रविवार, 19 अगस्त 2012

बेटियाँ




उन्होंने एक ही रजाई में
अपने सुख दुःख बाटें है |
वाचलता से नही ,
एक दूसरे की सांसो से
एक ही रजाई में सोना,
उनका आपस में प्यार नही ,
उनकी मजबूरी थी |
क्योकि लड़कियों को हाथ पाँव पसारकर ,
सोने की अनुमति नही थी |
उनके उस घर (जो उनका कभी नही था )में ,
उनके दादा दादी ,पिताजी, चाचा,भाई सबका
बिस्तर पलंग प्रथक होता
सिर्फ़ थकी मांदी माँ और बेटियों का बिस्तर
साँझा होता था |
बिस्तर ही क्यो ?
उनके कपडे भी सांझे होते|

उनकी योग्यता ,उनकी प्रतिभा को
सदेव झिड्किया मिलती |
किनतु उन लड़कियों
ने अपने पूरे परिवार के लिए न जाने
कितने ही व्रत उपवास रखे
उनकी खुशहाली की कामना की |
क्योकि
वे उस परिवार की बेटियाँ थी......


शोभना चौरे

10 टिप्‍पणियां:

  1. उनकी योग्यता ,उनकी प्रतिभा को
    सदेव झिड्किया मिलती |
    किनतुकिन्तु उन लड़कियों
    ने अपने पूरे परिवार के लिए न जाने
    कितने ही व्रत उपवास रखे
    उनकी खुशहाली की कामना की |
    कब तक ऐसा होता रहेगा .... ?

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  2. ये आज भी बहुत जगह नहीं बदला है, बदकि‍स्‍मती से

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  3. बेटियाँ हृदय से कोमल होती ही हैं...अपने परिवार के लिए कुछ भी करने को तत्पर !!
    अच्छी रचना साझा करने के लिए आभार !!

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  4. बेटियां तो बेटिया होती है..सुन्दर..

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  5. बेटियाँ अनमोल होती हैं...बस कोई परखता नहीं....
    सुन्दर रचना...

    सादर
    अनु

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  6. yah tasvir aaj badal rahi hai lekin ahista ahista .Aapke is kavita se parivartan ko bal milega.Badhai.

    aapse anurodh hai ki "mere vichar meri anubhiti me padhare.Aapki samathan ki pratiksha hai.
    Kalipad "Prasad"

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  7. betiyon ki dasha badal tho rahi hai par bahut dhire dhire....unhe bas pyar aur samman chahiyee

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  8. उनकी योग्यता ,उनकी प्रतिभा को
    सदेव झिड्किया मिलती |
    एक सच .. जो इस अभिव्‍यक्ति में बेहद सहज़ भावों से उकेरा गया है ... आपका आभार इस प्रस्‍तुति के लिए

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