बुधवार, 13 जून 2012

मैं अच्छा कैसे बन जाऊं, मैं अच्छाई से डरता हूँ....



इसमें कुछ प्रश्न छिपे हैं जो कभी बचपन में उठा करते थे...फिर आज की एक सोच दिखानी चाही...प्रश्न अभी भी मन में है...इसलिए आपसे उत्तर की आशा रखता हूँ.....


मर्यादा जीवन भर पूजी, बदले मे वनवास मिला...
बड़ी सती थी जिसको कहते जग का तब उपहास मिला...
शिव का आधा अंग बनी, पर बदले मे थी आग मिली...
सत्यमूर्ति बन भटक रहा था, बुझी पुत्र की साँस मिली...

इंद्रिय सारी जीत चुका था, उसको पुत्र वियोग मिला...
विष प्याला उपहार मिला था कृष्ण भक्ति का जोग लिया...
दानवीर, आदर्श सखा, पर छल से था वो वधा गया...
ज्ञान मूर्ति इक संत का शव भी, था शैय्या पर पड़ा रहा...

धर्म हेतु उपदेश दिया पर पूरा वंश विनाश मिला...
हरि के थे जो मात पिता उनको क्यूँ कारावास मिला...
मात पिता का बड़ा भक्त था, बाणों का आघात हुआ...
ऐसे ही ना जाने कितने अच्छे जन का ह्रास हुआ....

थे ऐसे भी जो पाप कर्म की परिभाषा का अर्थ बने...
जो अच्छाई को धूल चटाते, धर्म अंत का गर्त बने...
जो अत्याचार मचाते थे, दूजो की पत्नी लाते थे...
वो ईश के हाथों मरते थे, फिर परम गति को पाते थे...

अब ये बतलाओ सत्य बोल मैं कौन सा सुख पा जाऊँगा...
मैं धर्म राह पे चला अगर,दुख कष्ट सदा ही पाऊँगा...
नाम अमरता नही चाहिए, चयन सुखों का करता हूँ...
मैं अच्छा कैसे बन जाऊं, मैं अच्छाई से डरता हूँ....


दिलीप

11 टिप्‍पणियां:

  1. kitni khubsurati se maniplant ke ird gird tana bana bun kar saja diya:) simply superb 1

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  2. is sammaan ke liye bahut bahut shukriya Rashmi ji...ye sawaal aaj har kisi ke man me umadta hi hai...

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  3. सही लिखा है दिलीप जी ने .. हमारी माइथोलोजी का ये कड़वा सच ही तो है !!!!

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  4. नाम अमरता नही चाहिए, चयन सुखों का करता हूँ...
    मैं अच्छा कैसे बन जाऊं, मैं अच्छाई से डरता हूँ....
    सार्थकता लिए सटीक अभिव्‍यक्ति ... इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए आभार

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  5. अच्छा बनकर कौन सुखी रहा...
    काव्य में बहुत अच्छी तरह पिरोई गई है यह बात...
    प्रस्तुति के लिए आभार !!

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  6. दिलीप की सभी रचनाये बेहद संवेदनशील भावनाओ से उपजी होती है नए बिम्ब ...घटनाओ को देखने का नज़रिया और उन्हें पंकित्यों का रूप देना ....sab behtreen

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  7. ऐसे ख़याल वाकई दिल में आते हैं अक्सर............
    और बुराई की ओर धकेलते भी हैं...................................................
    जो नहीं डिगा वो अच्छा.............

    बहुत प्यारी रचना....और दिलीप जी तो बेमिसाल रचनाकार है...बेहद पसंद करती हूँ उनकी कविताओं को.

    आभार

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  8. आपने जितनों का जिक्र किये ....जो अच्छे थे ..... जिनमें सतगुण था .... वे आज भी पूजनीय हैं .... सुख-दुःख तो नियति तैय करती है .... अपने हाथों में तो सिर्फ कर्म होता है ....
    रावन-विभीषण नाम तो कहीं सुनने को भी नहीं मिलता .... !!
    रचना अच्छी लगी .... !!

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  9. अगर इन प्रश्नों के उत्तर मिल जाते तो बहुत अनसुलझे सवाल सुलझ जाते ....

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  10. सही लिखा है ....बहुत प्यारी रचना..

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