सोमवार, 24 सितंबर 2012

यादों की संदूकची





 उपासना सियाग 

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यादों की संदूकची

आज फुर्सत में जब यादों की 
संदूकची खोली तो कितने ही 
सुहाने पलों ने घेर लिया ........
दो छोटे -छोटे ,नन्हे -नन्हे हाथ 
पीछे से आकर गले में आकर 
झूल गए ,............
कुछ खिलौने ,कुछ कागज़ की
कटी हुई, कारों की डायरी ,कुछ
पुराने कन्चे,टूटा हुआ बैट और
टांग टूटा हुआ गुड्डा भी नज़र
आया ......................और
ये चमकीले से हीरे जैसे क्या है भला!
हाथ में लेकर देखा तो हंसी आगई ,
अरे, ये तो उन गिलासों के टुकड़े है
जिनको जोर से पटक कर दिवाली
के पटाखे बना दिए थे ,

और ख़ुशी की किलकारी भी गूंजी के
 पटाखा बजा .........
पटाखे बजने की ख़ुशी आँखों के साथ -साथ
चेहरे पर भी नज़र आयी थी .......
और ये मेडल  जो दौड़ में मिला था ,
गले में किसी कीमती हार से कम नज़र
नहीं आया मुझे ...... 
और साईकल पर या छोटी सी कुर्सी पर
बिठाने की जिद करती नज़र आई, 
वो शरारती  आँखे ...........
और ये क्या है संदूकची में...!
 जो एक तरफ पड़ी है ...
गुलाबी ,चलकीली किनारी वाली
छोटी सी एक गठरी ...........
हाथों में लिया तो याद आया 
अरे ;ये तो हसरतों की गठरी है ,
जरा सा खोल कर देखा तो 
एक नन्ही सी फ्राक ,छोटी सी नन्हे -नन्हे 
घुंघरुओं वाली पायल नज़र आयी,
उनको धीमे से छू कर फिर से
संदूकची में रख दिया ..........
और धीमे से प्यार से यादों की संदुकची
को बंद कर दिया ..........!


8 टिप्‍पणियां:

  1. अरे ;ये तो हसरतों की गठरी है ,
    जरा सा खोल कर देखा तो
    एक नन्ही सी फ्राक ,छोटी सी नन्हे -नन्हे
    घुंघरुओं वाली पायल नज़र आयी,
    उनको धीमे से छू कर फिर से
    संदूकची में रख दिया ..........
    अनगिनत यादें और उनके खूबसूरत रंग समेटे यह पोस्‍ट ... अनुपम

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  2. रश्मि जी मैं बहुत ही अभिभूत हूँ......आभार

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  3. bahut sunder yaaden hae...aapki yadon nae hame bhi bahut kuch yaad dila diya

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  4. उपासना बहुत संवेदनशील लिखती हैं ...

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