माधवी शर्मा गुलेरी
अक्सर कहा जाता है कि हम सब दुनिया की भीड़ में अकेले हैं, हम अकेले आए थे और अकेले ही जाएंगे। वैसे, इस अकेले आने-जाने के सफर के बीच हम अकेले नहीं रह पाते। लगभग हर इंसान देर-सवेर किसी संबंध में बंधता ही है। मनुष्य का सबसे पहला संबंध अपनी मां से होता है, फिर पिता, भाई, बहन, पत्नी, बच्चे और सगे-संबंधी उसके जीवन से जुड़ते हैं।
बाइबल के मुताबिक, ईश्वर ने सात दिन में कायनात पूरी रच दी थी। उसने जन्नत बनाई, धरती का सृजन किया, जीवजंतु व पेड़-पौधे तैयार किए, अलग-अलग मौसम रचे और इन सबकी हिफाजत के लिए मनुष्य का सृजन किया। खुदा ने जो पहला इंसान बनाया, उसे ‘आदम’ नाम दिया। फिर उसने एक खूबसूरत बगीचा तैयार किया, जिसका नाम ‘ईडन’ रखा। बगीचे में बेहतरीन पेड़ लगाए और आदम को इसमें रहने के लिए छोड़ दिया, लेकिन साथ ही उसे हिदायत दी गई कि वह एक पेड़ के सिवा बगीचे के किसी भी पेड़ से मनचाहा फल खा सकता है। आदम अकेला न रहे, इसलिए खुदा ने एक और इंसान रचा। यह एक औरत थी, जिसे हव्वा (ईव) नाम दिया गया।
आदम और हव्वा के अलावा, खुदा ने एक और जीव की रचना की, जो सांप था। सांप ने हव्वा को वर्जित पेड़ से फल खाने के लिए फुसलाया। इस पर हव्वा ने आदम से भी वो फल खाने के लिए कहा। फल खाकर दोनों को अच्छेबुरे का भान हुआ, लेकिन खुदा ने उन्हें इसकी सजा दी और उन्हें बगीचे से बाहर निकाल दिया। बाइबल के इसी हिस्से से आदम और हव्वा के सांसारिक जीवन की शुरुआत मानी जाती है।
हिंदू मान्यता के अनुसार, धरती पर पहला आदमी ‘मनु’ हुआ। मत्स्य पुराण में जिक्र है कि पहले ब्रrा ने दैवीय शक्ति से शतरूपा (सरस्वती) की रचना की, फिर शतरूपा से मनु का जन्म हुआ। मनु ने कठोर तपस्या के बाद अनंती को पत्नी रूप में प्राप्त किया। शेष मानव जाति मनु और अनंती से उत्पन्न हुई मानी गई है। भगवत पुराण में मनु और अनंती की संतानों का वृहद उल्लेख है। हालांकि ऋग्वेद में मनुष्य की कहानी कुछ और है। इसमें कहा गया है कि प्रजापति की पांच संतानों से मानव जाति आगे बढ़ी।
क्या हम सचमुच अलग-अलग ग्रहों से हैं?
