मै तुम्हें सतह पर .कभी तट पर
लहर सा ..तलाशता हूँ
पर तुममे हैं.. सागर सी गहराई
मै पर्वत की चोटियों तक,
कभी मंदिरों के कलश तक
ऊपर उठकर ...
बादल सा ..तुम्हें छूना चाहता हूँ
पर तुममे हैं .. अंबर सी ऊँचाई
मै तुमसे हर मोड़ पर
मिलना चाहता हूँ
पर तुम्हें तो उदगम से समुद्र तक
नदी की तरह पसंद हैं सिर्फ तन्हाई
मै अक्स सा
तुम्हें आईने में
अक्सर दिख जाया करता हूँ
कभी तुम मुझसे प्यार करती हो
कभी तुम मुझसे रूठ जाती हो
और कभी मुझसे ...
तटस्थ रहने की जिद्द में
तुमने ..मुझे भूल जाने की
सारी रस्मे हैं निभाई
भीतर भीतर तुम्हारे
ह्रदय की मृदु भावनाएं
उमंगित हो ....
मेरे स्वागत हेतु लेती हैं अंगडाई
तुम मेरे जीवन में इस तरह से हो आयी
करीब रहकर भी दूर क्षितिज सी लगती हो
तुम मुझसे कहती हो
मै तो हूँ चांदनी रात में
झील में उतर आई
खुबसूरत चन्दा सी एक परछाई
किशोर
kishor kumar
बहुत सुन्दर..!!
जवाब देंहटाएंbahut sundar prastuti hai..
जवाब देंहटाएंसारी रस्मे हैं निभाई
जवाब देंहटाएंखुबसूरत चन्दा सी एक परछाई
पर तुममे हैं .. अंबर सी ऊँचाई
मेरे स्वागत हेतु लेती हैं अंगडाई
नदी की तरह पसंद हैं सिर्फ तन्हाई
पर तुममे हैं.. सागर सी गहराई
gehre bhaav liye sunder rachna, padhna man bhaya
जवाब देंहटाएंshubhkamnayen
खूबसूरत प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंbahut khub rachana
जवाब देंहटाएंbahut bhav puran
जवाब देंहटाएंbahut sundar pyari rachna
जवाब देंहटाएंachchhi kavitaa ...
जवाब देंहटाएंमै तुमसे हर मोड़ पर
जवाब देंहटाएंमिलना चाहता हूँ
पर तुम्हें तो उदगम से समुद्र तक
नदी की तरह पसंद हैं सिर्फ तन्हाई ...
बहुत सुन्दर..!!
मै तुमसे हर मोड़ पर
जवाब देंहटाएंमिलना चाहता हूँ
पर तुम्हें तो उदगम से समुद्र तक
नदी की तरह पसंद हैं सिर्फ तन्हाई
बहुत सुन्दर..!!
bhaut hi behtreen....
जवाब देंहटाएंमै तुमसे हर मोड़ पर
जवाब देंहटाएंमिलना चाहता हूँ
पर तुम्हें तो उदगम से समुद्र तक
नदी की तरह पसंद हैं सिर्फ तन्हाई
अनुपम भाव लिए ... उत्कृष्ट प्रस्तुति ... आभार आपका