शनिवार, 12 मई 2012

लिखती हुई लड़कियां





यह नितांत मेरी ही कविता है। कविता है या नही पता नही। दिल पर जो गुजरी है, नजरों से जो गुजरा है
उसी से बुनी गुनी.....



बहुत खूबसूरत होती हैं
लिखती हुई लड़कियां
अपने भीतर रचती हैं ढेरों सवाल
अपने अन्दर लिखती हैं
मुस्कुराहटों का कसैलापन
जबकि कागजों पर वे बड़ी चतुराई से
कसैलापन मिटा देती हैं
कविता मीठी हो जाती है
वे लिखती हैं आसमान
पर कागजों पर आसमान जाने कैसे
सिर्फ़ छत भर होकर रह जाता है
वे लिखती हैं
सखा साथी, प्रेम
कागजों पर व्ओ हो जाता है
मालिक, परमेश्वर और समर्पण।
वे लिखती हैं दर्द, आंसू
वो बन जाती हैं मुस्कुराहटें
वे अपने भीतर रचती हैं संघर्ष
बनाना चाहती हैं नई दुनिया
वो बोना चाहती हैं प्रेम
महकाना चाहती हैं सारा जहाँ
लेकिन कागजों से उड़ जाता है संघर्ष
रह जाता है, शब्द भर बना प्रेम.
वे लिखना चाहती हैं आग
जाने कैसे कागजों तक
जाते-जाते आग हो जाती है पानी
लिखती हुई लड़कियां
नही लिख पाती पूरा सच
फ़िर भी सुंदर लगती है
लिखती हुई लड़कियां.


प्रतिभा कटियार

9 टिप्‍पणियां:

  1. वे लिखना चाहती हैं आग
    जाने कैसे कागजों तक
    जाते-जाते आग हो जाती है पानी
    लिखती हुई लड़कियां
    नही लिख पाती पूरा सच
    फ़िर भी सुंदर लगती है
    लिखती हुई लड़कियां.

    बहुत सुन्दर ! हर्फ़ दर हर्फ़ सच और सिर्फ सच ! शुक्रिया रश्मि जी आपके माध्यम से प्रतिभा जी की इतनी बेहतरीन रचना पढ़ने का अवसर मिला ! प्रतिभा जी आपको भी बधाई इतने सुन्दर सृजन के लिये !

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  2. लिखती हुई लड़कियां
    नही लिख पाती पूरा सच
    फ़िर भी सुंदर लगती है
    लिखती हुई लड़कियां.

    सच बयाँ कर दिया …………अति उत्तम रचना।

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  3. *वो बोना चाहती हैं प्रेम
    महकाना चाहती हैं सारा जहाँ*
    इसलिए तो .................
    लेकिन कागजों से उड़ जाता है संघर्ष
    रह जाता है, शब्द भर बना प्रेम.
    और ...........................
    वे लिखना चाहती हैं आग
    जाने कैसे कागजों तक
    जाते-जाते आग हो जाती है पानी
    बहुत ही अद्धभुत अभिव्यक्ति .....
    आभार आपका ,आप मिलने का मौका दीं ....

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  4. सच को सच सच लिख दिया...ग़जब की अभिव्यक्ति!!!
    आभार!!!

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  5. वे लिखना चाहती हैं आग
    जाने कैसे कागजों तक
    जाते-जाते आग हो जाती है पानी

    बिडम्बना दर्शाती सुन्दर रचना

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  6. लिखे और अनलिखे कहे और अनकहे के बीच की दूरी को ये कविता बखूबी ब्यान करती है.. सुन्दर.. leena malhotra rao

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  7. वे लिखना चाहती हैं आग
    जाने कैसे कागजों तक
    जाते-जाते आग हो जाती है पानी
    एक उत्‍कृष्‍ट रचना का चयन किया है आपने ... पढ़वाने के लिए आभार ।

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  8. शुक्रिया रश्मि जी! बस एक आग्रह....
    कागजों पर आसमान जाने कैसे
    सिर्फ 'छत' भर होकर रह जाता है..
    इसे सुधार दें... सभी साथियों का आभार!

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  9. दिल को छूने वाली सुंदर कविता...

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