अलग-अलग धर्मो के अलग-अलग मत हैं, मान्यताएं हैं, लेकिन उनमें एक सायता है कि पहले पुरुष आया, फिर स्त्री। दोनों में संबंध बना और संसार आगे बढ़ा। जब सब धर्मो के मत स्थापित हो चुके थे, तब 1990 में अमेरिकी लेखक जॉन ग्रे स्त्री-पुरुष से संबंधित एक नया मत लेकर आए। इस मत के अनुसार, पुरुष मंगल ग्रह से हैं और महिलाएं शुक्रग्रह से। उन्होंने इस विषय पर एक किताब लिख डाली, जो अपने समय की सर्वाधिक बिकने वाली किताब साबित हुई। इस पुस्तक की अब तक 70 लाख से अधिक प्रतियां बिक चुकी हैं। इसी किताब के मुताबिक, एक किस्सा यह भी है कि एक दिन मंगलवासियों ने टेलीस्कोप से शुक्रग्रह की तरफ झांका और वहां जो नजारा उन्हें दिखा, वह अद्भुत था। मंगलवासी शुक्रग्रह पर रहने वाली स्त्रियों को देखते ही उनके प्रेम में पड़ गए। आव देखा न ताव, मंगलवासियों ने एक स्पेसशिप ईजाद किया और शुक्रग्रह पर पहुंच गए। शुक्रग्रह की स्त्रियों ने भी उनका दिल खोलकर स्वागत किया। स्त्रियां पहले से जानती थीं कि एक दिन ऐसा आएगा, जब उनके हृदय प्रेम की छुअन महसूस करेंगे। दोनों वर्गो के बीच प्रेम पनपा और वे साथ-साथ रहने लगे। वे एक-दूसरे की आदतें समझने की कोशिश करने लगे। इस कोशिश में सालों बीत गए, लेकिन इस दौरान वे प्रेम और सौहार्द से रहे। एक दिन उन्होंने पृथ्वी पर आने का फैसला किया। शुरुआत में सब ठीक था, लेकिन धीरे-धीरे उन पर धरती का असर कुछ इस तरह होने लगा कि उनकी याददाश्त जाती रही। वे भूल गए कि वे दो अलग-अलग ग्रहों से आए प्राणी हैं, इसलिए उनकी आदतें और जरूरतें भी एक-दूसरे से जुदा होंगी। एक सुबह वे उठे तो पाया कि एक-दूसरे के बीच के अंतर को वे बिल्कुल भूल चुके हैं। यहीं से उनमें द्वंद्व की शुरुआत हुई, जो आज तक जारी है।
जॉन ग्रे ने पुरातन काल से चली आ रही मान्यताओं और पौराणिक धारणाओं से बिल्कुल जुदा एक बात कह दी। हालांकि ‘पुरुषों के मंगल ग्रह से और स्त्रियों के शुक्र ग्रह से’ होने की उनकी बात को एक खोज या सत्य के अन्वेषण के रूप में नहीं लिया गया है। ग्रे की बात को एक लेखक के औरत-मर्द को लेकर विश्लेषण या एक विचार के रूप में लिया गया है, पर उनका इस विचार को पेश करने का ढंग इतना मजेदार था कि लोग इसके दीवाने हुए बिना नहीं रह पाए। ग्रे ने अपनी पुस्तक में एक जगह लिखा है, ‘पुरुषों की शिकायत है कि जब वे किसी ऐसी समस्या का हल रखने की कोशिश करते हैं, जिसके बारे में महिलाएं बात करना चाहती हैं तो होता यह है कि महिलाएं उस समस्या के बारे में सिर्फ बात करना चाहती हैं, हल नहीं ढूंढ़ना चाहतीं।’
