पूरी पोस्ट एक ईमानदार अभिव्यक्ति है और अपनी पसंद को अपना मानना बिल्कुल गलत नहीं . सच भी है - कहना था हमें , कह गए वो ...
रश्मि प्रभा
प्रिय ब्लॉगर साथियों,
पिछले दिनों और उससे पहले भी कई लोगों की टिप्पणियाँ और मेल मिली जिसका आशय ये था कि क्या इस ब्लॉग कि सारी पोस्ट आप स्वयं लिखते है ? शायद और पाठकों के मन में भी ये सवाल कभी न कभी उठता होगा......तो आज पेश है मेरी तरफ से आप सबको ये जवाब -
मैं एक साधारण इंसान हूँ....सिर्फ एक ज़र्रा.....कोई कवि, लेखक या कोई शायर बनने या अपने को समझने कि जुर्रत और हिमाकत मेरी नहीं है.....हाँ उर्दू अदब और हिंदी साहित्य से मुझे बहुत लगाव
है, इसके आलावा मुझे आध्यात्मिकता से बहुत लगाव है खासकर सूफी दर्शन से......अपनी उम्र के हिसाब से शायद कुछ अधिक परिपक्व हो गया हूँ......जिंदगी में जो कुछ सुनता हूँ, पढता हूँ उसे बहुत करीब से महसूस करता हूँ बाकि जिंदगी ने बहुत कुछ सिखाया है......दिमाग कि बजाय दिल को ज़्यादा तरजीह देता हूँ.....इसलिए जो कुछ कहीं महसूस किया है वो आपसे बाँटने के लिए इस ब्लॉग कि शुरुआत कि और आज भी कभी फॉलोवर की संख्या या टिप्पणियों की गिनती पर कम ध्यान रहता है क्योंकि ये ब्लॉग मेरी अपनी आत्मसंतुष्टि का जरिया है......यहाँ जो गजले, नज्में, गीत, विचार, सूफियाना कलाम... आप पढ़ते हैं वो सारे के सारे मैं खुद नहीं लिखता या मैंने नहीं लिखे, कुछ संकलन है, कुछ मैंने खुद भी लिखे हैं......इसका हिसाब रखना ज़रूरी नहीं समझा कि क्या अपना था और क्या और किसी का क्योंकि मेरे लिए उसमे छिपे जज़्बात मायने रखते हैं, मैं उसमे खुद को महसूस करता हूँ...... जब मैं यहाँ कुछ प्रकाशित करता हूँ तो उसमे छिपे जज़्बात मेरे और सिर्फ मेरे होते हैं जिसे कभी तस्वीरों के माध्यम से तो कभी शब्दों के माध्यम से बाँट लेता हूँ........
मैं खुद कि तारीफ का भूखा नहीं हूँ.......क्योंकि मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मेरे ब्लॉग - कलाम का सिपाही और खलील जिब्रान पर जो मैं प्रकाशित करता हूँ आप में से नब्बे फीसदी लोग उसे कभी न पकड़ पाते जिसे अगर मैं अपने नाम से प्रकाशित करता , पर मेरा ऐसा इरादा नहीं, बल्कि मैं तो ये चाहता हूँ कि ये चीजें आप तक पहुंचे ताकि आप उन सबसे भी रूबरू हो सके जो कहीं अछूता रह जाता है.......यहाँ हर किसी को समर्पित करने के लिए ब्लॉग बना पाना सम्भव नहीं है इसलिए जज़्बात एक प्लेटफ़ॉर्म है जहाँ कोई दायरा नहीं, कोई सीमा नहीं है, मेरा संकलन जो कई बरसों का है और बढता जाता है उसमे भी मैंने नामों को तरजीह कम दी है इसलिए कई का तो मुझे पता ही नहीं हैं, इतनी छोटी बातों पर मैंने ध्यान नहीं दिया कभी , उसके लिए माफ़ी का हक़दार हूँ |
आप सबसे गुज़ारिश है जिन्हें किसी पोस्ट कि खूबसूरती और उसमे उकेरे जज़्बात अपनी तरफ खींचते है उनका मैं तहेदिल से इस्तकबाल करता हूँ पर जो नामों में उलझे हैं और सिर्फ ये बताने या जताने कि तर्ज पर टिप्पणी छोड़ते हैं कि 'देखा हमने पहचान लिया न कि ये तुमने नहीं लिखा'........उनसे मैं यही कहूँगा हो सके तो इससे ऊपर उठें........यहाँ इस ब्लॉग पर अगर ग़ज़ल में शायर का तखल्लुस शेर में आता है तो वो ज़रूर आएगा......बाकी न मैंने कभी 'नाम' डाला था और न आगे 'नाम' डालूँगा चाहें वो मेरा ही क्यों न हो ........ये दहलीज़ कम से नामों से मुक्त रहेगी......लोगों से अनुरोध है कृपया व्यक्तिगत और अन्यथा न लें......शुक्रिया|
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अरे ....अरे ....नाराज़ न हों आपको खाली हाथ नहीं जाना पड़ेगा तो पेश है आज कि ये पोस्ट .........शब्दों पर अधिकार को लेकर........
