माँ
जब तुम नहीं रहोगी
तो कौन बंद कराएगा टी.वी.
ताकि बहराते कानों को सुन सके
ट्रेन की सीटी की आवाज़.
कौन झांक-झांक कर देखेगा
खिड़की के परदे की ओट से
कि स्टेशन से आकर कोई रिक्शा
घर के बाहर रुका तो नहीं.
कौन कहेगा कि आज खाने में
भरवां भिन्डी ज़रूर बनाना,
कौन कहेगा कि चाय में
चीनी बहुत कम डालना.
कौन बतियाएगा घंटों तक,
पूछेगा छोटी से छोटी खबर,
साझा करेगा हर गुज़रा पल
सुख का या दुःख का.
जब मैं हँसूंगा तो कौन कहेगा,
अब बस भी करो,
मेरी आँखें कमज़ोर ही सही,
पर क्या मैं नहीं जानती
कि तुम दरअसल हँस नहीं रहे
हँसने का नाटक कर रहे हो.
मेरी आँखें कमज़ोर ही सही,
जवाब देंहटाएंपर क्या मैं नहीं जानती
कि तुम दरअसल हँस नहीं रहे
हँसने का नाटक कर रहे हो.
माँ की अनुभवी आँखों से बच्चों की कोई भी बात छुपती नहीं.
सहजता से माँ के संग रहने का अहसास कराया है बधाई
जवाब देंहटाएंभावुक रचना....माँ की गाथा लिखते-लिखते कभी कलम नही थकते |
जवाब देंहटाएंमां ...से कुछ भी छिपता नहीं फिर वो हँसी हो या उदासी
जवाब देंहटाएं... इस उत्कृष्ट अभिव्यक्ति को पढ़वाने का आभार
माँ पर भावुक रचना
जवाब देंहटाएंवाह सुन्दर मैं तो सच में भावुक हो गया क्या बात है
जवाब देंहटाएंभाव परिपूर्ण .....भावमयी रचना .....माँ ...कितना भी कह लो ....फिर भी कहाँ कह पाते हैं हम ......वो 'माँ ' जो ठहरी .....असीम अनंत .....
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