ग्रे कहते हैं कि स्त्री और पुरुष के बीच की समस्याओं का कारण उनका स्त्री और पुरुष होना है। लिंगभेद ही उनकी समस्याओं की जड़ है। अपनी बात को समझाने के लिए वे कहते हैं कि पुरुष मंगल से हैं और स्त्रियां शुक्र से.. और ये दोनों ही अपने ग्रहों के समाज और रीति-रिवाजों से बंधे हुए हैं। ये दोनों प्रजातियां इन्हीं ग्रहों के प्रताप की वजह से एक खास तरह का आचरण करती हैं। यही वजह है कि स्त्री-पुरुष का समस्याओं, तनावपूर्ण स्थितियों, यहां तक कि प्यार से निपटने का भी एक अलग अंदाज, एक अलग नजरिया है।
ग्रे ने स्त्री-पुरुष की बात की, उनके परस्पर संबंधों की बात की। ग्रे की तरह दुनिया के ज्यादातर बुद्धिजीवी, लेखक, विचारक और दार्शनिक अपने-अपने अंदाज में संबंधों के विषय में अपनी-अपनी बात कहते आए हैं, विचार और तथ्य पेश करते आए हैं, फिर भी स्त्री-पुरुष संबंधों का तानाबाना इतना जटिल और हर रोज नए रंग व आयाम दिखाने वाला है कि कोई एक धारणा या एक मत केवल कुछ समय तक ही वजूद और आकर्षण बनाए रख पाता है। समय के साथ हर विचार पर एक नया विचार और हर धारणा पर एक नई धारणा अपना प्रभाव दिखाने लगती है।
अनुभवों ने संबंधों को दी बेहतरीन अभिव्यक्ति
स्त्री-पुरुष के संबंधों को लेकर विभिन्न लेखकों, कवियों, बुद्धिजीवियों ने बहुत कुछ कहा है और इनमें से ज्यादातर के विचार उनके अपने अनुभवों और अपनी ज़िन्दगी की मथनी में मथकर बाहर आए हैं। इनमें से कवियों को तो उनके संबंधों ने ही कवि और लेखक बनाया है। अब चाहे वह भारत के मोहन राकेश हों या तुर्की के हिकमत।
मोहन राकेश अपने जीवन में स्त्रियों के साथ अपने संबंधों के दरिया में डूबते-तैरते रहे। उनकी यही छटपटाहट, यही कोशिश उनकी लेखनी में भी साफ नÊार आती है। ‘आषाढ़ का एक दिन’, ‘आधे-अधूरे’, ‘लहरों के राजहंस’ जैसे नाटकों और उनकी लिखी सैकड़ों उम्दा कहानियों में स्त्री-पुरुष के संबंधों का एक अनूठा जाल बुना गया है। ‘आषाढ़ का एक दिन’ में नायिका मल्लिका, नायक कालिदास से कहती है कि ‘मेरी आंखें इसलिए गीली हैं कि तुम मेरी बात नहीं समझ रहे। तुम यहां से जाकर भी मुझसे दूर हो सकते हो..? यहां ग्राम प्रांतर में रहकर तुम्हारी प्रतिभा को विकसित होने का अवसर कहां मिलेगा? यहां लोग तुम्हें समझ नहीं पाते। वे सामान्य की कसौटी पर तुम्हारी परीक्षा करना चाहते हैं। विश्वास करते हो न कि मैं तुम्हें जानती हूं? जानती हूं कि कोई भी रेखा तुम्हें घेर ले तो तुम घिर जाओगे। मैं तुम्हें घेरना नहीं चाहती, इसलिए कहती हूं, जाओ।’
जहां एक ओर मोहन राकेश अपने संबंधों को मूर्त-रूप में मौजूद होकर जीते रहे, वहीं हिकमत ने अपनी ज़िन्दगी का ज्यादातर हिस्सा जेल में बिताया। जेल में रहकर वे अपने जीवन में घटित स्थितियों, घटनाओं और संबंधों पर कविताएं रचते रहे। हिकमत की मनोदशा के एक पहलू की झलक तब मिलती है, जब वे कैदखाने से अपनी पत्नी को लिखते हैं —
सबसे खूबसूरत महासागर वह है
जिसे हम अब तक देख पाए नहीं
सबसे खूबसूरत बच्चा वह है
