शनिवार, 5 मई 2012

मौन का महाकाव्य



मैं स्त्री
एक किताब सी
जिसके सारे पन्ने कोरे हैं
कोरे इसलिए
क्योंकि पढ़े नहीं गए
वो नज़र नहीं मिली
जो ह्रदय से पढ़ सके

बहुत से शब्द रखे हैं उसमे
अनुच्चरित.
भावों से उफनती सी
लेकिन अबूझ .
बातों से लबरेज़
मगर अनसुनी.
किसी महाकाव्य सी फैली
पर सर्ग बद्ध
धर्मग्रन्थ सी पावन
किन्तु अनछुई .

तुम नहीं पढ़ सकते उसे
बांच नहीं सकते उसके पन्ने
क्योंकि तुम वही पढ़ सकते हो
जितना तुम जानते हो .
और तुम नहीं जानते
कि कैसे पढ़ा जाता है
सरलता से,दुरूहता को
कि कैसे किया जाता है
अलौकिक का अनुभव
इस लोक में भी ....



तूलिका शर्मा
चित्रकार

"कई लोगों को ईश्वर कहीं रखकर भूल जाता है, पर मैं खुद ही अपने आप को कहीं रखकर भूल गयी हूँ ...अब मैं ये भी नहीं जानती कि मैं कहाँ हूँ ...कोई है जो मेरा अपना आप खोजकर मुझे दे जाए " अमृता प्रीतम इन पंक्तियों में मेरा जीवन कह गयी हैं ...अब मैं हर पल खुद को ढूंढ रही हूँ ...गढ़ रही हूँ अपने मन को प्रिज्म सा .....कि जब भी पहुंचूं सूरज की किरणों तक ...तो सारा प्रकाश परावर्तित हो सके ...सात रंगों में .

15 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत चमकीला मोती ढूँढ कर लाई हैं...

    सरलता से,दुरूहता को
    कि कैसे किया जाता है
    अलौकिक का अनुभव
    इस लोक में भी ....

    वाह...!!!

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  2. कैसे पढ़ा जाता है,सरलता से,दुरूहता को..............? सच यह पढना सीखने जैसा है | खूब ,बहूत खूब ,वाह ...इस सबमें कुछ नहीं rakha | अद्भुत अक्सर कहा जाता है |सो सही शब्द तुम ही भर दो ...फिल इन दे ब्लांक्स मैं ........................|

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  3. कैसे पढ़ा जाता है,सरलता से,दुरूहता को..............? सच यह पढना सीखने जैसा है | खूब ,बहूत खूब ,वाह ...इस सबमें कुछ नहीं rakha | अद्भुत अक्सर कहा जाता है |सो सही शब्द तुम ही भर दो ...फिल इन दे ब्लांक्स मैं ........................|

    जवाब देंहटाएं
  4. उत्तर
    1. बहुत आभार शिवम जी ....चलते फिरते ही रहेंगे :)

      हटाएं
    2. बहुत आभार शिवम जी ....अब चलते फिरते ही नज़र आयेंगे :)

      हटाएं
  5. मैं स्त्री
    एक किताब सी
    जिसके सारे पन्ने कोरे हैं
    कोरे इसलिए
    क्योंकि पढ़े नहीं गए
    वो नज़र नहीं मिली
    जो ह्रदय से पढ़ सके ……………बेहतरीन कलम की धनी तूलिका जी का परिचय बहुत अच्छा लगा ………हार्दिक आभार

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  6. बहुत खूब 'लौकिकता में अलौकिकता'

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  7. वो नज़र नहीं मिली
    जो ह्रदय से पढ़ सके
    भावों से उफनती सी
    किसी महाकाव्य सी फैली
    सरलता से,दुरूहता को
    सारा प्रकाश परावर्तित हो सके
    अनुभव की अनुभूति की अभिव्यक्ती बहुत खूबसूरती से .... !!

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  8. तूलिका जब भी कुछ लिखती हैं तो सबसे पहले उनकी गहरी आत्मीयता दिखती है अपने सहचरों के साथ.उनके भावों में आकर स्त्री जीवन की सारी दुरूहताएँ सरल दिखने लगती हैं.अपने साथ की चीजों पर उनका इतना अटल भरोसा है कि वो उनके प्रति हमेशा सदय और समर्पित दिखती हैं.कुछ अभाव उनकी स्त्री के भी ज़रूर होंगे लेकिन उसका कोई विलाप तूलिका नहीं करतीं, बल्कि उस अभाव को अपने ही प्रेम और वात्सल्य से भर देती हैं. तभी ऐसी आत्मीय कविता बन पाती है.

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  9. तुम नहीं जानते
    कि कैसे पढ़ा जाता है
    सरलता से,दुरूहता को
    कि कैसे किया जाता है
    अलौकिक का अनुभव
    इस लोक में भी ....
    गहन भाव लिए .. उत्‍कृष्‍ट अभिव्‍यक्ति .. आभार सहित शुभकामनाएं ।

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  10. रश्मि जी , आपका और सभी सराहने वालों का तहे दिल से शुक्रिया

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