बुधवार, 16 मई 2012

ये मैंने 31st दिसम्बर को लिखा था


ये मैंने 31st दिसम्बर को लिखा था



आज अलसुबह जब चाँद को देखा
तो अलसाया हुआ सा था
आँखें थीं नींद से बोझिल
पलकें भी सूजी हुई
मैंने पूछा ,क्यों भाई सोये नहीं हो क्या
चाँद उबासी लेता हुआ बोला

क्या बताऊ दोस्त,नए साल की रात थी
तारों ने खूब धमाचौकड़ी की
खुद भी जागते रहे मुझे भी सारी रात जगाया
रात भर लुकाछिपी खेलते रहे
मेरे पीछे आ आकर छिपते रहे
रात भर मुझसे झालरें लगवाते रहे
कभी गुब्बारे फुलवाते रहे
तंग आकर मैं भी छिप गया एक बादल के पीछे
पर आवारा कहीं का
उसे कहाँ चैन था एक जगह
भाग गया थोडी ही देर में

फिर से मैं और मेरे तारे...
झुंझला कर एक तारे को डांट दिया
बेचारा सहमा सा रोकर भागा
और टूट कर बिखर गया
फिर मैं किसी को डांट भी नहीं पाया

बस,रात भर जागता रहा
देखो तो ज़रा..
नटखट तारे कितने मज़े से सो रहे हैं
पर एक दिल की बात बताऊँ
भले ही शैतानों ने रात भर जगाया
पर मुझे भी दोस्त,मज़ा बहुत आया.

10 टिप्‍पणियां:

  1. चाँद तारों की हंसी है बातें !
    मीठी सी पोस्ट !

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  2. चाँद को तारों ने हैप्पी न्यू इअर भी कहा था ना सुबह?????

    मैंने भी सुना था...और देखा भी था अलसाती आँखों से
    :-)

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  3. वाह ... बहुत ही बढि़या ... बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिए आभार

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  4. भले ही शैतानों ने रात भर जगाया
    पर मुझे भी दोस्त,मज़ा बहुत आया.
    जैसे इस रचना को पढ़ कर आ रहा है .... :D

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  5. बहुत खूब .. ऐसी शैतानियों में मज़ा तो आता ही है

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  6. भोली सी रचना ...
    इसे पढ़कर याद आ गयी बचपन में पढ़ी यह कविता-

    हठ कर बैठा चाँद एक दिन
    माता से यह बोला-
    सिलवा दो माँ मुझे ऊन का
    मोटा एक झंगोला
    सन-सन चलती हवा रात भर
    जाड़े से मरता हूँ ...
    ....

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