1 . बच्चे सपना देखते हैं
बच्चे सपना देखते हैं
पहले भी देखते थे सपने वे
घोड़े पर बैठे राजकुमार
के रूप में
खुद को देखते थे सपनों में
या फिर परियों की संगत में
उड़ते-फिरते रहते थे
आसमान में
सपनों में.
उनके आज के सपनों का
सारतत्व बदल गया है
बदल क्या गया है
बदलवा दिया है
मा-बाप ने
ऐसे सपने जो छीन लेते हैं
बचपन
बना देते हैं अकाल युवा.
चिंताग्रस्त युवा जो घबराता है
सपनों के बोझ से.
2. बच्चों को बड़ा होने दो पेड़ सा
बच्चों को उनके अधिकार
बताने का कोई अर्थ नहीं है
बड़ों को बताओ
बच्चों के प्रति उनके कर्तव्य.
कि बच्चे खेल-कूद सकें
पढ़-लिख सकें
बड़े हो सकें
जैसे उन्हें होना चाहिए बड़ा.
और फिर?
और फिर
बड़े होकर वे निभा सकें
अपनी भूमिका घर-परिवार में,
समाज में.
ज़रूरत है इसके लिए बहुत ही
इस बात की
कि वे जोड़ सकें अपने-आपको
घर-परिवार से
आस-पड़ोस से
और देश से जो
बहुत अमूर्त-सा लगता है
सरोकारों के अभाव में.
सरोकार जो देते हैं
विस्तार
एक को दूसरे से जोड़ते हैं
फिर सौवें से हजारवें से
और लाखों-लाखवें से.
तभी तो बनता है,
ऐसे जुड़ते चले जाने ही से
बनता है देश और
समाज.
बच्चों को बढ़ने दो पेड़
की तरह
बोनसाई मत बनाओ उन्हें
सजावट-दिखावट की चीज़ नहीं
होते बच्चे. बच्चों पर गर्व करो
उनकी क्षमताओं के पल्लवित-पुष्पित
हो जाने पर
ग़लत है नाराज़ी उनसे तुम्हारे
सौंपे हुए सपनों की नाकामी पर.
-मोहन श्रोत्रिय
http://sochi-samajhi.blogspot.in/
गहन भाव लिए उत्कृष्ट लेखन ...आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर....अर्थपूर्ण रचनाये.....
जवाब देंहटाएंमोहन जी को अक्सर पढ़ा करती हूँ....
शुक्रिया दी.
अनु
बच्चों को बढ़ने दो पेड़
जवाब देंहटाएंकी तरह
समय की यही मांग है
बना देते हैं अकाल युवा.
जवाब देंहटाएंचिंताग्रस्त युवा जो घबराता है
सपनों के बोझ से.... ऐसा नहीं होना चाहिए न
ग़लत है नाराज़ी उनसे तुम्हारे
सौंपे हुए सपनों की नाकामी पर.... बिलकुल सही