जो अब तक बड़ा हुआ नहीं
सबसे खूबसूरत दिन हमारे वो हैं
जो अब तक मयस्सर हमें हुए नहीं
और जो सबसे खूबसूरत बातें मुझे तुमसे करनी हैं
अब तक मेरे होंठों पर आ पाई नहीं।
इन पंक्तियों को पढ़कर ही भीतर उस सजायाता कैदी का दर्द सामने आता है, जिसका कसूर सिर्फ इतना था कि वह कविताएं लिखता था। ऐसी कविताएं, जो व्यवस्था और सरकार को पसंद नहीं आती थीं, लेकिन को जेल की उस अंधेरी, सीलन भरी ठंडी कोठरी में उनके संबंधों की गर्मी ने ताकत दी। उनके भीतर ऊर्जा और एहसासों का लावा बहाए रखा, जो उन्हें अपनी सदी का महान कवि और एक महत्वपूर्ण शिसयत बना गया।
प्रेम में विवाह और विवाह में प्रेम
मुक्त प्रेम, विवाह की कार्बन कॉपी है। अंतर यही है कि इसमें निभ न पाने की स्थिति में तलाक की आवश्यकता नहीं है। फ्रेंच लेखिका सिमोन और बीसवीं सदी के महान विचारक व लेखक ज्यां पाल सात्र्र का रिश्ता पूरी तरह से कुछ अलग तरह का था। वे कभी साथ नहीं रहे। पचास वर्षो तक उनका अटूट संबंध उनके लिए बहुधा सामान्य घरेलू जीवन जैसा ही था। वे लंबे समय तक होटलों में रहे, जहां उनके कमरे अलग अलग थे। कभीकभी तो वे अलग मंजिलों पर भी रहे। बाद में सिमोन अपने स्टूडियो में रहीं और सात्र्र अपना मकान खरीदने से पहले अपनी मां के साथ रहे। किसी स्त्रीपुरुष के बीच यह एक ऐसा संबंध था, जिसकी पारस्परिक समझ केवल मृत्यु के द्वारा ही टूटी। इन दोनों का प्रेम मुक्त ही नहीं था, बल्कि आनंदहीन, नीरस चीजों से उन्हें असंबद्ध और मुक्त रखता था। यही वजह है कि सात्र्र के साथ अपने संबंध को सिमोन ज़िन्दगी का सबसे बड़ा हासिल मानती थीं।
‘एक सफल विवाह से प्यारा दोस्ताना और अच्छा रिश्ता और कोई नहीं हो सकता..’ मार्टिन लूथर की यह बात सोलह आने सही है। किंतु आधुनिक जीवन में सफल विवाह के कुछ सबसे बड़े शत्रु उभरकर सामने आए हैं और उनमें से प्रमुख है — ईगो, दंभ और घमंड। इन तीनों शदों के अर्थो में कुछ भेद जरूर है, पर इनकी आत्मा एक है। इनका वार एक सा है, प्रहार एक सा है और इनका असर भी एक सा है। जब तक ये तीनों ज़िन्दगी हैं, सफल विवाह दम तोड़ता नÊार आता है। हम अपनी ईगो के चलते विवाह जैसे खूबसूरत रिश्ते की बलि चढ़ाने में भी नहीं हिचकिचाते। इसके विपरीत अगर ईगो को ही बलि की वेदी पर चढ़ा दिया जाए तो विवाह जैसा संबंध हमारे जीवन में नई रोशनी भर सकता है। ईगो को टक्कर देने के लिए हमारे पास कुछ हथियार हैं और वे हथियार हैं, प्यार और त्याग.. क्योंकि अगर प्यार है तो त्याग है, और त्याग है तो रिश्ता टूट ही नहीं सकता। बल्कि वह अच्छे से फले फूलेगा और मिठासभरा होगा। जहां दंभ है, वहां प्यार नहीं रह सकता, वहां हम एकदूसरे के साथ नहीं, एक दूसरे से मिलकर नहीं, बल्कि एक दूसरे से अलग होकर जी रहे होते हैं।
जुदा होकर भी..
