मैं मस्तो गौरव श्रीवास्तव . ..उम्र 24 साल .थेअटर करता हूँ ...हिदायतकार बनने की ख्वाहिश ..,कुछ अफ़साने कहे हैं ... इन सब से पहले नज्मों का शायर !!
कमरों से दिल उब गया..,
वापस घर को जाना है...
अम्मा की याद आती है..
वापस घर को जाना है....
कितना वक़्त बीत गया..,
'पापा' ने न टोका है..
'पापा' की डाँट सुनने..,
वापस घर को जाना है...
गर्मी की थकी दोपहर में,
ग़ौरैया आंगन में आती होगी..?
चिड़ियो को दाना-पानी देने..,
वापस घर को जाना है॥
दशहरा का मेला देखने
बाबा पैसे देते थे..
कई बार के पैसे लेने,
वापस घर को जाना है
अष्टमी की रातों में..,
रसियाव-पुडियाँ बनती थी.
दादी के गीतों को सुनने..,
वापस घर को जाना है
उस छोटी अलमारी में..,
मेरी किताबें रखी होंगीं ?
किताबों की धूल झाड़ने..
वापस घर को जाना है
चौक की दुकान पे..
इक शाम हम बैठे थे..
सूरज अब डूब गया है,
वापस घर को जाना है...
चौड़ी-चौड़ी सड़कों में,
घर का रास्ता भूल गये..
अम्मा की याद आती है..
वापस घर को जाना है....
..मस्तो...
अपने घर से दूर रहने वाले सभी बच्चों की यही feelings हैं...
जवाब देंहटाएंइसे बहुत अच्छे से व्यक्त किया है गौरव जी ने...बहुत बढ़िया !!!
बहुत ही अच्छी रचना चयन की है आपने ... पढ़वाने का शुक्रिया ..गौरव जी को उत्कृष्ट लेखन के लिए बधाई ..
जवाब देंहटाएं*सूरज अब डूब गया है,*
जवाब देंहटाएंआमवस्या की रात न हो जाए ....
*घर का रास्ता भूल गये
वापस घर को जाना है....*
जल्दी करो ,कही देर न हो जाए ....
मस्तो. नज्मों के शायर से पहले मेरा दोस्त मेरा भाई मेरी जान. ढेर सारा प्यार मस्तो के लिए. मस्तो के अंदर एक बच्चा है जो हमेशा हैरान रहता है :)
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