गुरुवार, 16 अगस्त 2012

वह







जब कोई ज्वाला बुझ जाती है
तो समाज ....
अपनी नींद हराम नहीं करता
पर जब कोई ज्वाला धधकने की जगह बढाती है
तो समाज...
कहता है आजिजी से
औरत जात पर कलंक है !!! :(

रश्मि प्रभा


परे ढ्केल अपने दुधमुंहे बच्चे को,
वह, मुंहअंधेरे उठ गई ।
अंगडाई के लिये उठ्ते हाथ ,
पीडा से जहां के तहां रुक गये ।
फ़िर, उसने उचट्ती निगाह डाली
अपने सोये पति पर
और घूम गया , कल रात का वह दॄश्य
जब पी कर उसे पीटा गया था ।
वह पिट्ती रही बेहोश होने तक।
जब होश आया, वह सहला रहा था ,
उसका बदन ।
उसकी निगहों में थी दीनता ,
याचक की भांति गिडगिडा रहा था ।
वह जड बनी साथ देती रही, उसका ,
जड्ता से भी तृप्त हो सो गया वह,
और
सुलगती रही सूखी लकडी की तरह वह ।
बरबस उठ गई निगाहें ,
अपनी झोंपडी की तरफ़
कुल चार हाथ लम्बी , दो हाथ चौडी जगह।
काफ़ी है उसके चार बच्चों ,पति
और स्वयं के लिये ।
वह तो अच्छा है , चार पहले ही चल बसे,
वरना.............?
सोच कर उसकी आह ,निकल जाती है ।
बच्चे के करुण क्रन्दन ने रोक दिया विचारों का तांता,
शायद भूखा है ।
उसके पास अब था ही क्या ,
जो उसकी भूख मिटाता ।
छातियों का दूध भी , आखिरी बूंद तक निचुड चुका था ।
उसे एक घूंट पानी पिला ,
वह हड्बडाती उठी,
कब तक बैठी रहेगी ?
जल्दी चले वरना ,
सारे कागज पहले ही बीन लिये जाएगें ,
और वह कूडे को कुरेदती रह जाएगी ।
फ़टी चादर लपेट ,
पैंबद लगा बोरा उठा ,
नंगे पांव ,
ठिठुरती सर्दी में ,
सड्क पर आ गई वह।
अभी दिन भी नहीं निकला था , पूरी तरह ।
इधर- उधर से कुत्तों ने मुंह उठाया,
फ़िर से दुबक गए,
शायद पह्चानने लगे थे ,उसकी पद्चाप ।
वह चलती गई, चलती गई........गई,
लडखडाती ....
कांपती ....
कुलबुलाती....
ठिठुरती......
अब, वह सब कुछ भूल चुकी थी ,
मंजिल थी ............कूडे का ढेर
एक मात्र ध्येय.......
आंतिम ल्क्ष्य....
सारा संसार वृक्ष बन गया था उसके लिये,
और कूडे का ढेर चिडिया की आंख ,
जहां उसे , अपनी पडॊसन से पहले
पंहुचना था...........


पूनम जैन कासलीवाल

13 टिप्‍पणियां:

  1. निःशब्द करती रचना.....
    बेहतरीन लिखा पूनम जी ने...

    आभार दी.
    अनु

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  2. bahut hi sundar hai post....thanks for sharing.

    जवाब देंहटाएं
  3. दी ,आज ये क्या लिख दिया ... एकदम रूह काँप गयी ...... सादर !

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  4. अब, वह सब कुछ भूल चुकी थी ,
    मंजिल थी ............कूडे का ढेर
    एक मात्र ध्येय.......
    आंतिम ल्क्ष्य....
    एक सच यह भी है ... सार्थकता लिए सटीक अभिव्‍यक्ति ... आभार

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  5. लडखडाती ....
    कांपती ....
    कुलबुलाती....
    ठिठुरती......
    अब, वह सब कुछ भूल चुकी थी ,
    नि:शब्द करती रचना .... !!

    जवाब देंहटाएं
  6. अह्हह्ह .....लेकिन फिर भी ..फिर भी .....वो नही कर पाती विद्रोह ....../ रात के नशे उतरने के बाद ...जब पकड़ता है हाथ ....बोलता है दो मीठे बोल ....या मांगता है माफ़ी (नशे की तरह आदत जो है उसकी ).../ भूल जाती है मार ...रात के साथ ...बात देती है बिसार ......क्यूँ ..????माँ जो है ....उसे है अपने दूध मुहें बच्चे का ख्याल ......सींचा है खून के साथ ....नही कोई किसी बहके ..भूखे पल का हिसाब ....अनचाहा ही क्यूँ ना हो ....फिर भी ....फिर भी .....अह्ह्ह्ह्ह ....नही मानती ना ...औरत जो है .......!!!!!!!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. अह्हह्ह .....लेकिन फिर भी ..फिर भी .....वो नही कर पाती विद्रोह ....../ रात के नशे उतरने के बाद ...जब पकड़ता है हाथ ....बोलता है दो मीठे बोल ....या मांगता है माफ़ी (नशे की तरह आदत जो है उसकी ).../ भूल जाती है मार ...रात के साथ ...बात देती है बिसार ......क्यूँ ..????माँ जो है ....उसे है अपने दूध मुहें बच्चे का ख्याल ......सींचा है खून के साथ ....नही कोई किसी बहके ..भूखे पल का हिसाब ....अनचाहा ही क्यूँ ना हो ....फिर भी ....फिर भी .....अह्ह्ह्ह्ह ....नही मानती ना ...औरत जो है .......!!!!!!!!!

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  8. garib ,dalit,pidit ,bebus nari ka vastavik chitra ubhar kar aaya hai.badhai.

    aap "mere vichar meri anubhuti" par bhi ek nazar dalne ki kasht kare.Aapka sujhao & samarthan ki yash hai.
    Kalipad "Prasad"

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