वूडी एलन ने स्त्री पुरुष के संबंध की तुलना शार्क से की है। वे कहते हैं कि शार्क की ही तरह किसी रिश्ते को भी आगे बढ़ते रहना चाहिए, नहीं तो उसके दम तोड़ने की गुंजाइश है। उनके इस कथन में दम है। यह विचार आजकल के जन मानस के लिए उपयोगी साबित हो सकता है, क्योंकि अब अरेंज्ड मैरिज की जगह प्रेम विवाहों की बढ़ रही है। पर इस सबके बीच कुछ प्रेम ऐसे होते हैं, जो विवाह तक नहीं पहुंच पाते और ब्रेकअप का शिकार हो जाते हैं। ज्यादातर मामलों में इन ब्रेकअप्स की वजह बहुत छोटी होती है, लेकिन उस वक्त प्रेम में आकंठ डूबे प्रेमियों को वही छोटी वजहें बहुत बड़ी नÊार आती हैं और नतीजा होता है ब्रेकअप। लेकिन प्रेमी जोड़ा कुछ समय के लिए उन वजहों को अंदाज करके किसी शार्क की तरह आगे बढ़ता जाए और उस संबंध को विवाह तक ले जाए तो इस बात की बहुत संभावना है कि फिर वे कभी अलग न हों। इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है विवाह के साथ पैकेज के रूप में आई समझदारी और सहनशीलता। इसका एक दूसरा कारण भी है कि विवाह किसी भी अफेयर से बड़ा संबंध होता है। हम किसी छोटे-बड़े कारण के चलते अफेयर को ब्रेकअप में बदल सकते हैं, लेकिन उन्हीं कारणों के चलते विवाह को तलाक में बदलने से पहले कई बार सोचते हैं। हर इंसान अपने संबंध को बचाने के लिए जी-जान लगाता है और समय के साथ विवाहित पुरुष-स्त्री जानने लगते हैं कि संबंध इतना कमजोर नहीं होता, जो छोटे छोटे झगड़ों की भेंट चढ़ जाए, लेकिन यह समझने के लिए सहनशीलता चाहिए और वह आती है विवाह के बाद ही।
प्रेम की धुरी पर घूमता है, संबंधों का चक्का
विवाह संबंध इंसान को परिपक्व बनाता है। आपको अपने आसपास कई वर्गो के कई लोग यह कहते मिल जाएंगे कि जो प्रेम-संबंध उन्होंने विवाह के बाद महसूस किया, वह पहले कभी महसूस नहीं किया। नोबेल पुरस्कार विजेता ब्रिटिश लेखक हैरॉल्ड पिंटर अपनी पत्नी के लिए लिखते हैं,
मर गया था और जिंदा हूं मैं
तुमने पकड़ा मेरा हाथ, अंधाधुंध मर गया था मैं
तुमने पकड़ लिया मेरा हाथ
तुमने मेरा मरना देखा और मेरा जीवन देख लिया
तुम ही मेरा जीवन थीं, जब मैं मर गया था
तुम ही मेरा जीवन हो और इसीलिए मैं जीवित हूं..
ऐसी बात अपनी पत्नी से गहन प्रेम संबंध के बाद ही किसी लेखक की कलम से निकल सकती है। कुछ ऐसा ही प्रेम-संबंध इमरोज ने अमृता प्रीतम के लिए महसूस किया। वह अपने संस्मरण में कहते हैं, ‘कोई भी रिश्ता बांधने से नहीं बंधता। प्रेम का मतलब होता है एक-दूसरे को पूरी तरह जानना, एक-दूसरे के जज्बात की कद्र करना और एक-दूसरे के लिए फना होने का जज्बा रखना। अमृता और मेरे बीच यही रिश्ता रहा। पूरे 41 बरस तक हम साथ साथ रहे। इस दौरान हमारे बीच कभी किसी तरह की कोई तकरार नहीं हुई। यहां तक कि किसी बात को लेकर हम कभी एक-दूसरे से नाराज भी नहीं हुए।’
इमरोज आगे कहते हैं कि ‘अमृता के जीवन में एक छोटे अरसे के लिए साहिर लुधियानवी भी आए, लेकिन वह एकतरफा मोहबत का मामला था। अमृता साहिर को चाहती थी, लेकिन साहिर फक्कड़ मिजाज था। अगर साहिर चाहता तो अमृता उसे ही मिलती, लेकिन साहिर ने कभी इस बारे में संजीदगी दिखाई ही नहीं।
