शुक्रवार, 11 मई 2012

एक होना, यानि पूर्ण होना।



जैसे ही दो लोग मिलते हैं,
एका होने से, खुशी होती है।
जब वो कुछ कहने लगते हैं,
वो अपनी-अपनी ”बात“ होती है,
किसी ”बात“ का मतलब ही होता है
दो चीजें।
इस तरह दो चीजों में बंटते ही
खुशी काफूर हो जाती है,
इसलिए
चुप रहो।

जब कुछ महसूस किया जाता है
खो जाता है सबकुछ
वक्त भी।
जब फिर से मांगा जाता है वही महसूसना,
तो वक्त लौट आता है
अतीत, वर्तमान और भविष्य के
तीन सिरों में कटा हुआ।
कटी-फटी-टुकड़ों में बंटी चीजें
अशुभ होती हैं।
इसलिए
महसूस करो और
चुप रहो।

याद करो
उन दिनों हम कितने खुश थे
जब ना कोई बोली थी
ना कोई भाषा
मौजूदगी को महसूसने की
थी
अपनी ही अबूझ परिभाषा।
जब से हमने
अहसासों को बांधने की कोशिश की है-
बोलियों-भाषाओं में,
शब्दों-स्मृतियों में।
हम बेइन्तहा बंट गये हैं।
इतने कि
एक छत और
एक बिस्तर को
एक साथ महसूसने के बाद भी
हम एक नहीं हो पाते।
इसलिए हो सके तो
कुछ ना कहो
चुप रहो।

प्रार्थना
कैसे की जा सकती है?
क्योंकि जैसे ही प्रार्थना की जाती है,
एक खाई बन जाती है
प्रार्थना करने वाले, और
जिससे प्रार्थना की जारी रही
उसमें।
इसलिए चुप रहो।

सहज खामोशी में हम
एक हो सकते हैं।
खामोश होने के लिए
जरूरी है कि हम
वही रहें, जो हैं।
और कुछ होना ना चाहें
उसके सिवा
जो है।
जो हैं,
बस वही भर रह जाने से
हम एक हो जाते हैं।
खामोशी रह जाती है।
एक होना, यानि पूर्ण होना
मृत्यु रहित होना।


राजे_शा
http://rajey.blogspot.in/

8 टिप्‍पणियां:

  1. सहज खामोशी में हम
    एक हो सकते हैं।
    खामोश रहकर जो कहा जाएगा
    बड़ी शिद्दत से वह सुना जाएगा

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  2. जो हैं,
    बस वही भर रह जाने से
    हम एक हो जाते हैं।
    और तब ....
    शब्दों की जरुरत ही नहीं होती , ख़ामोशी भी सुनाई देती है ....

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  3. मौन कभी कभी वाणी से अधिक वाचाल होता है...
    शांति बनाए रखने के लिए चुप रहना जरूरी है...

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  4. बहुत ज़रूरी है मगर
    बड़ा कठिन है चुप रहना........

    सादर.

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  5. bahut baar chup rahna hi hitkar hota hai..
    bahut sundar chintan..

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  6. समयानुसार चुप्पी और बोलना दोनों ही ज़रूरी है !

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  7. अनुपम भाव संयो‍जन लिए बेहतरीन प्रस्‍तुति।

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