शनिवार, 22 मार्च 2014

माया मृग



समय बलवान होता है 
बेटा बड़ा हो जाता है 
दुनियादारी का बादशाह 
और पिता 
जो उसके ऊँचे कद की दुआ माँगता है 
उसकी माँ के साथ 
वह माँ को देखता है 
माँ इशारे से चुप होने को कहती है 
बढ़ता जाता है सन्नाटा 
बेटे को फुर्सत कहाँ जो वक़्त दे 
बात करे  !!!
बेटा जब एक सी बंदूक हर बार माँगता था 
पिता  .... खरीद लाते थे 
पिता चश्मे के बगैर जब चश्मा माँगते हैं 
बेटा नहीं  सुनता - वक़्त जो नहीं होता 
                                            … जीवन के एक सच के साथ माया मृग 


बड़ा होता बेटा
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बड़ा हो रहा है बेटा
छोटे होते जा रहे हैं उसके संवाद पिता से......

बेटा जानता है पिता अंतिम व्‍यक्ति नहीं हैं
जिन्‍हें पता है दुनिया के सारे सच....

वह जानता है, 
पिता ने बहुत छोटे दायरों में गंवा दी उम्र
जबकि जिया जा सकता था
बड़े बड़े तरीकों से....

बेटे के तरीके नापसंद करने जितनी छूट नहीं
पिता को
पिता के तरीके पसंद किया जाना जरुरी नहीं
बेटे को....

स्‍वतंत्रता के लिए लड़ा नहीं जो कभी
जानता है स्‍वतंत्रता से जीना अपने में
नहीं जानता वे गुलाम दिन
जिनमें पिता ने काता एक एक सूत
इस दिन को बुनने के लिए.....

देह से लेकर जीवन तक बुनने वाली मां
हर पल खड़ी होती है
बेटे के बराबर जाकर
देखती है उसके कन्‍धे से निकलता निकलता
सिर से ऊपर निकल गया बेटा.....

बेटा जानता है बड़े रास्‍ते, बड़ी गलियां
बड़ी दुकानें और बड़े लोगों को
छोटी छोटी बातें अक्‍सर छूट जाती हैं
कि जैसे घर से निकलते हुए मां को प्‍यार करना.....

बड़ा हो रहा है बेटा
छोटी छोटी शिकायतें क्‍या करना उससे
पिता समझाते हैं मां को
मां समझाती है पिता को.....

11 टिप्‍पणियां:

  1. मायामृग जी के बारे में क्या कहूँ उनके तो शब्द बोलते हैं । एक ऐसी शख्स जिनके शब्द पढ़कर यूँ लगता है कि जिंदगी का सार सिमट आया हो पन्नों पर ।

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  2. मायामृग जी को पढ़ना एक अनोखा अनुभव है...उनकी रचनाएं पढ़ कर स्तब्ध रह जाती हूँ......
    अद्भुत कल्पनाशीलता है उनमें !

    आभार दी.
    अनु

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  3. अत्यंत मर्मस्पर्शी एवं टीसती सच्चाई को बहुत ही प्रभावी तरीके से बयान किया है ! बहुत सुन्दर !

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  4. आपके नेह के लिए कृतज्ञ हूं मित्र...जिन मित्रों ने पसंद की उनके प्रति भी आभारी हूं..। रचनाएं आपके ब्‍लॉग पर देखकर खुश हूं....सादर

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  5. माया मृग जी को पढना .....अद्भुत अनुभव ..निशब्द हूँ

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  6. छोटी छोटी शिकायतें क्‍या करना उससे
    पिता समझाते हैं मां को
    मां समझाती है पिता को.....
    भावमय करते शब्‍द .... इस उत्‍कृष्‍ट प्रस्‍तुति के लिये आभार

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  7. शब्दों का धसना किसे कहते है ये माया जी को पढ़ क्र जाना ।

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  8. माया मृग जी की शब्दों की दुनियाँ में गुम हो जाती हूँ। कविताएँ खूब पढ़ी हैं बार-बार पढ़ी है। और जब भी पढ़ती हूँ उतनी ही शिद्द्त से .... शब्दों के जादूगर को सलाम। :)
    शाहनाज़ इमरानी

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