अर्धनारीश्वर आधे पुरुष ,आधी स्त्री का ही द्योतक नहीं . विवाह यज्ञ के बाद यदि यही मान्य होता हो तो सती को शक्ति रूप लेने में कई जन्म नहीं लेने पड़ते .
सती का भस्म होना , पार्वती से पार्वती का मत्स्य कन्या होना ......... इसका उदाहरण है . पुरुष कठोरता का प्रतीक है, स्त्री कोमलता का - पुरुष अपनी कर्मठता से
अन्न धन लाता है, स्त्री अन्नपूर्णा होती है यानि अन्न को खाने योग्य बनाकर एक पूर्णता का संचार करती है , धन के सही इस्तेमाल से घर की रूपरेखा बनाती है
और बचत करती है . समय की माँग हो तो स्त्री को पुरुष सी कठोरता अपनानी होती है , पुरुष को कोमलता - अर्धनारीश्वर सही अर्थ तभी पाता है . शिव ने तंत्र
शिक्षा से पार्वती को शक्ति का स्रोत दिया , जिसे पाने के लिए आम लिप्साओं को मुक्त करना था .
यह अर्थ यदि पूर्ण न हो तो अर्धनारीश्वर की भूमिका नहीं होती , न उस विवाह का कोई अर्थ होता है . मनुष्य को संबंध विच्छेद की स्थिति से गुजरना होता है , ईश्वर
ने कई जन्म लिए . यदि ईश्वर ने जन्मों का सहारा न लिया होता तो आदिशक्ति का जन्म नहीं होता , न अर्धनारीश्वर का तेज विनाश से बचाने में सहायक होता . मनुष्य
जब जबरन इसे ढोता है तो दोषारोपण , हिंसा के मार्ग बनते हैं . एक समाज को कारण बना कई जीवन बर्बाद हो जाते हैं और सारे व्रत त्योहारों के बाद भी उस संबंध के
कोई मायने नहीं होते .
विवाहित होते एक पुरुष में पिता एक स्त्री में माँ रूप का प्रस्फुटन होता है , पिता को जगतपिता होना चाहिए सोच से , माँ को जगतमाता - फिर सारे दृष्टिकोण सहज, स्थिर
होते हैं . आसुरी प्रवृति से जूझने के लिए संबंधों की इसी गहराई को समझना होगा कि पुरुष में शिव भाव हो स्त्री में शक्ति का , क्योंकि शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति
के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।
रश्मि प्रभा
' अर्धनारीश्वर '
आदि अनादि कालों से
पौराणिक अपौराणिक गाथाओं से
'अर्धनारीश्वर ' संज्ञा की होती है पुष्टि
क्या है अर्थ इस शब्द का ?
निर्मित किया ब्रह्म ने
दो चेतन पिण्डों को
दिया एक नाम नारी का
और दूजा पुरुष का !
नारी कोमल सुकोमलांगी
पुरुष बलिष्ठ कठोर !
था पुरुष निर्मम भावशून्य
नष्ट कर देता किसी जड़ या चेतन को
बिना किसी अवसाद के !
तथापि थी नारी
भावप्रधान ममतामयी मूरत
स्रष्टि के कण - कण को
अपने कोमल स्पर्श से
सिक्त करना ही थी उसकी नियति !
देखा ब्रहम ने
दो परस्पर विरोधी स्वरूप
सोचा -
नारी दे रही जीवन
और कर रहा पुरुष नष्ट
उसकी रचित नव निर्मित स्रष्टि को !
संतुलित करने के लिए
करें क्या उपाय -
उसी क्षण अचानक
बोला अचेतन मन ब्रहम का
करो ऐसी रचना
जो सम्मिश्रण हो नारी पुरुष गुण का !
उपाय तो श्रेष्ठ था
पर थी समस्या एक
नारी पुरुष थे अलग - अलग पिण्ड
फिर उनका एक रूपांतरण
हो कैसे संभव
युक्ति सूझी उन्हें एक
बांध दिया उन्हें
एक दाम्पत्य बंधन में !
हल निकल आया
ब्रहम की समस्या का !
नारी के कोमल भाव
व पौरुषत्व पुरुष का
पोषक होंगें स्रष्टि के !
यही संकल्पना थी
' अर्धनारीश्वर ' की !
आधे भाव नारी के
आधी शक्ति पुरुष की
मिलाकर बनी एक
अलौकिक रचना
होकर दोनों में तादात्म्य स्थापित
अर्थ ज्ञात हुआ
सही विवाह बंधन का ,
भिन्न - भिन्न दो रूप
हुए जब एक
मिल गया नव जीवन
स्रष्टि को
एक अटल सत्य के साथ .....!!!
अर्धनारीश्वर का बेहद खूबसूरत चित्रण्।
जवाब देंहटाएंसशक्त लेखन ... बहुत ही अच्छी प्रस्तुति .. आभार इसे पढ़वाने के लिए
जवाब देंहटाएंखूबसूरत
जवाब देंहटाएंpadh kar bauhat accha laga :)
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति.....
जवाब देंहटाएंबधाई प्रियंका जी को..
आभार रश्मि दी.
अनु
सशक्त, खूबसूरत अभिव्यक्ति..आभार
जवाब देंहटाएंsahakt lekhan aur vicharniy bhi. aabhar.
जवाब देंहटाएंअर्द्धनारीश्वर , गहन चिंतन -सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंनारी के कोमल भाव
जवाब देंहटाएंव पौरुषत्व पुरुष का
पोषक होंगें स्रष्टि के !
यही संकल्पना थी
अर्धनारीश्वर की !
उत्कृष्ट कविता।
नई भावभूमि पर सुंदर सृजन।
dhanybaad mausi ji ... meri rachna ko is manch par lane ke liye ....aabhar
जवाब देंहटाएंdhanybaad mausi ji ... meri rachna ko is khoobsurat manch par lane ke liye ... aabhar
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