भावनाओं के रास्ते अंतहीन होते हैं, कई भाव स्तम्भ की तरह मिलते हैं, जिनसे टेक लगाकर बैठना, उनसे अपनी भावनाओं के तार जोड़ना असीम सुकून देता है …
आज भावों का स्तम्भ हैं
© आशा चौधरी, संपादक- भारतकोश
सपने
एक डग रख कर
जब डग दूसरा
बढ़ाया था
जाने अनजाने
एक गठरी सी
बंध गयी थी
मेरे साथ
सपनों की
पता ही नहीं चला
कि कब
इस ज़िन्दगी के
सफ़र में चलते चलते
वज़न बढ़ता गया
सपनों का
जब तक समझ में आया
सपने बहुत भारी हो गये थे
और सफ़र मुश्किल...
धीरे धीरे सपनों का
वज़न कम करना
शुरू कर दिया
हर मोड़ पर उतार रखा
एक सपने को
और उम्र के इस पडाव पर
जब सपनों की सुध ली
तो देखा
वो सपने तो मेरे
थे ही नहीं…
अपने सपने तो सबसे पहले
उतार कर रख दिए थे
किसी मोड पर
और जो साथ थे
वो ना मेरे थे
और ना ही उनकी
थी ज़रूरत अब…
आँख खुली तो
सपने नहीं हैं
और जब सपने थे
तो एहसास ही नहीं था...
सपनों का...
मैं तो कृष्ण हूँ
तू मेरी राधा
मेरी मीरा
मेरी रूक्मणी
मेरी सत्यभामा
तू जामवंती, सत्या,
भद्रा, लक्ष्मणा,
मित्रविंदा और कालिंदी भी
और गोपियाँ भी
सारा प्यार तुम्हारा
समर्पण तुम्हारा
प्यार तुम्हारा
विश्वास तुम्हारा
सब तुम्हारा
पर मैं ?
मैं तो कृष्ण हूँ
राजनीति मेरी
चालें मेरी
व्याख्याएँ भी मेरी
मैं किसी एक का नहीं
इसीलिए
मेरा कोई सहचर नहीं
मेरे पास ज्ञान है
महाभारत है
गीता है
ब्रह्माण्ड है
मैं कभी मरता नहीं
इसलिए कभी जीता भी नहीं
मेरे पास हृदय नहीं
सिर्फ़ मस्तिष्क है
साम दाम दण्ड भेद
कुछ भी करना हो
अंत में जीतता तो
मैं ही हूँ
जीतता हूँ
योग से
शक्ति से
छ्ल से
माया से
छाया से।
उद्देश्य नहीं
मेरे लक्ष्य होते हैं
छ्ल, प्रपचं
सब रचता हूँ
और इस सब में
मैं भी हारता हूँ
मैं ही हारता हूँ...
Uttam rachayen jo chutti hai man ko ...
जवाब देंहटाएंआभार रश्मि जी...आपने अपने रचना संसार में मुझे भी भागीदार बनाया...
जवाब देंहटाएंरश्मि जी आप जो मोती चुन कर ला रही है वह अनमोल हैं ।
जवाब देंहटाएंरश्मि जी आप जो मोती चुन कर ला रही है वह अनमोल हैं ।
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