शनिवार, 1 सितंबर 2012

स्त्री को इस तरह भागना क्यों पड़ता है ?



चंद शब्दों में एक सवाल - क्या सबको गुनहगार नहीं बनाता
रश्मि प्रभा

स्त्री को इस तरह भागना क्यों पड़ता है ?(प्रज्ञा पांडेय ) http://kuhaasemenkhotinsubahen.blogspot.in/

सन १९८३ की बात है .उसकी उम्र थी २० या हद से हद २१ वर्ष .भरी हुई देहयष्टि और भरपूर आकर्षण की कही कोई कमी नहीं.! उसका नाम बबिता था! दो साल विवाह को हुए थे ! तब मायके में रह रही थी! वह किसी खौफनाक रात के सन्नाटे में अपनी ससुराल से भाग आई थी .यह सब कुछ उसने खुद ही एक दिन बताया था .यूँ तो गौर करने पर उसकी पानीदार आँखें ऐसा ही कुछ बयां भी करती थीं .कई बार उसको उसकी सास के जान से मारने की कोशिशों ने उसे इस कदर खौफ में डाल दिया था कि वह सारी नसीहतें सारी ज़जीरें सारी मर्यादाएं औए सारे संस्कार तहस- नहस कर सिर्फ अपनी जान लेकर भागी थी .एक ऐसे घर से भागना जहाँ के दरवाजों गलियारों से उससे कोई परिचय नहीं था और जहाँ वह पहली बार गयी थी दुस्साहस का काम था ! यदि उसके प्राण उसकी प्रथम प्राथमिकता न होते तो एक नववधू के लिए रात के सन्नाटे में घर के बाहरी दरवाजों की चाभी भाग जाने के लिए सहेजना कोई आसान काम तो नहीं था...उसको आज भी मेरा मन सलाम करता है ..मैं बार बार सोचती हूँ कि स्त्री और पुरुष की इस दुनिया में स्त्री को इस तरह भागना क्यों पड़ता है ?

4 टिप्‍पणियां:

  1. मैं बार बार सोचती हूँ कि स्त्री और पुरुष की इस दुनिया में स्त्री को इस तरह भागना क्यों पड़ता है ?

    क्यूँ कि स्त्री ही पराये के घर जाती है !

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  2. वे कहते हैं
    गाय वहां देनी चाहिए
    जहाँ घास हरी हो

    हरी घास की आड़ में
    घात लगाए भेडिये
    उन्हें नजर क्यों नहीं आते

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  3. स्त्री को अभी भी लोग कमज़ोर समझते हैं ...

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  4. सवाल सही है पर स्त्री तो भाग सकती है.....पुरुष कहाँ जायेगा भाग कर.....सवाल दोनों तरफ के हैं ।

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