रविवार, 6 मई 2012

फ़ितूर



पियूष मिश्रा , एक प्रतिभाशाली लड़का .... सच्चा और कल्पनाशील , कडवी सच्चाई को झेल नहीं पाया है ,
बीमार बहुत बीमार है , मन की बीमारी दवाओं से नहीं ठीक होती . आइये हम मिलकर उसे अपना स्नेहिल आशीष दें
जो उसके चेहरे पर एक मुस्कान दे जाए -



फ़ितूर

उस रेस्टोरेंट में
तुम जब भी मुझसे मिलने आती थी
जान बूझ कर
मुझे सताने को
देर कर जाती थी
अब भी कभी यूँही
मैं उसी रेस्टोरेंट में
चला जाता हूँ
देर बहुत देर शाम तक
रहता हूँ
तुम नहीं आती
मैं उठ कर चला आता हूँ...

एक शनिवार
जब तुम मुझसे मिलने नहीं आ पाई थी
अपनी एक सहेली के हाथों तुमने
एक गुलाब और एक चिठ्ठी
भिजवाई थी
शनिवार को मैं अब भी
तुम्हारा इंतज़ार करता हूँ
तुम तुम्हारी चिठ्ठी
कोई नहीं आता
और मैं अपने ही बाग़ीचे से
एक गुलाब तोड़ लाता हूँ अपने लिए ...

याद है
अक्सर शाम ढले
हम नदी किनारे जाया करते थे
कुछ देर बैठ कर
मैं कहता था तुमसे-
"कुछ कहो ना..तुम्हारी खामोशी बहुत चुभती है"
अब भी कभी
मैं वहाँ चला जाता हूँ
कुछ देर बैठ कर
कहता हूँ-
"कुछ कहो ना...."
फिर चुप हो जाता हूँ

exam का वक़्त था वो
मैं पढ़ता रहूं
इस लिए तुमने सारी रात
मेरा फ़ोन बजाया था
अब भी कभी
जब exam आता है
मैं यूँही
आँखें बंद कर लेट जाता हूँ
कुछ देर में ख़ुद ही उठ जाता हूँ
फ़ोन बंद करके
पढ़ने लग जाता हूँ ...

जब भी तुम नाराज़ होती थी
तुम्हें हँसाने के लिए
मैं बड़ा ही बेसुरा गाता था
" बड़े सिंगर बनते हो"
कह कर तुम
हँसने लग जाती थी
आईने के सामने कभी कभी
मैं वही गाने गाता हूँ
कोई कुछ नहीं कहता
गला रूँध जाता है
मैं चुप हो जाता हूँ ...

और उस दिन
जब तुम जाने लगी
"मैने कहा मैं मर जाऊंगा
तुम रुक जाओ"
तुमने कहा
"जाओ मर जाओ"
तुम्हें पाने के लिए अब भी
वही सारे पुराने नये
फ़ितूर करता हूँ
तुम नहीं मिलती
अब मैं हर रोज़ मरता हूँ


पियूष कुमार मिश्रा
पटना
बस यही है खासियत कि कुछ नहीं है ख़ास मुझमें ...

20 टिप्‍पणियां:

  1. samveednaa se bharpoor..bhaavnaaon se yukt...achchha likha hai.

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  2. रश्मि प्रभा जी.....अच्छा लिखा हुआ,पढवाने हेतु हार्दिक धन्यवाद!!

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  3. रश्मिजी ...सही कहा आपने- मन की बीमारिया दवाइयों से ठीक नहीं होती.

    इस कविता के रोम रोम में प्रेम से उपजा दर्द बिखरा है. प्रेम इश्वर की नेमत है, उसकी इबादत का ही एक रूप है तो फिर इसमें इतना दर्द क्यों?

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  4. रश्मिजी ...सही कहा आपने- मन की बीमारिया दवाइयों से ठीक नहीं होती.

    इस कविता के रोम रोम में प्रेम से उपजा दर्द बिखरा है. प्रेम इश्वर की नेमत है, उसकी इबादत का ही एक रूप है तो फिर इसमें इतना दर्द क्यों?

