शनिवार, 29 सितंबर 2012

स्त्री का अस्तित्व और सवाल




 कनुप्रिया 


एक सवाल अपने अस्तित्व पर,
मेरे होने से या न होने के दव्न्द पर,
कितनी बार मन होता है,
उस सतह को छु कर आने का,
जहाँ जन्म हुआ, परिभाषित हुई,मै,
अपने ही बनाये दायरों में कैद!
खुद ही हूँ मै सीता और बना ली है,
लक्ष्मण रेखा, क्यूंकि जाना नहीं
है मुझे बनवास, क्यूंकि मै
नहीं देना चाहती अग्निपरीक्षा…..
इन अंतर्द्वंद में, विचलित मै,
चीत्कार नहीं कर सकती, मेरी आवाज़
मेरी प्रतिनिधि नहीं है,
मै नहीं बता सकती ह्रदय की पीड़ा ,
क्यूंकि मै स्त्री हूँ,
कई वेदना, कई विरह ,कई सवाल,अनसुलझे?
अनकहे जवाब, सबकी प्रिय, क्या मेरा अपना अस्तित्व,
देखा है मैंने, कई मोड़ कई चौराहे,
कितने दिन कितनी रातें, और एक सवाल,
सपने देखती आँखें, रहना चाहती हूँ,
उसी दुनिया में , क्यूंकि आँख खुली और
काला अँधेरा , और फिर मैं, निःशब्द,
ध्वस्त हो जाता है पूरा चरित्र, मेरा…….
कैसे कह दूँ मैं संपूर्ण हूँ,
मुझमे बहुत कमियां है, कई पैबंद है……….
मै संपूर्ण नहीं होना चाहती,
डरती हूँ , सम्पूर्णता के बाद के शुन्य से
मै चल दूंगी उस सतह की ओर………
ढूंढ़ लाऊँगी अपने अस्तित्व का सबूत…
अपने लिए, मुझे चलना ही होगा,
मैं पार नहीं कर पाउंगी लक्ष्मण रेखा,
मैं नहीं दे पाऊँगी अग्निपरीक्षा,
मैं सीता नहीं,
मैं स्त्री हूँ,
एक स्त्री मात्र!

5 टिप्‍पणियां:

  1. कैसे कह दूँ मैं संपूर्ण हूँ,
    मुझमे बहुत कमियां है, कई पैबंद है……….
    मै संपूर्ण नहीं होना चाहती,
    डरती हूँ , सम्पूर्णता के बाद के शुन्य से ........
    काश बहुत पहले मैं भी ऐसा सोच पाती ...............

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  2. एक सवाल अपने अस्तित्व पर,
    मेरे होने से या न होने के दव्न्द पर,
    ना ये सवाल खत्‍म होते हैं न ही यह द्वंद ...
    कई वेदना, कई विरह ,कई सवाल,अनसुलझे?
    लिये वो आगे बढ़ती रहती है
    फिर एक नया सवाल अपने अस्तित्‍व पर लेने के लिए
    सार्थकता लिए सशक्‍त अभिव्‍यक्ति ... आभार इसे पढ़वाने के लिए
    सादर

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  3. राम का अस्तित्व जब ख़तम हो चूका है तो सीता के अस्तित्व क्या महत्व रह गया है !
    अगर जोड़ना ही है सीता के अस्तित्व साथ तो हर दृष्टी से आत्मनिर्भर होना होगा स्त्री को !

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  4. मंजिल तक पहुँचने के लिए चलना तो पढ़ेगा
    लड़ाई में जितने केलिए हिम्मत से लड़ना तो पढ़ेगा
    जिसने भी हिम्मत हारा,, परीक्षा से मुहं मोड़ा-उसकी अस्तित्व मिट गई ,

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  5. मैं पार नहीं कर पाउंगी लक्ष्मण रेखा,
    मैं नहीं दे पाऊँगी अग्निपरीक्षा,
    मैं सीता नहीं,
    मैं स्त्री हूँ,
    एक स्त्री मात्र!

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