शब्द....किसके हैं ये शब्द?
क्या तेरे, क्या मेरे ?
क्या कभी किसी के हुए हैं ?
ये शब्द.....
इस विराट में शब्द नहीं हैं,
है तो सिर्फ एक नाद
जो अनहत गूँजता है,
और उस नाद को
वर्णित करने के लिए ही तो
शब्दों के वस्त्र बनाते हैं हम,
फिर क्या फर्क है, कि किसी के
वस्त्र उजले हैं, और किसी के स्याह
क्या संसार के शब्दकोश में
कोई भी ऐसा शब्द है,
जो उस अनकहे
को अभिव्यक्ति दे,
क्यों है शब्दों की इतनी अहमियत ?
क्या केवल शब्दों को
क्रम देने से ही
शब्दों पर छाप पड़ जाती है ?
'सर्वाधिकार सुरक्षित' हो जाते हैं ?
कभी सोचा है तुमने की तुम
शब्दों पर अपने अधिकार
को सुरक्षित करते हो ....
क्या सच में तुम ऐसा कर सकते हो ?
क्या कभी कोई उस क्रम को थोड़ा
सा बिगाड़कर, थोड़ा इधर
या थोड़ा सा उधर सरकाकर
तुम्हारे 'सर्वाधिकार' को
'असुरक्षित' नहीं कर देता है
फिर कैसा अधिकार है ये ?
क्या कभी अनुमान किया है
कि इन शब्दों के माध्यम
से ही इस संसार में
प्रतिपल कितनी बकवास
की जाती है ?
कितनो के खिलाफ ज़हर
उगला जाता है?
कितने लोगों को लड़ाया
जाता है ?
अरे जागो,
शब्दों के पीछे मत भागो
ये तो सिर्फ एक जाल है,
शब्द अभिव्यक्ति का मात्र माध्यम हैं
और इन अधिकारों के चक्कर
में तुम वो तो भूल ही जाते हो
जिसको कहने के लिए
इन शब्दों का सहारा लिया गया,
थोड़ा सा गहराई में जाओ.....
थोड़ा सा डूबो उस रस में
जो शब्दों से परे है,
जैसे दिल की धडकन
बिना कहे कुछ कहती है,
जैसे साँसों की गरमी,
जैसे हाथों कि नरमी,
जैसे मतवाले नैनो की बोली
बिना बोले भी बोलती है,
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अगर किसी के 'सर्वाधिकार सुरक्षित' में से कोई शब्द भटककर इधर आ निकला हो तो कृपया उसे खींच के यहाँ से ले जाकर सुरक्षित करें :-)
इमरान अंसारी
अरे जागो,
जवाब देंहटाएंशब्दों के पीछे मत भागो
ये तो सिर्फ एक जाल है,
शब्द अभिव्यक्ति का मात्र माध्यम हैं
आपकी बात से पूर्णत: सहमत हूँ ... बिल्कुल सही कहा है आपने ... इस उत्कृष्ट प्रस्तुति के लिए आपका बहुत-बहुत आभार
बहुत बहुत शुक्रिया रश्मि जी जज्बातों को समझने के लिए ।
जवाब देंहटाएंसच कहा नामों के मायाजाल से उठ कर पढ़ पायें तभी असली पढ़ना है .......... आज की प्रस्तुती भी बहुत अच्छी है .....
