ये मैंने 31st दिसम्बर को लिखा था
आज अलसुबह जब चाँद को देखा
तो अलसाया हुआ सा था
आँखें थीं नींद से बोझिल
पलकें भी सूजी हुई
मैंने पूछा ,क्यों भाई सोये नहीं हो क्या
चाँद उबासी लेता हुआ बोला
क्या बताऊ दोस्त,नए साल की रात थी
तारों ने खूब धमाचौकड़ी की
खुद भी जागते रहे मुझे भी सारी रात जगाया
रात भर लुकाछिपी खेलते रहे
मेरे पीछे आ आकर छिपते रहे
रात भर मुझसे झालरें लगवाते रहे
कभी गुब्बारे फुलवाते रहे
तंग आकर मैं भी छिप गया एक बादल के पीछे
पर आवारा कहीं का
उसे कहाँ चैन था एक जगह
भाग गया थोडी ही देर में
फिर से मैं और मेरे तारे...
झुंझला कर एक तारे को डांट दिया
बेचारा सहमा सा रोकर भागा
और टूट कर बिखर गया
फिर मैं किसी को डांट भी नहीं पाया
बस,रात भर जागता रहा
देखो तो ज़रा..
नटखट तारे कितने मज़े से सो रहे हैं
पर एक दिल की बात बताऊँ
भले ही शैतानों ने रात भर जगाया
पर मुझे भी दोस्त,मज़ा बहुत आया.
्बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंचाँद तारों की हंसी है बातें !
जवाब देंहटाएंमीठी सी पोस्ट !
चाँद को तारों ने हैप्पी न्यू इअर भी कहा था ना सुबह?????
जवाब देंहटाएंमैंने भी सुना था...और देखा भी था अलसाती आँखों से
:-)
sooooo sweet
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर ...!!!!!!!!!!
जवाब देंहटाएंवाह ... बहुत ही बढि़या ... बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आभार
जवाब देंहटाएंभले ही शैतानों ने रात भर जगाया
जवाब देंहटाएंपर मुझे भी दोस्त,मज़ा बहुत आया.
जैसे इस रचना को पढ़ कर आ रहा है .... :D
बहुत खूब .. ऐसी शैतानियों में मज़ा तो आता ही है
जवाब देंहटाएंचाँद जैसा ही सुंदर रचना !!!!
जवाब देंहटाएंभोली सी रचना ...
जवाब देंहटाएंइसे पढ़कर याद आ गयी बचपन में पढ़ी यह कविता-
हठ कर बैठा चाँद एक दिन
माता से यह बोला-
सिलवा दो माँ मुझे ऊन का
मोटा एक झंगोला
सन-सन चलती हवा रात भर
जाड़े से मरता हूँ ...
....