अजनबी रास्तों पर
पैदल चलें
कुछ न कहें
अपनी-अपनी तन्हाइयाँ लिए
सवालों के दायरों से निकलकर
रिवाज़ों की सरहदों के परे
हम यूँ ही साथ चलते रहें
कुछ न कहें
चलो दूर तक
तुम अपने माजी का
कोई ज़िक्र न छेड़ो
मैं भूली हुई
कोई नज़्म न दोहराऊँ
तुम कौन हो
मैं क्या हूँ
इन सब बातों को
बस, रहने दें
चलो दूर तक
अजनबी रास्तों पर पैदल चलें।
दीप्ति नवल
चलो दूर तक
जवाब देंहटाएंअजनबी रास्तों पर पैदल चलें।
... bahut khub...
pahlee baar Dipti naval jee ko aapke karan padh pa raha hoon ... dhanyawad:)
जो हुआ था कल
जवाब देंहटाएंउसे भूल जाओ
थोड़ा मैं आगे चलूँ
थोडा तुम आगे चलो
इन सब बातों को
जवाब देंहटाएंबस, रहने दें
चलो दूर तक
अजनबी रास्तों पर पैदल चलें।
चयन और अभिव्यक्ति दोनो ही उत्कृष्ट ... आभार आपका
चलो दूर तक
जवाब देंहटाएंअजनबी रास्तों पर पैदल चलें।
दीप्ति जी को पढ़ना सुखद लगा...आभार !!
बहुत सुन्दर और भाव प्रवण्।
जवाब देंहटाएंmujhe kavutaaon ka shauk deepti naval jee se hi laga......unhe padh kar hee kavitaaon kee or rujhaan hua...
जवाब देंहटाएंbahut sundar
anu
बहुत सुन्दर भाव ......
जवाब देंहटाएंजो हुआ था कल
जवाब देंहटाएंउसे भूल जाओ
थोड़ा मैं आगे चलूँ
थोडा तुम आगे चलो
बहुत सुन्दर भाव
तुम अपने माजी का
जवाब देंहटाएंकोई ज़िक्र न छेड़ो
मैं भूली हुई
कोई नज़्म न दोहराऊँ
यहाँ तक पहुँचाने के लिए ,
आभार आपका रश्मि जी .... !!
bahut achchhi lagi kavita
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव
जवाब देंहटाएंसुन्दर भाव
जवाब देंहटाएं