एक बार अमृता ने हंसकर मुझसे कहा था कि अगर मुझे साहिर मिल जाता तो फिर तू न मिल पाता। इस पर मैंने कहा था कि मैं तो तुझे मिलता ही मिलता, भले ही तुझे साहिर के घर नमाज अदा करते हुए ढूंढ़ लेता। मैंने और अमृता ने 41 बरस तक साथ रहते हुए एक-दूसरे की प्रेजेंस एंजॉय की। हम दोनों ने खूबसूरत ज़िन्दगी जी। दोनों में किसी को किसी से कोई शिकवा-शिकायत नहीं रही। मेरा तो कभी ईश्वर या पुनर्जन्म में भरोसा नहीं रहा, लेकिन अमृता का खूब रहा है और उसने मेरे लिए लिखी अपनी आखिरी कविता में कहा है — मैं तुम्हें फिर मिलूंगी। अमृता की बात पर तो मैं भरोसा कर ही सकता हूं।’
संबंधों का सागर विशाल है। एक कुशल और अच्छा नाविक वही है, जो इस सागर में अपनी नाव तमाम हिचकोलों के बावजूद पार ले जाकर माने और वो जब भी इस सागर में डुबकी लगाए तो संबंधों का सबसे कीमती मोती ही निकालकर लाए। न केवल निकाले, बल्कि उसे सहेज कर भी रख सके, उसकी हिफाजत करे, उसका सम्मान करे।
सारगर्भित आलेख
जवाब देंहटाएंपिछले महीने कि 'अहा जिंदगी' में ये लेख आया था. पढ़ा था मैंने तभी. बहुत अच्छा लिखा है.भाषा बहुत अच्छी है !
जवाब देंहटाएंसंबंधों का सागर विशाल है। एक कुशल और अच्छा नाविक वही है, जो इस सागर में अपनी नाव तमाम हिचकोलों के बावजूद पार ले जाकर माने और वो जब भी इस सागर में डुबकी लगाए तो संबंधों का सबसे कीमती मोती ही निकालकर लाए। न केवल निकाले, बल्कि उसे सहेज कर भी रख सके, उसकी हिफाजत करे, उसका सम्मान करे।....padhaa achchha laga
जवाब देंहटाएंसंबंधों का सागर विशाल है। एक कुशल और अच्छा नाविक वही है, जो इस सागर में अपनी नाव तमाम हिचकोलों के बावजूद पार ले जाकर माने और वो जब भी इस सागर में डुबकी लगाए तो संबंधों का सबसे कीमती मोती ही निकालकर लाए। न केवल निकाले, बल्कि उसे सहेज कर भी रख सके, उसकी हिफाजत करे, उसका सम्मान करे।
जवाब देंहटाएंस्त्री और पुरुष के मिज़ाज़ों के लिये प्रतीक गढ़ते हुये जॉन ग्रे ने शुक्र और मंगल ग्रहों को अपने विचारों में उतारने का प्रयास किया। स्त्री-पुरुष के सम्बन्धों को लेकर अब तक न जाने कितने विचार सामने आ चुके हैं, न जाने कितनी कहानियाँ और उपन्यास लिखे जा चुके हैं, न जाने कितनी चिंतायें की जा चुकी हैं.....पर जो रहस्य थे वे अभी भी रहस्स्य ही हैं। और जब तक ये रहस्य बने रहेंगे तब तक विचार और साहित्य अपने नये-नये कलेवर में आते रहेंगे।
जवाब देंहटाएंअहा ज़िन्दगी में पहले भी पढ़ चुका हूँ।
अच्छा लेख....अहा ज़िन्दगी पढ़ती हूँ नियमित रूप से...
जवाब देंहटाएंसादर
अनु
सबसे खूबसूरत महासागर वह है
जवाब देंहटाएंजिसे हम अब तक देख पाए नहीं
सबसे खूबसूरत बच्चा वह है
जो अब तक बड़ा हुआ नहीं
सबसे खूबसूरत दिन हमारे वो हैं
जो अब तक मयस्सर हमें हुए नहीं
और जो सबसे खूबसूरत बातें मुझे तुमसे करनी हैं
अब तक मेरे होंठों पर आ पाई नहीं।
इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आपका आभार ...