सुशील कुमार
योग-मुद्रा
जी उठा हूँ फिर से उर्जस्वित होकर
साँस की प्राण-वायु अपनी रग-रग में भरकर
स्वयं का संधान कर स्वयं में अंतर्लीन होकर
यह प्रयाण जरूरी था मेरे लिये –
न कोई रंग न कोई हब-गब
जीवन सादा पर सक्रिय है यहाँ
दैनिक क्रियाएँ सरल हैं
स्वर जैसे थम गया हो
हृदय-वीणा के तार जैसे यकायक
तनावमुक्त हो झनझनाकर स्थिर हुए हों
पर सकल आलाप अब शांत है
नीरवता में इस दिनांत की साँझ-वेला में
कोई थिर स्वर उतर रहा है काया के नि:शब्द प्रेम-कुटीर में
अंतर्तम विकसित हो रहा है चित्त स्पंदित हो रहा है
धवल उज्ज्वल आलोक-सा छा रहा है घट के अंदर
कोई सिरज रहा है मुझे फिर से
सचमुच मैं जाग रहा हूँ धीरे-धीरे नवजीवन के विहान में
वहाँ जिनसे मुझे प्रेम मिला था
वह मुझे अपने पास बाँधकर रखना चाहते थे
पर अब अनुभव हो रहा है मुझे -
जड़ता से बचने के लिए, निजता को बचाने के लिये
उनकी दुनिया से अपनी दुनिया मेँ वापस लौटने का मेरा निर्णय सही था |
badhiya kavita
जवाब देंहटाएंवहाँ जिनसे मुझे प्रेम मिला था
जवाब देंहटाएंवह मुझे अपने पास बाँधकर रखना चाहते थे
पर अब अनुभव हो रहा है मुझे -
जड़ता से बचने के लिए, निजता को बचाने के लिये
उनकी दुनिया से अपनी दुनिया मेँ वापस लौटने का मेरा निर्णय सही था |
बहुत ही गहन और सटीक है ये बात ......अति सुन्दर ।
बहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव
जवाब देंहटाएंवहाँ जिनसे मुझे प्रेम मिला था
जवाब देंहटाएंवह मुझे अपने पास बाँधकर रखना चाहते थे
पर अब अनुभव हो रहा है मुझे -
जड़ता से बचने के लिए, निजता को बचाने के लिये
उनकी दुनिया से अपनी दुनिया मेँ वापस लौटने का मेरा निर्णय सही था |
बहुत खूब .... !!
गहन भाव लिए सशक्त लेखन ... आभार इस प्रस्तुति के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत ही गहन,सुन्दर और सटीक....
जवाब देंहटाएंवहाँ जिनसे मुझे प्रेम मिला था
जवाब देंहटाएंवह मुझे अपने पास बाँधकर रखना चाहते थे
पर अब अनुभव हो रहा है मुझे -
जड़ता से बचने के लिए, निजता को बचाने के लिये
उनकी दुनिया से अपनी दुनिया मेँ वापस लौटने का मेरा निर्णय सही था.
ati sundar
उनकी दुनिया और अपनी दुनिया में जब तक भेद रहेगा तब तक वह खींचती ही रहेगी...
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