    जवाब देंहटाएं
  5. आदरणीया रश्मिजी
    बहुत बहुत धन्यवाद इस कविता के लिए. पीयूष की ये कविता मैंने कई बार पढी है और हर बार ये मुझे उतना ही रुलाती है जितना इसने मुझे पहली बार रुलाया था

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  6. प्रेम फ़ितूर ही तो है और फ़ितूर होगा तो दर्द भी होगा ही…………पियूष को जानना अच्छा लगा

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  7. जितना प्रेम , उतना ही दर्द!
    धोखा देकर जाने वाले को भूल कर आगे बढ़ना चाहिए , जिन्दगी बहुत अनमोल है !

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  8. तुम्हें पाने के लिए अब भी
    वही सारे पुराने नये
    फ़ितूर करता हूँ
    तुम नहीं मिलती
    अब मैं हर रोज़ मरता हूँ .

    पंक्ति दर पंक्ति गहन भावनाओं से भरी हुई .... पीयूष को शुभकामनायें ... ज़िंदगी अनमोल है उसकी तरफ रुख करें ...

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  9. एक अकथनीय पीड़ा से रची बसी यह संवेदनाओं से भरपूर अद्भुत रचना है ! बेहतरीन भावभूमि के मालिक हैं पीयूष जी ! उन्हें मेरी अनंत शुभकामनायें हैं !

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  10. वाह........................

    दिल में कहीं गहरे उतर गयी ये कविता...........................
    बहुत सुंदर ...

    शुक्रिया दी....ऐसी प्यारी रचना हम तक पहुंचाने के लिए.

    सादर.

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  11. तुमने लफ़्ज़ों में
    कहने की कोशिश की है.
    कैसा लगता होगा तुमको
    जब ये सब
    तुम सहते होगे, तन्हाई में
    याद किसी को करते होगे..
    लफ्ज़ कहाँ कह पाते हैं वो सब
    जो तुमने
    अपने दिल पे झेला होगा..
    हम तो इस लंबी सी नज़्म के
    लफ्ज़ लफ्ज़ पर
    दिल को थाम के बैठ गए हैं!!

    ऊपरवाले से बस एक दुआ है
    तुमको अता करे वो सिफत
    तुम्हारी नज़्म में जो
    संजीदगी है उसको रक्खे ज़िंदा
    और बख्शे एहसास को
    एक नई ऊंचाई!!

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  12. दिल की बात है दिल को छू गयी

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  13. पीयूष जी बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ति है। बधाई। आप यूं ही लिखते रहें और अपनी रचनाओं में जीते रहें। ढेर सारी शुभकामनाओं के साथ।
    डॉ. रत्ना वर्मा

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  14. अपने दर्द को इस तरह से बयां करना की हर किसीको वह ग़म अपना सा लगे ...इतनी शिद्दत से किसीको चाहना ...की हर चश्म तर होने लगे ....इसके बाद भी और ख़ास होना बाक़ी है ....????

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  15. सच है अपने दुःख को कविताओं में ढाल कर उसे अमृत बनाया जा सकता है...शुभकामनायें !

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  16. तुम्हें पाने के लिए अब भी
    वही सारे पुराने नये
    फ़ितूर करता हूँ
    तुम नहीं मिलती
    अब मैं हर रोज़ मरता हूँ .
    नि:शब्‍द करती हुई यह अभिव्‍यक्ति ..जिसे आपके प्रयास से पढ़ना सार्थक हुआ .. आभार ।

    जवाब देंहटाएं
  17. पियूष कुमार मिश्रा
    पटना ... ??
    मैं ( पटना .... १४)
    हो सकता ,हम पडोसी हों ....
    *तुमने कहा
    "जाओ मर जाओ" * ............. ?????????
    जिन्दगी तो वहीँ से शुरू हो जानी थी....
    फ़ितूर को फितरत न बनने दो ....
    आपका आभार .... !!

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  18. धन्यवाद रश्मि जी.धन्यवाद आप सब का भी जिन्होंने मेरी इस रचना कको पसंद किया.

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  19. और उस दिन
    जब तुम जाने लगी
    "मैने कहा मैं मर जाऊंगा
    तुम रुक जाओ"
    तुमने कहा
    "जाओ मर जाओ"
    तुम्हें पाने के लिए अब भी
    वही सारे पुराने नये
    फ़ितूर करता हूँ
    तुम नहीं मिलती
    अब मैं हर रोज़ मरता हूँ..achchhi lagikavita

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