यूँ नहीं बनाती,लहरें खुद-ब-खुद बहा ले जायेंगी,मगर लडकी कहाँ सुनती,कहती तुम तो हो तोड़ने के लिए,सागर की लहर ही तो हो न तुम......और उसका ये अनोखा क्रूर खेल चलता रहता.
लड़का थक गया उसे मनाते,समझाते......मगर वो नहीं मानी...लड़के ने खुद ही सोच लिया कि शायद किसी पहले प्यार की नाकामी ने ही उसको पागल बना दिया होगा,और अब उसके दिल में प्यार के लिए कोई गुंजाइश न थी....हाँ,मगर वो हर शाम सागर किनारे इंतज़ार करती मछुआरे का और उसकी कश्ती किनारे लगते ही वो घरौंदा बनाने जुट जाती.
उस शाम सूरज ढल गया,मछुआरा नहीं लौटा.लड़की साहिल पर इंतज़ार करती रही और तारे निकल आये मगर कोई कश्ती किनारे नहीं लगी.
उस रोज़ समंदर लील गया था लड़के को...कौन जाने लहरों ने उसे डुबोया या उसने खुद जल समाधी ली !!
लड़की तो पहले ही बावली थी....
वो अब भी घरौंदे बनाती थी साहिल से दूर.......मगर घरौंदा बनते ही एक लहर जाने कहाँ से अपने तटबंध तोड़ती वहां तक आती और साथ ले जाती घरौंदा,और लड़की के दो बूँद आँसू भी.
लोग कहते हैं इसके पहले न समंदर इतना खारा था न ही सीप के भीतर मोती निकला करते थे.
बहुत सुंदर संकलन ...पढ़कर बहुत आनंदानुभूति हुई
जवाब देंहटाएंशुक्रिया ....:)
वाह.....
जवाब देंहटाएंआभारी हूँ दी आपकी.....
सभी रचनाकारों को बधाई.
सादर
अनु
सुन्दर संकलन
जवाब देंहटाएंसादर आभार !
एक से बढ़कर एक , दुबारा पढना भी अखरता नहीं !
जवाब देंहटाएंआपकी चिंता जायज़ है, तरक्की के नाम पर प्रकृति से खिलवाड़ का नतीजा भी हमे ही भुगतना होगा... गंभीर विषय पर रचनाओं का सुन्दर संकलन करने के लिए आपका बहुत-बहुत आभार एवं सभी रचनाकारों को बधाई...
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