जवाब देंहटाएंक्या कभी अनुमान किया है
जवाब देंहटाएंकि इन शब्दों के माध्यम
से ही इस संसार में
प्रतिपल कितनी बकवास
की जाती है ?
कितनो के खिलाफ ज़हर
उगला जाता है?
कितने लोगों को लड़ाया
जाता है ?
bhai jaan aapke tahe dil se shukragujaar hoon .... :)
अरे वाह ....!!!!! बेहतरीन .......सच शब्द नही मेरे पास .......जो पढकर उठने वाले भावों को व्यक्त कर सके .....शायद सच को अभिव्यक्त करने वाले शब्द होते ही नही सिर्फ अर्थ होते हैं जिन्हें महसूस किया जा सकता है देखा जा सकता है जैसे सूरज ...रौशनी शब्द जाल से परे ....../ हैट्स ऑफ़.....इमरान ..../
जवाब देंहटाएंफिर क्या फर्क है, कि किसी के
वस्त्र उजले हैं, और किसी के स्याह
क्या संसार के शब्दकोश में
कोई भी ऐसा शब्द है,
जो उस अनकहे
को अभिव्यक्ति दे,
...................
अरे जागो,
जवाब देंहटाएंशब्दों के पीछे मत भागो
ये तो सिर्फ एक जाल है,
शब्द अभिव्यक्ति का मात्र माध्यम हैं
आपने सच कहा बहुत सुन्दर प्रस्तुति..
शब्द अभिव्यक्ति का मध्यम मात्रा है , अपनी हो या दूसरे की !
जवाब देंहटाएंसही !
शब्द एक छलावा भी हैं ... माध्यम भी हैं ...
जवाब देंहटाएंमैं खुद कि तारीफ का भूखा नहीं हूँ.......क्योंकि मैं दावे के साथ कह सकता हूँ कि मेरे ब्लॉग - कलाम का सिपाही और खलील जिब्रान पर जो मैं प्रकाशित करता हूँ आप में से नब्बे फीसदी लोग उसे कभी न पकड़ पाते जिसे अगर मैं अपने नाम से प्रकाशित करता , पर मेरा ऐसा इरादा नहीं, बल्कि मैं तो ये चाहता हूँ कि ये चीजें आप तक पहुंचे ताकि आप उन सबसे भी रूबरू हो सके जो कहीं अछूता रह जाता है...nice
जवाब देंहटाएंwah ! shabd nahi mere pass kuch kehne kay liye...
जवाब देंहटाएंaap sabhi logon ka bahut bahut shukriya
जवाब देंहटाएंइमरान जी जो आपने लिखा मैं आपकी उन भावनाओं की कद्र करती हूँ ....
जवाब देंहटाएंपर किसी के लिखे को आप अपने नाम से नहीं छप सकते ये क़ानूनी तौर पे भी गलत है ....
हाल ही में एक किस्सा हुआ एक व्यक्ति अपना काव्य संग्रह लेकर प्रकाशक के पास गया ...प्रकाशक ने कई वर्ष रखने के बाद भी उसे प्रकाशित नहीं किया ...दो तीन वर्ष बाद जब उसने अपना संकलन किसी और प्रकाशक से छपवाया तो पता चला ये रचनायें तो पहले ही किसी और नाम से छप चुकी हैं ....फिलहाल वो मामला अदालत में है ....
एक रचना यूँ ही जन्म नहीं लेती ..कहते हैं रचनाकार को प्रसव जैसी स्तिथि से गुजरना पड़ता है तब जाकर एक अच्छी रचना का जन्म होता है ....
क्या हर्ज है जिसे हम पसंद करते हैं उसका नाम भी दे दिया जाये ....?
और आपमें तो प्रतिभा है आप लिख सकते हैं ....
मैं तो कहूंगी अपना लिखिए और भविष्य में अपना संग्रह भी निकालिए ....
आगे बढ़ना ही नियति है ...